इतिहास के पन्नों में दर्ज हुई महात्मा गांधी की हर यात्रा, काशी में स्थापित किया अखंड भारत का मंदिर
- बापू ने 13 बार की थी काशी की यात्रा।
- काशी में ही रखी गई श्री गांधी आश्रम की नींव।
- बापू ने कहा था - धरती माता तो सदैव हैं।
वाराणसी- विश्वविख्यात वैज्ञानिक आइंस्टीन ने महात्मा गांधी के जीवन दर्शन से प्रभावित होकर कहा था कि आने वाली पीढ़ियां शायद मुश्किल से ही विश्वास कर सकेंगी कि गांधी जैसा हाड़-मांस का पुतला कभी इस धरती पर हुआ होगा। राष्ट्रपिता के रूप में बापू आज भी हर दिल में बसते हैं। बापू 13 बार काशी आए थे। जब भी वह काशी आए वह दिन इतिहास के पन्नों में दर्ज है। आज दो अक्तूबर को बापू की जयंती पूरा देश मना रहा है।
काशी विद्यापीठ के पूर्व वाणिज्य संकायाध्यक्ष प्रो. अजित कुमार शुक्ला ने बताया कि बापू की 11वीं काशी यात्रा तो ऐतिहासिक रही। अक्तूबर 1936 में राष्ट्रपिता ने इस यात्रा में अखंड भारत की संकल्पना का प्रतीक भारत माता मंदिर का उद्घाटन किया।
बापू ने कहा था - धरती माता तो सदैव हैं
25 अक्तूबर 1936 को भारत माता मंदिर के उद्घाटन समारोह में बापू ने कहा था जिस माता ने हमें जन्म दिया, वह कुछ ही वर्ष जीवित रहेंगी, किंतु धरती माता तो सदैव हैं। यदि वह नहीं हैं तो हम भी नहीं हैं। उसी माता का अंश भारत माता हैं, जिसका मानचित्र आज वेदमंत्रों से पुनीत हुआ। यहां हम दिल का द्वेष भूलकर एकत्र हों और भारत माता की सेवा करें।
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इस मंदिर में भारतमाता से प्रेम करने वाले हर व्यक्ति का स्वागत होगा और यहां अपनी सामर्थ्य तथा विश्वास के अनुरूप आराधना कर सकेंगे। उद्घाटन समारोह में खान अब्दुल गफार खां, सरदार पटेल, शिवप्रसाद गुप्त, भगवान दास समेत राष्ट्रीय आंदोलन के कई दिग्गज मौजूद थे। देश के विभिन्न प्रांतों से 35 हजार लोग यहां आए थे।
काशी में ही रखी गई श्री गांधी आश्रम की नींव
आचार्य कृपलानी काशी हिंदू विश्वविद्यालय छोड़कर काशी विद्यापीठ में आचार्य बने। उसी यात्रा के बीच उन्होंने गांधी जी से पूछा कि आगे क्या करना है। गांधी जी ने कहा कि कहीं बैठ जाओ और चरखे का काम संगठित रूप से करो।
गांधी जी की प्रेरणा पर आचार्य कृपलानी ने काशी से खादी एवं चरखे के संस्थागत संगठित आंदोलन की शुरूआत करते हुए देश की पहली खादी संस्था श्री गांधी आश्रम की नींव रखी। विद्यापीठ में बापू के कमरे को धरोहर के रूप में विकसित करने की तैयारियां की जा रही हैं।
समाप्त हो गई बापू की अंतिम निशानी
वाराणसी के बेनियाबाग पार्क में गांधी चबूतरा काशी में बापू की अंतिम निशानी के तौर पर जाना जाता है। पार्क के सुंदरीकरण के कारण अब गांधी चबूतरे का अस्तित्व समाप्त हो चुका है। समाजसेवी और स्थानीय लोगों ने प्रशासन से कई बार यह मांग की है कि गांधी चबूतरे को पुन: स्थापित किया जाए।
कांग्रेस के पूर्व जिलाध्यक्ष प्रजानाथ शर्मा ने बताया कि गांधी चबूतरे पर ही बापू का अस्थि कलश रखा गया था। यह स्थल हर काशी वासी के लिए पूजनीय है। आज गांधी चबूतरे का अस्तित्व समाप्त हो चुका है और यह बेहद दुखद है। हम अपने राष्ट्रपिता की अंतिम निशानी भी सहेज कर नहीं रख सके। शकील अहमद जादूगर ने बताया कि डर्बीशायर क्लब की ओर से पिछले 15 सालों से बापू के चबूतरे को भव्य बनाने की मांग की जा रही है।
बेनियाबाग में पार्किंग निर्माण के दौरान चबूतरे को हटा दिया गया है। सरकार से हमारी मांग है कि बापू के चबूतरे को उसी स्थान पर बनवाया जाए। प्रो श्रद्धानंद ने बताया कि अंतिम बार बापू बीएचयू के रजत जयंती समारोह में 21 जनवरी 1942 को काशी आए थे। महोत्सव में भाग लेने के बाद वह कांग्रेसजनों से बातचीत में जल्द दोबारा आने का आश्वासन देकर विदा हुए, लेकिन इसके बाद उनका अस्थि कलश ही काशी आया था।
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