जानिए वाराणसी के इस अखाड़े की अनसुनी कहानी

संक्षेप:

  • एक पहचान यहां की ऐतिहासिक अखाड़ों से है
  • ढ़ेरों पहलवानों ने इन अखाड़ों में दिन रात पसीना बहाया
  • इन्हीं अखाड़ों में एक है स्वामी नाथ अखाड़ा

By- अभिषेक जायसवाल

शिव की नगरी काशी की एक पहचान यहां की ऐतिहासिक अखाड़ों से है। इन्हीं अखाड़ों के ढ़ेरों पहलवानों ने इन अखाड़ों में दिन रात पसीना बहाया पुरे विश्व के धुरंदर पहलवानों को चित किया है।  इन्हीं अखाड़ों में एक है स्वामी नाथ अखाड़ा जिसकी दास्तां आज NYOOOZ आपको बताएगा।    

वाराणसी के तुलसी घाट में स्थित स्वामीनाथ अखाड़े का इतिहास लगभग 478 साल पुराना है। कहा जाता है कि इस अखाड़े की स्थापना गोस्वामी तुलसीदास जी ने की थी लेकिन संकट मोचन के महन्त तुलसीराम जी के समय से अखाड़े को प्रसिद्धि मिली। महन्त श्री स्वामी नाथ ने इस अखाड़े को प्रसिद्धि की चरम सीमा पर पहुँचा दिया। उसके बाद उनके नाम के साथ इस अखाड़े को जोड़ दिया गया। वर्तमान में इस अखाड़े के स्वामी संकटमोचन मंदिर के महंत विशंभर नाथ मिश्र है।  बदलते दौर में लोग भले ही जिम का रूख कर रहे हों और अखाड़े अपनी अंतिम सांसे ले रहे हों लेकिन आज भी आधुनिकता के इस दौर में ये अखाड़ा काशी की परम्पराओं को समेटे हुआ है। यहां आज भी आपको हर दिन पहलवान अखाड़े में डम्बल, गदा भेरते दिखेंगे। 

 अपनी परम्पराओं से सहेजे इस अखाड़े में इस साल पहली बार लड़कियां भी कुश्ती के लिए मैदान में उतरीं। मौका था नागपंचमी का जब पहली बार 478 सालों में इस प्राचीन अखाड़े में महिलाओं को भी अपना कुश्ती कौशल दिखाने का मौका मिला।   

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महंथ विशंभर नाथ मिश्रा ने बताया कि `वाराणसी में में इस साल हम लोगों ने नई परम्परा की शुरुआत की है हमारा मकसद है की लड़कियां भी पहलवानी के क्षेत्र में आगे बढ़ें और देश का नाम रोशन करें।  इस प्राचीन अखाड़े को महिलाओं के लिए खोल कर हम उन्हें इस खेल में आने के लिए प्रेरित करना चाहते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि लक्ष्मीबाई की वीरता और निर्भयता से प्रेरणा लेते हुए ये लड़कियां देश का नाम रोशन करेंगी।   

10 साल की पलक यादव ने बताया कि `मेरे लिए ये बेहद खुशी का पल थ।  मुझे ऐसी जगह कुश्ती लड़ने का मौका मिला था, जहां सालों पहले मेरे दादा `कल्लू पहलवान` और उनके साथी कुश्ती लड़ा करते थे। पलक यूपी की उन लड़कियों में से हैं जिसने फ़िल्म `दंगल` देखने के बाद कुश्ती को अपना करियर बनाने का फ़ैसला किया है। 


इस अखाड़े में पहली बार महिला पहलवान   

बनारस के पुरानी रवायतों के अनुसार नागपंचमी को पहलवान अपने बल का प्रदर्शन अखाड़ों पर किया करते हैं। यही नहीं इन अखाड़ों पर महिला का प्रवेश वर्जित होता था लेकिन बनारस के इतिहास में ये पहली बार हुआ कि तुलसी घाट के अखाड़ा स्वामीनाथ पर आज महिला पहलवानों ने अपना दमखम दिखाया। 

अन्य अखाड़े खो रहे पहचान   

 एक समय था जब बनारस की पहचान यहां के अखाड़ों और पहलवानों से हुआ करती थी। आज न तो वैसे मिट्टी के अखाड़े हैं और न ही पहलवान। बनारस के गली-कूचों में स्थित अखाड़े देश को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर के सैकड़ों पहलवान दे चुके हैं। लेकिन आज अन्य खेलों की तुलना में मिट्टी के अखाड़े पर पहलवानों की संख्या अंगुली पर गिनी जा सकती हैं।  तुलसी घाट का नाम, 16वीं शताब्दी के महान हिंदू कवि, तुलसीदास के नाम पर पड़ा था। तुलसीदास ने वाराणसी में ही रामचरितमानस की रचना की थी।  माना जाता है कि वो तुलसीदास ही थे जिन्होंने गंगा किनारे इस दंगल की शुरुआत की थी। ये प्राचीन अखाड़ा उसके बाद से ही चला आ रहा है और कल्लू पहलवान जैसे महान खिलाड़ी भी इस अखाड़े की ही देन हैं।        

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