लोकसभा चुनाव स्पेशल: मोदी है तो मुमकिन है, हर-हर मोदी घर-घर मोदी

संक्षेप:

  • कई मायनों में अदभुत है यह चुनाव
  • बीजेपी की खुशनसीबी है कि उनके पास अमित शाह जैसा चाणक्य है
  • अपने आप को नेहरू-गांधी परिवार से अलग करें कांग्रेस  

By: Madan Mohan Shukla

यह चुनाव कई मायनों में अद्भुत है। चुनाव परिणाम अवश्य ही राजनीतिक पंडितों को सोचने को बाध्य करता है ,यह कैसे हो गया। यह हम सब अचंभित यह अकल्पित परिणाम आये तो कैसे? लेकिन फिर भी मैं मोदी जी को मान गया कैसे उलटी बयार को अपने पक्ष में किया जाता है। मोदी जी आप खुद में विपक्ष को उसी के गांडीव से चारों खाने चित करने की कला की एक संस्था हो और ऊपर से बीजेपी की खुशनसीबी की अमित शाह जैसा चाणक्य। अगर वास्तव में आज चाणक्य जिन्दा होते तो अमित शाह से यही कहते आज की राजनीति का जो रोड मैप है उसके जनक आप ही हो इसीलिए आप मेरे गुरु मैं आपका चेला।

लेकिन वाह रे हमारे प्यारे मतदाता आपने मोदी जी पर वोटो की ऐसी बरसात की,उसकी सुनामी में सारा विपक्ष स्तब्ध रह गया और उसका अस्तित्व ही खतरे में आ गया। आखिर मोदी जी को पता है जनता की दुखती रग क्या है उसको कैसे भुनाना है इसके मोदी पुराने खिलाडी है फिलहाल मोदी जी बधाई के पात्र है और 123 करोड़ जनता ने आप पर विश्वास जताया है उस पर खरा उतरना होगा और जो गलतियां आप ने पहले की उसको सुधारना आपकी प्राथमिकता होनी चाहिए। मोदी जी यह फूलों का सेज़ नहीं काटों की डगर है आगे चुनौती ही चुनौती है। आज आपके पास पूर्ण बहुमत है उसका उपयोग हो जनता की भलाई में सच्चे मन से, न की सत्ता पर काबिज रहने की प्रवर्ति जन्म लेने पाये ऐसी कल्पना भी लोकतंत्र और जनता के साथ धोखा होगा। 123 करोड़ जनता की शुभकामना आप के साथ है।

ये भी पढ़े : राम दरबार: 350 मुस्लिमों की आंखों में गरिमयी आंसू और जुबां पर श्री राम का नाम


कई मायने में यह चुनाव याद रखा जायेगा। राजनीति का गिरता स्तर। राजनेताओ की शब्दावली में निम्न स्तर की गिरावट ,घृणा की राजनीति साथ-साथ इससे जुड़ी संस्थाओं की गिरती साख इस चुनाव का सार था। पहली बार इस चुनाव में सेकुलरिज्म और साम्प्रदायिकता मुद्दा नहीं बन सके। जाति और परिवारवाद की राजनीति मुँह के बल गिरी। क्षेत्रवाद का कोई नामलेवा नहीं रहा। हमें याद रहना चाहिए की ये सब पिछले चुनावों के मुद्दे थे। लेकिन बदलते परिवेश में इन सभी मुद्दो की जगह देश और लोगों की प्रगति,राष्ट्रवाद और विश्वपटल पर हमारी हैसियत आदि ने ले ली।

स्वस्थ्य एवं स्थिर प्रजातंत्र के लिए न केवल मजबूत और देश हित में निर्णय लेने वाली सरकार चाहिए बल्कि एक मजबूत विपक्ष की भी ज़रूरत है। जो सरकार के अच्छे काम का समर्थन करे और गलत कदम उठाने पर पुरज़ोर विरोध भी करे। किसी भी प्रजातंत्र के लिए यह सुखद नहीं कि नेता विपक्ष का पद इसलिए खाली रहे कि कोई विपक्षी दल संसद की कुल संख्या का 10 फीसदी सीट न जीत सके।

अब समय आ गया है कि कांग्रेस अपने को नेहरू-गांधी परिवार से अलग करें ताकि पार्टी मुक्त हवा में साँस ले सके और बदली हुई परिस्थीतियों के अनुरूप ढल सके। कांग्रेस गैर जिम्मेदार पार्टी साबित हुई 2014 से 2017 तक हाथ पर हाथ धरे बैठे रही गांधी परिवार के जादू से मंत्रमुग्ध होने का भ्रम ठीक चुनाव से पहले प्रियंका की इंट्री, चौकीदार चोर है, दूसरी छेत्रिय दलों से गठबंधन में लचीला रुख न होना आदि आदि। कांग्रेस ने राफेल को लेकर चौकीदार चोर है का नारा गढ़कर भयंकर भूल कर दी जब भी आप कोई मुकाबला जीतना चाहते है तो अपनी कमजोरी को ढकते हुए विरोधी की कमजोर कड़ी को निशाना बनाते है लेकिन कांग्रेस ने ठीक उलटा किया। भ्रष्टाचार को लेकर निशाने पर रही कांग्रेस और गांधी परिवार यही कमजोर पक्ष उजागर करके प्रतिद्वंदी के सबसे मजबूत पक्ष यानि मोदी की ईमानदार छवि पर प्रहार किया। जिसका परिणाम भुगतना पड़ा।

कांग्रेस की दूसरी सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि वह इंदिरा गांधी के समय की कांग्रेस जिसमे एके0एंटोनी, मोती लाल वोरा, संजय गांधी वाली कांग्रेस जिसमें ग़ुलाम नबी आज़ाद, कमलनाथ, अशोक गहलोत, आनंद शर्मा जिन्होंने न कोई संघर्ष न कोई आंदोलन किया हमेशा सत्ता पर काबिज रहे। राहुल की छाताधारी कांग्रेस जिसमें रणदीप सिंह सुरजेवाला, भारत सिंह सोलंकी, सचिन पायलट, ज्योतिरादित्य सिंधिया एवं प्रियंका गांधी इनको विरासत में पद एवं गरिमा मिली जो कारण बनी इनकी बुरी हार का। अब समय आ गया है कि अगर सत्ता हासिल करनी है तो ज़मीनी हक़ीक़त से एक दो होना पड़ेगा । प्रदेश वार कैडर तैयार करना निचले पायदान से संगठन को प्रदेश वार पुनर्वजीवित करना कांग्रेस की ज़रूरत है।

कांग्रेस का इतिहास स्वर्णिम है जिसके लिए कांग्रेसियों ने आज़ादी में संघर्ष किया। इसमे पंडित नेहरू जिन्होंने 11 साल जेल में बिताए। इसके अलावा पार्टी को संभल देने में मोतीलाल नेहरू ,सुभाष चंद्र बोस,सरदार पटेल,जे0बी0 कृपलानी,मौलाना अबुल कलाम आजाद ,लाल बहादुर शास्त्री आदि आदिं ने इस पार्टी को एक दिशा तथा आज़ादी के बाद देश को एक मुकाम दिया और आज उसके अस्तीतिव पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं।

बीजेपी की जीत का अगर आकलन करें तो फाइव फैक्टर मनी,मीडिया,मैनेजमेंट/मैनीपुलेशन,मिशनरी या इंस्टीट्यूशन्स। ज़मीनी स्तर पर अमित शाह का कैडर तैयार करना इस समय करीब 11करोड़ कार्यकर्ता का समूह जो रात दिन एक किये रहता अपने लक्ष्य को पाने में,करीब 35 लाख लोगों का ग्रुप व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी पर बीजेपी के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार रहता है। इसलिए पंगा लेना नहीं मांगता। अगर उ0प्र0 को ही ले तो यहाँ करीब 40 लाख बीजेपी कार्यकर्ता यानि हर बूथ पर 21 कार्यकर्ता चुनाव में अपने उम्मीदवार के लिए रात दिन एक किये हुए थे।जिसने पूरे देश में भगवा फहराया ।मोदी के प्रधानमंत्री के पद तक पहुचने की डगर आसान की।

लेकिन इस बार मोदी सरकार के लिए पिछली बार की तरह तीन साल का हनीमून पीरियड नहीं मिलने वाला अलबत्ता ग्रेस पीरियड 6 महीने का मिलेगा। जो वादे संकल्प पत्र में किये है उनको धरातल पर लाना प्राथमिकता होगी। बेरोज़गारी-10 लाख बेरोज़गार हर माह मार्किट में आ रहे हैं उनके लिए रोज़गार मुहिया कराना। किसानों से जो वायदा किया है 2022 तक आमदनी दुगना करने का वह जुमला साबित नहीं होना चाहिए।
आपके ही अर्थशास्त्री रसीन दे जिनका मानना है कि देश मिडिल इनकम ट्रैप में फंसता जा रहा अगर इसमे चले गए तो बाहर आना मुश्किल हो जायेगा । जो हालत साउथ अफ्रीका एवं ब्राज़ील की है वही हालात यहाँ भी हो जायेगी। इज ऑफ़ बिज़नस और मेक इन इंडिया को अमल में लाना व्यापारी वर्ग में विश्वास पैदा करना क्योकि उसे नोट बंधी और जी0एस0टी0 के झटके से जो नुकसान हुआ उसकी भरपाई सरकार की प्राथमिकता होगी तभी जॉब जेनेरेट होगा।

चीन और अमेरिका के बीच ट्रेड वॉर जिसका असर भारत पर होगा इसके लिए क्या रोड मैप है? इसका जापान साउथ कोरिया को तो फायदा होगा लेकिन भारत नुकसान में रहेगा। पडोसी देशों से रिश्ते मजबूत करने होंगे। हिन्दू राष्ट्र के नाम पर एक दरार पैदा कर दी गयी मुस्लिम अलग थलग असुरक्षित महसूस कर रहा उसमें विश्वास पैदा करना। आज का युवा वैचारिक उन्माद की रौ में बह कर रावण युग में जी रहा उसको उस काल से वापस लाकर प्रोडक्टिव काम में लगाना सरकार को इस पर सोचना होगा।

मोदी जी ने एक बात बहुत पॉजिटिव कही की यहाँ दो ही जातियां है एक गरीबी और दूसरा गरीबी दूर करने वाला, यह आशा पैदा करता है कि कुछ तो सॉलिड होगा। एक अच्छे और स्वस्थ्य प्रजातंत्र के लिए यह आवश्यक है कि विपक्षी दल अपनी छोटी छोटी दुकानों को बंद कर एकजुट होकर अपनी पृथक अस्मिता को खत्म कर एक नए युग की शुरुवात करे। यही आज की मांग है।

If You Like This Story, Support NYOOOZ

NYOOOZ SUPPORTER

NYOOOZ FRIEND

Your support to NYOOOZ will help us to continue create and publish news for and from smaller cities, which also need equal voice as much as citizens living in bigger cities have through mainstream media organizations.

अन्य वाराणसीकी अन्य ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें और अन्य राज्यों या अपने शहरों की सभी ख़बरें हिन्दी में पढ़ने के लिए NYOOOZ Hindi को सब्सक्राइब करें।

Related Articles