सोनभद्र नरसंहार: SIT की जांच में सामने आया सच, 3 दिन पहले हो गई थी हमले की तैयारी

संक्षेप:

  • सोनभद्र के उभ्भा गांव में जमीन पर कब्जे को लेकर 11 आदिवासियों को दिन दहाड़े मौत के घाट उतारे जाने के सनसनीखेज कांड की पटकथा घटना के तीन दिन पहले ही लिख दी गई थी.
  • SIT की जांच में सामने आया सच.
  • एसआईटी की जांच में सामने आया है कि जिस जमीन का विवाद है उस पर आदिवासियों का आजादी के पहले से कब्जा था.

सोनभद्र: सोनभद्र के उभ्भा गांव में जमीन पर कब्जे को लेकर 11 आदिवासियों को दिन दहाड़े मौत के घाट उतारे जाने के सनसनीखेज कांड की पटकथा घटना के तीन दिन पहले ही लिख दी गई थी। जिस दिन कत्ले आम हुआ पीड़ित पक्ष मिर्जापुर के मंडलायुक्त के पास जिलाधिकारी द्वारा ठुकराई गई उनकी अपील पर गुहार लगाने जाने वाला था जहां उनके पक्ष में स्थगनादेश मिलने की संभावना थी, लिहाजा उन्हें ऐसा करने से रोकने के लिए योजनाबद्ध तरीके से हमला किया गया। मामले की जांच कर रही एसआईटी की पड़ताल में सामने आया है कि इस मामले में जो मुकदमा दर्ज हुआ उसमें लगाए गए आरोप सही साबित हुए.

एसआईटी की जांच में सामने आया है कि जिस जमीन का विवाद है उस पर आदिवासियों का आजादी के पहले से कब्जा था। आजादी के बाद 1951 में प्रथम अभिलेख की खतौनी में यह जमीन ऊसर के तौर पर दर्ज है। इसे दस्तावेजों में हेरफेर कर 1955 में आदर्श कोआपरेटिव सोसायटी के नाम करा लिया गया था। इसके आदेश तत्कालीन तहसीलदार ने दिए थे जबकि उस समय तहसीलदार को नामांतरण का अधिकार नहीं था। इसका आदिवासियों ने तब भी विरोध किया था पर उनकी सुनवाई नहीं हुई थी। समय-समय पर आदिवासी अपनी बात उठाते रहे पर उन्हें टरकाया जाता रहा। उन्हें यह कह कर वापस कर दिया जाता था कि जमीन पर कब्जा तो उन्हीं का है, वह लोग उसे जोत-बो रहे हैं, ऐसे में वह परेशान न हों। इस जमीन में से 90 बीघा जमीन बिहार काडर के एक आईएएस अफसर ने खरीदी लेकिन उस पर कब्जा नहीं कर सके।
आईएएस ने पूरी जमीन 6 सितंबर 1989 को अपनी पत्नी और बेटी के नाम करवा ली थी जबकि कानून के अनुसार सोसायटी की जमीन किसी व्यक्ति के नाम नहीं हो सकती। बाद में उन्होंने इसमें से काफी जमीन मूर्तिया गांव के प्रधान यज्ञदत्त भूरिया को बेच दी जिसने 17 अक्तूबर 2010 को जमीन अपने रिश्तेदारों के नाम करवा दी। हालांकि जमीन पर आदिवासियों का कब्जा बरकरार रहा।

अपनी जमीन को लेकर गोंड जनजाति के यह आदिवासी प्रशासन से गुहार लगाते रहे लेकिन उन्हें उनकी जमीन पर अधिकार नहीं दिया गया। तत्कालीन जिलाधिकारी ने सहायक अभिलेख अधिकारी को मौके पर जाकर भौतिक सत्यापन कर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था पर सहायक अभिलेख अधिकारी ने आदिवासियों की मांग को अनसुना कर बेदखली का आदेश दे दिया। ग्रामीणों ने उसके बाद जिला प्रशासन को भी अवगत करवाया लेकिन उनकी एक नहीं सुनी गई। इसे लेकर आदिवासियों की तरफ से जिलाधिकारी के समक्ष अपील की गई। जिलाधिकारी ने पीड़ित पक्ष के वकील को बताया कि अपील गलत सेक्शन के तहत की गई है जिस पर वकील ने संशोधन के लिए दरख्वास्त दी थी। यह दरख्वास्त जमीन की फाइल में लगी रही पर जिलाधिकारी ने इसे नजरअंदाज करते हुए अपील को गलत सेक्शन में किए जाने को आधार बनाते हुए खारिज कर दिया। पीड़ित पक्ष को इसकी जानकारी 13 तारीख को हो सकी जिसके बाद उन लोगों ने अपने वकील से राय की और यह तय हुआ कि सोमवार 17 जुलाई को वह लोग मिर्जापुर केमंडलायुक्त केयहां अपील करेंगे।

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एसआईटी की जांच में आया है कि इस बात की जानकारी विरोधी पक्ष को हो गई थी। अगर पीड़ित पक्ष मंडलायुक्त के यहां पहुंच जाता तो उसके पक्ष में फैसला होता। इसे रोकने के लिए घटना वाले दिन दर्जनों ट्रैक्टर से सशस्त्र लोग मौके पर पहुंचे और जमीन पर कब्जा करना शुरू कर दिया। आदिवासियों ने इसका विरोध किया जिसके बाद 11 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया।

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