मंदी और GST से फीकी हुई Parle G की मिठास, 10,000 कर्मचारियों को नौकरी से निकालेगी कंपनी
- भारतीय इकोनॉमी की सुस्ती का असर देश की सबसे बड़ी बिस्किट निर्माता कंपनी Parle पर देखने को मिल रही है.
- इस वजह से आने वाले दिनों में Parle के 10 हजार कर्मचारियों की नौकरी पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं.
- कंपनी के कैटिगरी हेड मयंक शाह के मुताबिक यह सुस्ती गुड्स एंड सर्विसेस टैक्स (जीएसटी) की वजह से आई है.
नई दिल्ली: भारतीय इकोनॉमी की सुस्ती का असर देश की सबसे बड़ी बिस्किट निर्माता कंपनी Parle पर देखने को मिल रही है. इस वजह से आने वाले दिनों में Parle के 10 हजार कर्मचारियों की नौकरी पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक Parle अपने प्रोडक्ट्स के इस्तेमाल में सुस्ती की वजह से 10 हजार लोगों की छंटनी कर सकती है. कंपनी के कैटिगरी हेड मयंक शाह के मुताबिक यह सुस्ती गुड्स एंड सर्विसेस टैक्स (जीएसटी) की वजह से आई है. मयंक शाह ने कहा,
``हम लगातार सरकार से बिस्किट पर जीएसटी घटाने की मांग कर रहे हैं. अगर सरकार ने हमारी बात नहीं मानी या कोई विकल्प नहीं बताया तो हमें मजबूरन 8 से 10 हजार लोगों की छंटनी करनी पड़ सकती है."
कैसे GST है जिम्मेदार
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मयंक शाह ने बताया कि हमने सरकार से 100 रुपये प्रति किलो या उससे कम कीमत वाले बिस्किट पर GST घटाने की मांग की है. दरअसल, GST लागू होने से पहले 100 रुपये प्रति किलो से कम कीमत वाले बिस्किट पर 12 फीसदी टैक्स लगाया जाता था. लेकिन सरकार ने दो साल पहले जब GST लागू किया तो सभी बिस्किटों को 18 फीसदी स्लैब में डाल दिया. इसका असर ये हुआ कि बिस्किट कंपनियों को इनके दाम बढ़ाने पड़े और इस वजह से बिक्री में गिरावट आ गई है.
The countrys largest biscuit maker Parle Products said that it may have to let go of 8,000-10,000 people #StateOfEconomy https://t.co/ks37YgobQL
— EconomicTimes (@EconomicTimes) August 21, 2019
मयंक शाह के मुताबिक पारले ने बिस्किट पर 5 फीसदी दाम बढ़ाया है. इस वजह से बिक्री में बड़ी गिरावट आई है. शाह ने बिक्री में गिरावट की वजह बताते हुए कहा कि कीमतों को लेकर ग्राहक बहुत ज्यादा भावुक होते हैं. वे यह देखते हैं कि उन्हें कितने बिस्किट मिल रहे हैं. इस अंतर को समझने के बाद ग्राहक सतर्क हो जाते हैं. यहां बता दें कि 90 साल पुरानी बिस्किट कंपनी पारले के 10 प्लांट अपने और 125 कॉन्ट्रैक्ट वाले हैं. इनसे 1 लाख कर्मचारी जुड़े हुए हैं. कंपनी का सालाना रेवेन्यू करीब 9,940 करोड़ रुपये का है.
ठीक नहीं कंपनी की माली हालात!
बीते दिनों पारले की प्रमुख प्रतिद्वंद्वी ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज के मैनेजिंग डायरेक्टर वरुण बेरी ने भी बिक्री में गिरावट का जिक्र किया था. उन्होंने कहा था कि ग्राहक 5 रुपये के बिस्किट पैकेट भी खरीदने में कतरा रहे हैं. बेरी ने कहा था, `हमारी ग्रोथ सिर्फ 6 फीसदी हुई है. मार्केट ग्रोथ हमसे भी सुस्त है.` इससे पहले मार्केट रिसर्च फर्म नील्सन ने कहा था कि इकोनॉमिक स्लोडाउन की वजह से कंज्यूमर गुड्स इंडस्ट्री ठंडी पड़ गई है क्योंकि ग्रामीण इलाकों में खपत घट गई है. नील्सन की रिपोर्ट के मुताबिक नमकीन, बिस्किट, मसाले, साबुन और पैकेट वाली चाय पर सबसे अधिक सुस्ती की मार देखने को मिली है.
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