चुनावी खर्च में भारत दुनिया में सबसे आगे, 2014 के चुनाव में खर्च हुए थे 34,998 करोड़!

संक्षेप:

  • चुनावी खर्च के लिहाज से भारत दुनिया में नंबर वन मुल्क बनते जा रहा है
  • 2014 सबसे महंगा चुनाव था जिसमें राष्ट्रीय खजाने से केंद्र सरकार ने 3,426 करोड़ रूपए खर्च किए थे
  • 1996 में लोकसभा चुनावों में 2500 करोड़ रुपये खर्च हुए थे

नई दिल्ली: चुनावी खर्च के लिहाज से भारत दुनिया में नंबर वन मुल्क बनते जा रहा है. भारत में चुनावी खर्च का आंकड़ा इतना ज्यादा है कि उसने दुनिया के सबसे अमीर और संपन्न मुल्क अमेरिका को भी पीछे छोड़ दिया है. कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस में दक्षिण एशिया कार्यक्रम के निदेशक मिलान वैष्णव के रिसर्च की मानें तो अमेरिकी राष्ट्रपति और कांग्रेस के चुनावों में 2016 के चुनावों में 6.5 बिलियन अमरीकी डालर यानी करीब 46,270 करोड़ रुपये का खर्च आया था, जबकि भारत में साल 2014 में हुए आम चुनाव में करीब पांच बिलियन डॉलर यानि 34,998 करोड़ रुपये खर्च हुआ था. कहा जा रहा है कि इस बार 60 हजार करोड़ रुपये भारत में चुनाव में झोंके जा सकते हैं.

- 1996 में लोकसभा चुनावों में 2500 करोड़ रुपये खर्च हुए थे

- इसके बाद साल 2009 में यह रकम 20 गुना ज्यादा बढ़कर 10,000 करोड़ रुपये हो गई

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चुनाव आयोग के मुताबिक, 1952 में आम चुनाव कराने पर जितने रूपए खर्च हुए थे उससे 20 गुना ज्यादा धनराशि 2009 के चुनावों पर ही खर्च हो गई थी. साल 1952 में हर मतदाता पर 60 पैसे खर्च हुए थे जबकि 2009 में हर मतदाता पर 12 रूपए का खर्च हुआ. साल 1952 के आम चुनावों में सरकार ने कुल 10.45 करोड़ रूपए खर्च किए जबकि 2009 के चुनावों में कुल 1483 करोड़ रूपए सरकार की तरफ से खर्च किए गए. साल 2004 के आम चुनाव कराने में सरकारी खजाने पर 1,114 करोड़ रूपए का बोझ पड़ा था.

भारतीय लोकतंत्र में चुनाव में धनबल का बेजा इस्तेमाल अब एक स्थापित सत्य बन चुका है. भारत में राजनीतिक चंदा या उसके लिए धन के योगदान की पारदर्शिता शुन्‍य है. भारत में यह पता लगा पाना अंसभव है कि किस राजनेता या पार्टी को कितना चंदा या धन किससे हासिल हुआ है. भारत में दानदाता डर की वजह से अपनी राजनीतिक चंदा देने का खुलासा करने के इच्‍छुक नहीं होते. इस प्रणाली में पूरी तरह से पारदर्शिता का अभाव है.

एक अध्ययन के मुताबिक बीते 30 सालों में जब भी लोक सभा चुनाव होते हैं, उस साल देश की आर्थिक गतिविधियों में धीमापन आ जाता है.
आइए जानते हैं बीते तीन लोक सभा चुनाव पर राष्ट्रीय खजाने से केंद्र सरकार ने कितने किए खर्च.

अगर आंकड़ो की बात करें तो लोकसभा चुनाव 2014 सबसे महंगा चुनाव था जिसमें राष्ट्रीय खजाने से केंद्र सरकार ने 3,426 करोड़ रूपए खर्च किए थे. साल 2009 के लोकसभा चुनाव में सरकारी खजाने से जितनी धनराशि खर्च की गई उससे 131 फीसदी ज्यादा रूपए मौजूदा लोकसभा चुनाव में खर्च किए गए थे.
दस साल पहले हुए लोकसभा चुनाव 2009 पर सरकारी खजाने से 1483 करोड़ रूपए खर्च किए गए थे. यह आधिकारिक खर्च 3,426 करोड़ रूपए के उस आंकड़े का हिस्सा है जिसके सरकार, राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों द्वारा नौ चरणों के चुनाव में खर्च किए जाने की संभावना जाहिर की गई थी. चुनाव आयोग का कहना था कि मतदाता जागरूकता एवं मतदान प्रतिशत बढ़ाने की दिशा में उसके प्रयासों पर हुए खर्च की वजह से आधिकारिक खर्च में बढ़ोत्तरी हुई.

क्या कहते हैं गैर-सरकारी आंकड़े

चुनावी खर्चे पर सेंटर फॉर मीडिया स्टडी (सीएमसी) के अनुसार 1996 में लोकसभा चुनावों में 2500 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. इसके बाद साल 2009 में यह रकम 20 गुना ज्यादा बढ़कर 10,000 करोड़ रुपये हो गई. इसमें वोटरों को गैर कानूनी तरीके से दिया गया कैश भी शामिल है. लेकिन इस बार खर्च के मामले में सभी रेकार्ड टूटते नजर आ रहे हैं. कुल खर्च 30,000 करोड़ रुपये से ज्यादा तक जा सकता है. हालांकि यह गैर-सरकारी आंकड़े हैं. लेकिन हर एक चुनावी क्षेत्र में 50 से 55 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किए गए हैं.

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