वाराणसी के इस अस्पताल को 5 साल से नहीं मिला डीप फ्रीजर, शव में पड़ रहे कीड़े

संक्षेप:

  • कई दिनों से लावारिस हालात में पड़े शवों का अंतिम संस्कार नही किया गया है
  • शव में कीड़े पड़ गए हैं
  • अस्पताल प्रशासन इस पूरे मामले पर अपना पल्ला झाड़ते हुए शासन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं

गोरखपुर के मेडिकल कॉलेज में हुए हादसे ने प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी है लेकिन धरातल पर अभी भी आलम यह है कि पीएम के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में भी गोरखपुर हादसे से सीख न लेते हुए सीएम के निर्देश के बावजूद अस्पताल प्रशासन सुधरने का नाम नही ले रहा है। बता दें, वाराणासी के कबीरचौरा स्थित शिव प्रसाद गुप्त मंडलीय चिकित्सालय में पिछले कई दिनों से लावारिस हालात में पड़े शवों का अंतिम संस्कार नही किया गया है।  जिसके कारण शव में कीड़े पड़ गए है। मानवता को शर्मसार करने वाली यह घटना बेहद ही संजीदा है। वही अस्पताल प्रशासन इस पूरे मामले पर अपना पल्ला झाड़ते हुए शासन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।

पीएम के संसदीय क्षेत्र में आए दिन केंद्रीय मंत्री के साथ राज्य के मंत्री दौरा करते रहते हैं लेकिन वाराणासी प्रशासन है कि सुधर नही रहा है। जिस अस्पताल में सीएम योगी आदित्यनाथ से लेकर स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने निरीक्षण कर अस्पताल में व्यवस्था को ठीक करने की बात कही। उसी अस्पताल के मर्चरी में रखे शव में कीड़े पड़ना किसी को भी शासन के कार्य प्रणाली पर सोचने के लिए मजबूर कर दे रहा है। अस्पताल के कर्मचारियों की मानें तो 72 घंटे तक एक शव को रखा जाता है और अस्पताल के मर्चरी में मात्र एक ही डीप- फ्रीज़र है लेकिन मर्चरी में 5 से 6 शव पड़े रहते हैं। कई बार इसके लिए प्रशासन को अवगत करवाया गया है लेकिन कोई कार्रवाई नही हुई।

अस्पताल में बदहाली के इस आलम पर सीएमएस डॉ. बीएन श्रीवास्तव का कहना है कि शव का निस्तारण प्रभारी निरीक्षक कोतवाली की जिम्मेदारी है। दूसरा अस्पताल में मर्चरी जो है वो चिकित्सालय में मरने वाले लोगों के लिए न कि रोहनियां या अन्य जगहों पर मरने वाले शवों को लाकर रखने के लिए है। लेकिन इसके बाद भी पुलिस द्वारा यहां बॉडी रखी जाती है। यहां शवों के लिए एक ही डीप फ्रीजर है। हांलाकि 7 और डीप फ्रीजर की जरूरत है जिसके लिए डीएम ने शासन को पत्र भेजा है।

साथ ही सचिव से लेकर अन्य उच्चाधिकारी को अवगत कराया गया है। लेकिन अभी तक व्यवस्था नहीं हो सकी है। डीप फ्रीजर को लेकर 2012 से ही उच्चाधिकारियों को अवगत कराया जा रहा है क्योंकि कई सारे फ्रीजर तब से ही अस्पताल में खराब पड़े हुए हैं। वहीं जिलाधकारी ने भी 31 अप्रैल को शासन को पत्र भेज इस समस्या से अवगत करा दिया था लेकिन अभी भी सुनवाई नहीं हो सकी है। अगर 7 डीप फ्रीजर मिल जाएं तो बॉडी रखने में आसानी हो सकेगी क्योंकि 72 घंटे के बाद ही बॉडी को पुलिस के सुपुर्द करते हैं। एक डीप फ्रीजर एक लाख से उपर का है इसलिए अस्पताल प्रशासन इसे खरीद सकने में अक्षम है।

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वहीं मर्चरी में पड़े बॉडी में कीड़े लगने व वहां बदबू फैलने पर पुछे गये सवाल पर कहना रहा कि मर्चरी मैं रोज जाता हुं लेकिन यहां कैपेसेटी 2 की है लेकिन 5 से 6 बॉडी रखी जाती है। यह सरासर लापरवाही प्रभारी निरीक्षक कोतवाली की है। मर्चरी में काम करने वाले कर्मियों के बाबत सीएमएस साहब का कहना है कि उनकी कोई नियुक्ति नहीं है वो पिछले 20 सालों से स्वयंसेवक के रूप में अपनी नि:शुल्क सेवा दे रहे हैं अगर शासन से कोई प्रस्ताव आता है तो ही उनकी नियुक्ति हो सकेगी लेकिन फिलहाल ऐसा कोई प्रावधान हमारे यहां नहीं है।

अब ऐसे में एक बड़ा सवाल यह उठता है कि केन्द्र व प्रदेश की सरकारे आमजन की स्वास्थ्य को लेकर शुरू कर रहे योजनाएं कितना क्रियान्वित रूप लेंगे इसको आसानी से समझा जा सकता है। यहां जरूरत पूर्व से व्याप्त सुविधाओं को सुदृढ़ करने की है। लेकिन उनको सुदृढ़ करना तो दूर उनकी लगातार उपेक्षा की जा रही है जिसके बाद यह कहना की शासन व प्रशासन के दावे पूरी तरह से खोखले हैं गलत न होगा।

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