Budget 2019: जल संकट दूर करने के लिए बनेगा राष्ट्रीय जल ग्रिड, ऐसे काम करेगा वन नेशन वन ग्रिड

संक्षेप:

  • 39 साल बाद एक बार फिर से राष्ट्रीय जल ग्रिड बनाने की चर्चा हो रही है.
  • नेशनल जल ग्रिड के लिए सभी नदियों को आपस में जोड़ा जाएगा.
  • फिर नदियों के पानी को ग्रिड तक लाया जाएगा और उसके बाद जरूरत के हिसाब से राज्य और ज़िलों को उसकी सप्लाई दे दी जाएगी.

नई दिल्ली: 39 साल बाद एक बार फिर से राष्ट्रीय जल ग्रिड बनाने की चर्चा हो रही है. लोकसभा में बजट के दौरान वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने पानी, बिजली और गैस का जिक्र करते हुए वन नेशन, वन ग्रिड की बात की है. क्षेत्रीय स्तर पर पॉवर ग्रिड पहले से ही काम कर रहे हैं.

यूपी हाईडेल से रिटायर्ड इंजीनियर अशोक फौजदार बताते हैं,

“ग्रिड का मतलब ये है कि बिजली देशभर में कहीं भी बने, लेकिन उसकी सप्लाई पहले ग्रिड में आती है और फिर ग्रिड से राज्यों और ज़िलों को उनकी मांग के अनुसार सप्लाई दे दी जाती है.”

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पानी बचाओ योजना पर काम करने वाले इंजीनियर रिटायर्ड निसार खान बताते हैं,

“नेशनल जल ग्रिड के लिए सभी नदियों को आपस में जोड़ा जाएगा. फिर नदियों के पानी को ग्रिड तक लाया जाएगा और उसके बाद जरूरत के हिसाब से राज्य और ज़िलों को उसकी सप्लाई दे दी जाएगी. ये विचार अच्छा है. इससे पानी की बर्बादी रुकेगी और ग्राउंड वॉटर के दोहन पर भी लगाम लगेगी.``

बाढ़ और सूखे पर लगेगी लगाम

निसार खान ने कहा, ``इसका एक सबसे बड़ा फायदा ये मिलेगा कि देश में जहां बाढ़ की समस्या है उस पर नियंत्रण लग जाएगा. साथ ही जहां सूखे के हालात रहते हैं वहां भरपूर मात्रा में पानी पहुंचने लगेगा. राष्ट्रीय जल ग्रिड से ये समस्या भी दूर होगी. जैसे असम, मेघालय, नगालैंड, त्रिपुरा, बिहार, पश्चिमी बंगाल और पश्चिमी घाट के क्षेत्रों में 200 सेमी वार्षिक से अधिक बारिश होती है. वहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी राजस्थान, कच्छ एवं सौराष्ट्र क्षेत्र में सिर्फ 10 से 50 सेमी तक ही बारिश होती है.” इसी तरह से सरकार ने गैस ग्रिड की बात भी की है. गैस के लिए भी नेशनल ग्रिड बनाने की बात कही जा रही है.

ये एक बहुत खर्चीली परियोजना है : राजेंद्र सिंह

वहीं मैग्सेसे पुरस्कार विजेता राजेंद्र सिंह का कहना है, “ये एक बहुत खर्चीली परियोजना है. इसमें खतरा भी बहुत है. दूसरी ओर हर नदी के पानी का नेचर अलग होता है. इसे ऐसे मान सकते हैं कि जिस तरह से एक शरीर में दो अलग-अलग इंसानों का खून अच्छे से काम नहीं कर पाएगा, ठीक उसी तरह से अलग-अलग नदियों के पानी को एक जगह इकट्ठा करना स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा नहीं होगा.”

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