किशोर उम्र में गर्भधारण और मां बनना है बच्चों में कुपोषण की बड़ी वजह, शोध में ख़ुलासा

संक्षेप:

  • एक नए शोध में सामने आया है कि कम उम्र में गर्भधारण की वजह से देश में कुपोषित बच्चों की संख्या बढ़ रही है.
  • कम उम्र में बनी किशोर मां, नाबालिग मां के गर्भ से जन्म लिए हुए बच्चे कुपोषित होते हैं.
  • भारत में कुपोषण की चुनौती से लड़ने के लिए सिर्फ भोजन उपलब्ध कराना ही समाधान नहीं है.

- नयनतारा नारायणन

भारत की सबसे बड़ी समस्या कुपोषण है और एक बड़ी आबादी जो गांवों में बसती है वो इसी कुपोषण की वजह से ही असमय दम तोड़ देती है. दुनिया के 25 फीसदी कुपोषित बच्चे भारत के गांवों और महानगरों की झोपड़पट्टियों में बसते हैं. लेकिन आज हम बात कर रहे हैं कुपोषण की उन वजहों के बारे में जिससे हमारा मुल्क इक्कीसवीं सदी के इस डिजिटल युग में भी अभी तक नहीं उबर सका है. जी हां हम बात कर रहे हैं बाल विवाह की. सदियों पुरानी यह कुप्रथा विज्ञान-तकनीक , ज्ञान और जीवनशैली के उत्तरोत्तर विकास के बाद भी भारत के गांवों में पांव जमाए हुई है. एक नए शोध में सामने आया है कि कम उम्र में गर्भधारण की वजह से देश में कुपोषित बच्चों की संख्या बढ़ रही है. कम उम्र में बनी किशोर मां, नाबालिग मां के गर्भ से जन्म लिए हुए बच्चे कुपोषित होते हैं. उनके शरीर में पोषण की कमी होती है.

इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं ने देश भर में नेशनल हेल्थ सर्वे के डेटा से पहली बार बने मां 60 हजार मां के बच्चों पर शोध किया. यह शोध The Lancet Child & Adolescent Health नाम से प्रकाशित है. इस शोध में बताया गया है कि 25 फीसदी वैसी मां ने बच्चों को जन्म दिया जो नाबालिग है और शादी करने के लायक उम्र तक नहीं पहुंची थी. किशोरी मां या कहें तो नाबालिग मां से जन्म लिए बच्चे का वजन काफी कम था, बच्चे की लंबाई भी काफी कम थी.

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शोधकर्ता पूर्णिमा मेनन बताती हैं कि भारत में कुपोषण की चुनौती से लड़ने के लिए सिर्फ भोजन उपलब्ध कराना ही समाधान नहीं है. नाबालिग मां की वजन कम होती है, लंबाई भी कम होती है नतीजा होता है कि जब वो बच्चे को जन्म देती है तो वो बच्चा भी काफी कम वजन का होता है. नाबालिग मां बालिग मां की तुलना में ज्यादा एनिमिक होती है यानि उनके शरीर में खून की मात्रा कम होती है. इससे मां और बच्चे दोनों की जान को खतरा रहता है.
नाबालिग मां न तो अपने बच्चे को सही से मां का दूध पिला सकती है और गरीबी की वजह से अपने बच्चों को संतुलित कंप्लीमेंटरी फूड भी नहीं दे सकती है, नतीजा बच्चा कुपोषण का शिकार हो जाता है और असमयय दम तोड़ देता है.

भारत में कुपोषण को कम करने के लिए कई सरकारी कार्यक्रम और विश्व स्वास्थ्य संगठन की योजनाएं चलाई जा रही हैं. ICDS के तहत आंगनबाड़ी कार्यक्रम जहां बच्चों को आंगनबाड़ी केंद्रों पर पोषक आहार दिए जाते हैं. वहीं स्कूलों में चलने वाले मिड डे मिल स्कीम जहां बच्चों को दिन में एक बार संपूर्ण पोषक आहार थाली में परोसी जाती है. ये दोनों योजनाएं बड़े पैमाने पर सफल साबित हुई हैं. द ग्लोबल चाइल्डहुड रिपोर्ट 2019 के मुताबिक बच्चों के कुपोषण के दर में साल 2000 के बाद से 30 फीसदी की कमी आई है. 19 साल पहले 2.3 करोड़ बच्चे कुपोषण के शिकार थे.  इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट ने अपने शोध में ऐसे कई सुझाव दिए गए हैं जिसमें पोषण कार्यक्रम को और कारगर बनाने, प्रसव से पूर्व माता के सेहत और कम उम्र की मां के पोषण और उनके सुरक्षित प्रसव के लिए एक्शन प्लान बनाने पर जोर दिए गए हैं.

कम उम्र की शादी पर रोक लगे

कम उम्र की शादी और कम उम्र में गर्भधारण पर रोक लगाने के लिए शोधकर्ता पूर्णिमा मेनन ने दो एक्शन प्लान के सुझाव दिए हैं. पहला कम उम्र की शादी का सामाजिक बहिष्कार हो और दूसरा ऐसे परिवार को परिवार नियोजन और गर्भ नहीं ठहरे इसकी पूरी जानकारी और उपाय उपलब्ध कराना. बाल विवाह निषेध कानून 2006 के बाद भी भारत के कई गांवों में 18 साल से कम उम्र की लड़कियों की शादी हो रही है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के मुताबिक अभी भी 15 से 19 साल की लड़कियों में से अभी भी 12 फीसदी नाबालिग लड़कियां ब्याही जा रही है.

बाल-विवाह को रोकने के कानूनी उपाय

भारत में सबसे पहले 1860 में बाल-विवाह को रोकने के लिए एक अधिनियम बनाया गया, इसके अनुसार लड़कियों के विवाह की कम से कम आयु 10 वर्ष निर्धारित की गई परन्तु जनता ने इस कानून को न माना. 1891 में एक अधिनियम बनाकर लड़कियों की विवाह की आयु की सीमा 13 वर्ष कर दी गई.
1928 में आयु स्वीकृति समिति ने बाल-विवाह का तीव्र विरोध किया और यह बतलाया कि अधिकतर लोग इस विषय में अब तक बने कानूनों को जानते नहीं हैं. 1929 में हर विलास सारदा ने एक विधेयक उपस्थित किया जो बाल-विवाह निरोधक अधिनियम के नाम से स्वीकृत हुआ. इसके अनुसार विवाह की आयु लडकों के लिये कम से कम 18 वर्ष और लड़कियों के लिए 14 वर्ष निर्धारित की गई.

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