काशी में परम्परिक अंदाज में निकली गोवर्धन यात्रा

संक्षेप:

  • दिवाली के अगले दिन होती है गोवर्धन पूजा
  • इस पर्व के दिन शाम के समय होती है पूजा
  • श्रीकृष्ण ने इंद्र का मानमर्दन कर गिरिराज की पूजा की थी

वाराणसी- दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा के रूप में मनाया जाता है। यादव समाज से जुड़े लोग भगवान श्री कृष्ण के द्वारा इंद्र के घमंड को चूर करने वाले लीला की याद में ये इस त्यौहार को मनाते है साथ ही आज के दिन पशु कि पूजा करते है। गोवर्धन पूजा का पर्व कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की प्रतिपाद तिथि को मनाया जाता है। इस दिन शाम के समय में विशेष रुप से भगवान कृष्ण की पूजा की जाती है। इस दिन को अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है। शिव कि नगरी काशी में यादव समाज द्वारा भव्य शोभा यात्रा निकालकर भगवान् श्री कृष्ण को याद किया जाता है।

भारतीय लोकजीवन में इस पर्व का अधिक महत्व है। इस पर्व में प्रकृति के साथ मानव का सीधा संबंध दिखाई देता है। इस पर्व की अपनी मान्यता और लोककथा है। गोवर्धन पूजा में गोधन यानि गायों की पूजा की जाती है। शास्त्रों के अनुसार गाय उसी प्रकार पवित्र होती है जैसे नदियों में गंगा। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरुप भी कहा गया है। इसलिए गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है। इस दिन के लिए मान्यता प्रचलित है कि भगवान कृष्ण ने वृंदावन धाम के लोगों को तूफानी बारिश से बचाने के लिए पर्वत अपने हाथ पर ऊठा लिया था।

ये भी पढ़े : सारे विश्व में शुद्धता के संस्कार, सकारात्मक सोच और धर्म के रास्ते पर चलने की आवश्यकता: भैय्याजी जोशी


शहर के लहुरावीर स्थित आज़ाद पार्क से इस मौके पर यादव बंधुओ के द्वारा गोवर्धन शोभा यात्रा निकाली जाती है। इस गोवर्धन शोभा यात्रा में सैकड़ों की संख्या में यादव समाज के लोग पारंपरिक वेश-भूषा में प्रभु श्री कृष्ण के उद्घोष के साथ शामिल होते है। शोभा यात्रा में घोड़े और बग्गी पर सवार दर्जनों भक्त देवी-देवताओं की भूमिका में लोगों के आकर्षण का मुख्य केंद्र होता है। यह शोभा यात्रा लहुरावीर से निकलकर विभिन्न मार्गो से होते हुए राजघाट स्थित डॉ राममनोहर लोहिया घाट पर भगवान् श्री कृष्ण के पूजन स्थल पर जाकर संपन्न हुई। मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण ने अपनी लीला में इंद्र को सबक सिखाने के लिए मुसलाधार बारिश से ब्रजवासियों को बचाया था। तभी से यह पर्व मनाने की परम्परा चली आ रही है।

If You Like This Story, Support NYOOOZ

NYOOOZ SUPPORTER

NYOOOZ FRIEND

Your support to NYOOOZ will help us to continue create and publish news for and from smaller cities, which also need equal voice as much as citizens living in bigger cities have through mainstream media organizations.

अन्य वाराणसीकी अन्य ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें और अन्य राज्यों या अपने शहरों की सभी ख़बरें हिन्दी में पढ़ने के लिए NYOOOZ Hindi को सब्सक्राइब करें।

Related Articles