परीक्षा में 5वीं-8वीं के बच्चों को फेल न करने के नियम पर रोक, किए गए ये बदलाव

संक्षेप:

शिक्षा व्यवस्था में सरकार ने फिर से बदलाव किये है। जिसके तहत 5वीं और 8वीं में परीक्षा अनिवार्य करने और छात्रों को फेल न करने की व्यवस्था को खत्म कर दिया गया है। इस बिल को लोकसभा में ध्वनिमत से पारित कर दिया गया है। दरअसल, निशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार विधेयक 2018 पर करीब साढ़े तीन घंटे बहस चली, जिसके बाद इसे ध्वनि मत से पारित कर दिया गया है।

विधेयक पर चर्चा के दौरान मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि शिक्षा के अधिकार कानून में पहली से आठवीं कक्षा के बच्चों को फेल नहीं करने का नियम था। इससे परीक्षा का महत्व कम हो गया था और शिक्षा के स्तर में गिरावट आ रही थी। ऐसे में इस नई पहल से परीक्षा के साथ जवाबदेही आएगी और बच्चों में शिक्षा का स्तर सुधरेगा। जावड़ेकर ने कहा कि नए संशोधन विधेयक में कक्षा में अनुत्तीर्ण होने की स्थिति में बच्चों को कक्षा में रोकने या नहीं रोकने का अधिकार राज्यों को दिया गया है।

दरअसल, आठवीं तक फेल न करने की नीति से आठवीं तक बच्चे और शिक्षक पढ़ाई पर अधिक ध्यान नहीं दे रहे थे। इसके चलते ज्यादातर राज्यों में दसवीं के नतीजे खराब हो रहे थे। पिछले साल हुई केंद्रीय शिक्षा परामर्श बोर्ड की बैठक में तीन राज्यों- तमिलनाडु, केरल और तेलंगाना के अलावा सभी राज्यों ने इस नीति में बदलाव करने की मांग केंद्र से की थी। वहीं, असर और नेशनल अचीवमेंट सर्वेक्षण में भी यह सामने आया था कि आठवीं तक के ज्यादातर बच्चों के पास अपेक्षित ज्ञान ही नहीं है। इसके बाद ही सरकार ने इस बदलाव को लेकर प्रयास शुरू किए थे।

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इस संशोधन के बाद राज्य अपने यहां बच्चों को पांचवीं और आठवीं में फेल कर सकेंगे। हालांकि उन्हें फेल हुए बच्चों के लिए मई महीने में दोबारा परीक्षा आयोजित करनी होगी। अगर बच्चे इस परीक्षा में भी उत्तीर्ण होने लायक नंबर लाने में असफल होते हैं तो उन्हें फेल कर दिया जाएगा। हालांकि, फेल हुए बच्चे को किसी भी सूरत में स्कूल से निकाला नहीं जाएगा। 

 

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