एशिया कप में क्यों संघर्ष करती दिखी श्रीलंका?

संक्षेप:

  • एशिया कप से 2 टीमें हो चुकी है बाहर
  • श्रीलंका ने हारे अपने दोनों मैच
  • क्यों हुई श्रीलंका की ये हालत

6 टीमों से शुरू हुई एशिया कप से श्रीलंका और हांगकांग बाहर हो चुकी है और अब 4 टीमों के बीच फाइनल को जीतने के लिए संघर्ष जारी है । लीग में ही बाहर होने वाली हांगकांग की टीम जहां पहले मैच में पाकिस्तान से बुरी तरह हार गई वहीं दूसरे मैच में भारत के खिलाफ एक समय तो जीत की तरफ जाती दिख रही थी पर कम अनुभव की वजह से मैच हार गई।

हालांकि हागंकांग पहली बार इस टूर्नामेंट में खेल रही थी, उस हिसाब से उनके प्रदर्शन को अच्छा कहा जाएगा। लेकिन जिस तरह से श्रीलंका को पहले मैच में बंग्लादेश और दूसरे मैच में अफगानिस्तान से करारी हार का सामना करना पड़ा, उसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी।

ये हार श्रीलंका के लिए काफी चिंता का विषय है क्योंकि जब से कुमार संगकारा, महेला जयवर्धने, तिलकरत्ने दिलशान, चमिंडा वास और मुथैया मुरलीधरन ने संन्यास लिया है तबसे टीम लगातार कमजोर हो रही है। जिसका असर सीधे उनके प्रदर्शन पर रही है। और नए खिलाड़ियों से सजी ये टीम अपने आप को सेट नहीं कर पा रही है। फिलहाल श्रीलंका की टीम में मुश्किल से 2 से 3 खिलाड़ी भरोसेमंद है बाकियों को बहुत कुछ सीखने की जरूरत है।

ये भी पढ़े : मुजफ्फरनगर: 26 फरवरी से होगा डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट लीग का आयोजन


यही नहीं कुछ जिम्मेदारियां बोर्ड की भी होती है आजकल ज्यादातर बोर्ड अंदरूनी राजनीति में फंस चुकी है, जिस कारण टीम के क्या कर रही उससे फोकस हट कर कुर्सी पर शिफ्ट हो जाती है। हालांकि ऐसा सिर्फ श्रीलंका के साथ नहीं हो रहा है बल्कि बड़ी-बड़ी टीमें जिसका कभी वर्ल्ड क्रिकेट में दबदबा रहता था, उसको भी ऐसे दिन देखने पड़े हैं।

किसी भी खेल या जीवन में उतार चढ़ाव आते रहते हैं, लेकिन ऐसा क्यों है कि एक टीम जो कभी टॉप होती थी वह आज 9वें या 10वें नंबर पर दिखाई देती है। यहां एक बात ध्यान देने वाली है कि सभी टीमों पर अगर नजर डाले तो एक चीज साफ पता चलता है कि, कहीं न कहीं टीम को 5 से 8 खिलाड़ी मिलकर मजबूत बनाते हैं और वहीं खिलाड़ी लगातार टीम में बने रहते हैं , क्योंकि टीम मैनेजमेंट हमेशा एक बेस्ट टीम के साथ मैदान पर उतरना चाहती है, इस दौरान एक गलती हो जाती है कि युवा खिलाड़ियों को ज्यादा मौका नहीं मिल पाता. अगर मिलता भी है तो किसी खिलाड़ी के आराम मिलने पर या चोटिल होने पर।

यहां पर ये कह सकते हैं कि इस दौरान नींव तो मजबूत होती है लेकिन छत के पास जाकर टीम कमजोर हो रही होती है। कुछ ऐसा ही हुआ ऑस्ट्रेलिया के साथ. ये ठीक है कि उन्होंने 2015 का वर्ल्ड कप अपने नाम किया हो लेकिन 203 की तुलना में देखें तो टीम लगातार कमजोर हुई है।

आप खुद देखिए कि माइक हसी जैसे खिलाड़ी को अपने 30वें साल में पहला मैच खेलने के मौका मिला, जिसे वर्ल्ड के बेस्ट फिनिशर में से एक कहा जाता है।

इसका कारण यही था कि सारे खिलाड़ी सेट थे, किन के साथ मैच खेलना है और जब डेमियन मार्टिन ने संन्यास लिया तब जाकर उन्हें मौका मिला। जबकि अमूमन क्रिकेटर को 20 से 25 साल की उम्र में खेलने का मौका मिल जाता है। 30 वो उम्र होती हैं जहां से खिलाड़ी धीमा पड़ने लगता है और संन्यास का भी सोचने लगता है उनमें कुछ खिलाड़ियों पर नजर डाले तो माइकल क्लार्क, ब्रैंडन मैक्कुलम,मार्कस एडवर्ड ट्रेस्कोथिक, इयान बेल,जोनाथन ट्रॉट, ग्रीम स्मिथ और एबी डिविलियर्स जैसे वर्ल्ड के टॉप खिलाड़ी शामिल हैं। हालांकि कि इसमें से माइकल क्लार्क जहां लगातार पीठ की चोट से परेशान थे तो वहीं जोनाथन ट्रॉट अवसाद के शिकार हो गए थे। जिस कारण उन्हेंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से जल्दी संन्यास का फैसला ले लिया। फिर भी माइक हसी फर्स्ट क्लास खेल-खेलकर इतने मंझे हुए खिलाड़ी बन गए थे कि उनको अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ज्यादा दिक्कत नहीं हुई। और उनका करियर शानदार रहा।

वेस्टइंडिज की टीम भी बहुत दिनों तक नंबर बन रहने के बाद इन दिनों रैकिंग में बहुत नीचे दिखाई देती है। इस टीम को देखें तो 2013 के आसपास ब्रयान लारा, शिवनारायण चंद्रपॉल और रामनरेश सरवन थे. उसके बाद भले ही टी-20 के हिसाब से बहुत सारे खिलाड़ियों ने अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाई लेकिन बतौर टीम वेस्टइंडिज की पहचान नहीं बनी। जिस कारण आए दिन वनडे और टेस्ट क्रिकेट में टीम कमजोर होती चली गई।

ऐसा हाल सिर्फ बड़ी टीमों के साथ ही नहीं है छोटी टीमों का भी यही हाल है। आप जिम्बावे को ही देखिए, एंडी फ्लावर और ग्रांट फ्लावर के साथ-साथ हीथ स्ट्रीक और हेनरी ओलंगा ने एक टीम बनाकर दी लेकिन उसे संभालने के लिए उसके बाद खिलाड़ी नहीं बना पाए। बंग्लादेश को तो अभी से चिंता करना चाहिए कि शाकिब अल हसन, तमीम इकबाल, मुशफिकुर रहीम और मशरफे मुर्तजा की जगह उनके जाने के बाद कौन लेगा? क्या उसके लिए उन्होंने कोई बैकअप बनाया है? ऐसा देखने से पता नहीं चलता।

इस मामले में इंग्लैंड, न्यूजीलैंड, भारत ने काफी काम किया है और बैकअप भी बना रखा है. अभी भारत का विश्व क्रिकेट में अच्छी खासी पकड़ है उसका कारण ये है कि लंबे समय तक भारत के कप्तान रहे महेंद्र सिंह धोनी और भारत की रणनीति ये रही कि जो भी खिलाड़ी उम्र में ज्यादा और फील्ड पर थोड़े सुस्त होते जा रहे हैं, उनको धीरे-धीरे कम मौके दिए जाए ताकि और युवा खिलाड़ियों को ज्यादा मौके दिए मिले। जिससे एक भविष्य तैयार हो सके, उसी का परिणाम है कि विरेंद्र सहवाग, गौतम गंभीर ,युवराज सिंह को ज्यादा मौके नहीं मिले लेकिन रोहित शर्मा, शिखर धवन और रहाणे के मौके दिए गए।

इसलिए बड़े खिलाडियों की भरपाई के लिए बहुत जरूरी है कि युवा खिलाड़ियों को मौके दिए जाए, हां कुछ मैच में वे सफल होंगे कुछ मैच में असफल लेकिन उसका किस तरह सही इस्तेमाल करके एक टीम के लिए उपयोगी बनाया जाए ये सोचना होगा। अगर ऐसा नहीं होता है तो आने वाले दिनों बहुंत सी बड़ी टीमों को आप संघर्ष करते दिखेंगे।

If You Like This Story, Support NYOOOZ

NYOOOZ SUPPORTER

NYOOOZ FRIEND

Your support to NYOOOZ will help us to continue create and publish news for and from smaller cities, which also need equal voice as much as citizens living in bigger cities have through mainstream media organizations.

Read more Noida की अन्य ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें और अन्य राज्यों या अपने शहरों की सभी ख़बरें हिन्दी में पढ़ने के लिए NYOOOZ Hindi को सब्सक्राइब करें।

Related Articles