हकलाना कोई बीमारी नहीं, स्पीच थेरेपी है कारगर इलाज

  • Wednesday | 26th July, 2017
  • health
संक्षेप:

  • स्पीच थेरेपी से दूर होता है हकलाना
  • NYOOOZ बताएगा क्या हैं हकलाने के कारण
  • स्पीच थेरेपिस्ट साबित होंगे मददगार

By : डॉ सजीव अदलखा (कम्यूनिकेशन कंसलटेंट) और सीमा अदलखा (स्पीच थेरेपिस्ट)

नोएडा । अगर आप किसी से बात करते वक्त हकलाते हैं और लोग आपके हकलाने के कारण आप हंसी का पात्र बन जाते हैं तो समझिए NYOOOZ आपको इस परेशानी का कारगर उपाय बताने जा रहा है। दरअसल हकलाना कोई बीमारी है ही नहीं ये तो सिर्फ एक तरीके का वाकदोष होता है जिसको थोड़ी से प्रैक्टिस से दूर किया जा सकता है। हाल ही में आयी रणबीर कपूर और कटरीना कैफ की फिल्म जग्गा जासूस में रणबीर कपूर को हकलाते दिखाया गया है। फिल्म तो खैर फिल्म है लेकिन असली जिंदगी में भी इस समस्या से आसानी से छुटकारा पाया जा सकता है।

ये भी पढ़े : Senior Citizen Health: बुढ़ापे में बनी रहती है इन बीमारियों का खतरा, ये लक्षण दिखें तो हो जाएं सावधान


हकलाने से सामने वाला घूर कर देखने लगता है या मज़ाक उड़ाने लगता है और ऐसे में किसी का भी आत्मविश्वास डगमगा सकता है। इसके चलते लोग कई बार खुद को हीन समझने लगते हैं और लोगों का सामना करने में आनाकानी करने लगते हैं। हकलाने के कारण लोग अपनी जिंदगी को बोझ समझने लगते हैं। दरअसल ये कोई बीमारी है ही नहीं बल्कि आसान शब्दों में तो कहें तो ये एक ग़लत आदत है जिससे आसानी से निजात मिल सकती है। अगर इसको दूर करने की कोशिश नहीं की जाती तो ये दिलो दिमाग पर हावी होती जाती है। स्पीच थेरेपी आपकी समस्या का आसान उपाय है। पिछले 30 सालों से इसका सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया जा रहा है।

सीमा अदलखा (स्पीच थेरेपिस्ट)

हम क्यों हकलाना शुरु करते हैं?
हकलाहट का कोई एक कारण नहीं होता है। ये परिवारिक तनाव और अस्वस्थ वातावरण के कारण हो सकता है। ये किसी बीमारी के बाद भी शुरु हो सकता है। बच्चा अपने परिवार के लोगों को देखकर ही बोलना सीखता है। अगर परिवार में कोई हकलाने वाला सदस्य है तो ज़ाहिर है बच्चे पर भी इसका दुष्प्रभाव पड़ेगा। हालांकि ये ज़रूरी नहीं है कि बच्चा हकलाए ही लेकिन इसकी आशंका से इंकार भी नहीं किया जा सकता है। हकलाना कोई अनुवांशिक लक्षण नहीं होता है। डॉक्टरों की भाषा में इसे साइको सोमैटिक फैक्टर या साइको फीयर कहते हैं। कई बार सिर पर लगी बड़ी चोट के कारण भी लोग हकलाना शुरु कर देते हैं। वैसे आपको बता दें कि हकलाहट सबसे ख़तरनाक तब होती है जब शख्स किसी हकलाने वाले शख्स की नकल करके हकलाता है।

तेज़ बुखार से शुरु हो सकता है हकलाना
तेज़ बुख़ार जैसे टायफाइड या मैनिंजाइटिस (दिमागी बुखार) होने के बाद भी बच्चे कई बार हकलाने लगते हैं। कुछ मनोवैज्ञानिक कारणों से भी बच्चों की वाकक्षमता पर बुरा असर पड़ता है। कई बार देखा गया है कि बच्चे घर के कलह, घर में बच्चों की पिटाई, पढ़ाई और अच्छे नम्बर लाने के ज्यादा प्रेशर में हकलाना शुरु कर देते हैं। कई बार मां बाप बच्चों की पिटाई कर उनको कमरे में बंद कर देते हैं। ऐसे माहौल में कई संवेदनशील बच्चे रुक-रुक कर या डर कर बोलना शुरु कर देते हैं और आगे चलकर वह हकलाना शुरु कर देते हैं।

हकलाने की नकल करना सबसे ख़तरनाक
स्पीच थेरेपिस्ट मानते हैं कि कई बार बच्चे अपने सहपाठी या पड़ोस में रहने वाले किसी हकलाने वाले शख्स की नकल करते हैं और परिवार के लोग बड़े चाव से सुनते रहते हैं। ये सामान्य तौर पर 9-10 साल की उम्र के पहले होता है। दरअसल इस उम्र तक बच्चों की वाकक्षमता पूरी तरह विकसित नहीं हो पाती है और हकलाने की नकल करने के कारण उनके अंदर विकार पैदा हो जाता है। स्पीच थेरेपिस्ट मानते हैं कि कई बार बचपन में घटने वाली सामान्य से दिखने वाली घटनाएं व्यक्तित्व निर्माण में असमान्य भूमिका अदा कर सकती है। माता-पिता बच्चों को स्वछंद, स्वस्थ और भयमुक्त वातावरण देकर काफी हद तक वाकदोषों से उनको बचा सकते हैं।

हकलाना नहीं है लाइलाज
कुल मिलाकर एक बात साफ है कि हकलाना कोई बीमारी नहीं है सिर्फ एक बुरी आदत है और इसके इलाज के लिए किसी दवा की बिल्कुल ज़रूरत नहीं होती। केवल स्पीच थेरेपी यानी वाक चिकित्सा इसका कारगर उपाय है। ये बहुत कम समय में असरदार साबित होती है। लोगों में भ्रांति है कि हकलाना समय के साथ ठीक हो जाएगा लेकिन ऐसा नहीं होता है। सालों गुज़र जाते हैं लेकिन हकलाना नहीं जाता है। ऐसे में स्पीच थेरेपी ही रामबाण साबित होती है।

कैसे होती है स्पीच थेरेपी
हकलाने के ट्रीटमेंट के लिए सबसे पहले गले, जीभ वा सांस की कसरत करायी जाती है। इससे बोलते समय होने वाली परेशानी कुछ कम होती जाती है। इसको `प्ले थेरेपी` कहा जाता है। इसके साथ ही डॉक्टर बच्चों को घर में एक अच्छा माहौल देने के लिए भी कहते हैं।

स्पीच थेरेपिस्ट पीड़ित व्यक्तियों या बच्चों को मानसिक और सामाजिक स्तर पर आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास करते हैं। स्पीच थेरेपी, साइको थेरेपी, ग्रुप थेरेपी और मेंटेनेंस थेरेपी की मदद से लोगों को हकलाहट से मुक्ति दिलाने का कोशिश की जाती है।

If You Like This Story, Support NYOOOZ

NYOOOZ SUPPORTER

NYOOOZ FRIEND

Your support to NYOOOZ will help us to continue create and publish news for and from smaller cities, which also need equal voice as much as citizens living in bigger cities have through mainstream media organizations.

Read more Noida की अन्य ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें और अन्य राज्यों या अपने शहरों की सभी ख़बरें हिन्दी में पढ़ने के लिए NYOOOZ Hindi को सब्सक्राइब करें।

Related Articles