जानिए वाराणसी में क्यों मनाई जाती है देव दिवाली और क्या है इसका महत्व?

संक्षेप:

  • कार्तिक का महीना होता है बहुत शुभ और फलदायी
  • दान, पुण्य, गंगा स्नान और पर्व का होता है विशेष महत्व
  • जानिए क्यों  मनाई जाती है देव दिवाली

वाराणसी: हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक का महीना बहुत शुभ और फलदायी माना जाता है। कार्तिक महीने में दान, पुण्य, गंगा स्नान और पर्व का विशेष महत्व होता है। शरद पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक कई त्योहार आते हैं जिसमें अंतिम त्योहार देव दिवाली कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। देव दिवाली दीपावली के 15 दिन बाद मनाई जाती है। इस बार यह पर्व 23 नवंबर को है। देव दिवाली का यह उत्सव उत्तर प्रदेश के बनारस शहर में बड़े भव्य तरीके से मनाई जाती है। देव दिवाली के बनारस में इतने भव्य तरीके से मनाए जाने के पीछे कई कारण है।

1- पौराणिक मान्यता के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के कुछ दिन पहले देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु 4 महीने की निद्रा के बाद जागते हैं। जिसकी खुशी में सभी देवता स्वर्ग से उतरकर बनारस के घाटों पर दीपों का उत्सव मनाते हैं।

2- ऐसी एक अन्य मान्यता है कि दीपावली पर माता लक्ष्मी अपने प्रभु भगवान विष्णु से पहले जाग जाती हैं, इसलिए दीपावली के 15वें दिन कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवताओं की दीपावली मनाई जाती है।

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3- दूसरी मान्यता के अनुसार तीनों लोको में त्रिपुरासुर राक्षस का आंतक था। तब भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन काशी में पहुंच कर त्रिपुरासुर राक्षस का वध कर सभी को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई थी। इससे प्रसन्न होकर सभी देवताओं ने स्वर्ग लोक में दीप जलाकर दीपोत्सव मनाया था।

4- देव दिवाली की परम्परा सबसे पहले बनारस के पंचगंगा घाट पर 1915 में हजारो की संख्या में दिये जलाकर की गई थी। तभी के बनारस में भव्य तरीके से घाटो पर दीये सजाए जाते हैं।

5- बनारस का यह उत्सव करीब तीन दशक पहले कुछ उत्साही लोगों के प्रयासों से शुरू हुआ। नारायण गुरु नामक एक सामाजिक कार्यकर्ता ने युवाओं की टोली बनाकर कुछ घाटों से इसकी शुरूआत की और फिर धीरे-धीरे दूसरे घाटों तक यह फैलता हुआ करीब एक दशक पूर्व अपने ऐसे भव्य रूप में आ चुका है।

6- काशी में शहीदों को समर्पित करने के लिए कार्तिक पूर्णिमा के दिन इतने भव्य तरीके से देव दिवाली मनाई जाती है।

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