अंग्रेजों ने कराया था इस पुल का निर्माण, आजादी के बाद बदला नाम

संक्षेप:

  • वाराणसी में गंगा नदी में बना ऐतिहासिक पूल का अंग्रेजों ने कराया था  निर्माण 
  • गंगा नदी को पार करने के लिए अंग्रेजों द्वारा 130 साल पहले इस पुल को बनवाया था
  • भारतीय उप महाद्वीप का ये पहला पुल है

By- अभिषेक जायसवाल

 धर्म नगरी वाराणसी में विश्व का पुरातन शहर है। इस शहर में ढेरों ऐतिहासिक धरोहर हैं । ऐसी ही एक धरोहर वाराणसी के राजघाट इलाके में गंगा नदी में बना ऐतिहासिक पुल है जिसका निर्माण अग्रेजों ने कराया था। गंगा नदी को पार करने के लिए अंग्रेजों द्वारा 130 साल पहले इस पुल को बनवाया था। भारतीय उप महाद्वीप का ये पहला पुल है। जिसके ऊपर सड़क मार्ग तो नीचे रेलवे मार्ग है। इतिहास के पन्नों में इस पुल का नाम डफरिन पुल के नाम से दर्ज है।  

गंगा की छाती पर शान से खड़ा यह पुल 1 अक्टूबर 1887 में जब पहली बार सिंगल रेल लाइन और पैदल पथ के लिए खोला गया तो यह डफरिन पुल के नाम से जाना जाता था। आज़ादी के बाद 5 दिसंबर 1947 को इस पुल का नाम बदलकर मालवीय पुल रख दिया गया। वाराणसी में लोग इसे राजघाट पुल के नाम से जानते हैं। इस पुल को अवैध और रूहेलखंड के इंजीनियरों ने मिलकर बनाया था। जब तत्कालीन महराज बनारस  प्रसाद नारायण सिंह की उपस्थिति में इस पुल का उद्घाटन हुआ तो एक नई इबारत लिखी गयी। गंगा नदी पर बने इस पुल की लम्बाई 1048.5 मीटर है।  

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अब बदल गया है कलेवर 

बदलते वक्त के साथ ही गंगा में बने इस पूल का कलेवर भी अब बदल गया है। ब्रॉउन रंग के इस पूल को सरकार ने रंग रोगन कराकर सिल्वर कर दिया है। खुले मौसम में अब ये पूल गंगा की लहरों से सफेद चांदी की  तरह चमचमाती दिखती है और पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र भी बनी है।   

जर्जर अवस्था में है पूल 

वक्त के थपेड़ों को झेलता हुआ यह 1048.5 मीटर लम्बा पुल अब धीरे-धीरे जर्जर हो रहा है। कुछ साल पहले इस पुल की मियाद ख़त्म हो गयी थी।  तब इसपर से भारी वाहनों का आवागमन तत्कालीन बसपा सरकार ने रोक दिया था। लेकिन दो साल पहले रेलवे और पीडब्ल्यूडी की आपसी सहमति से इसकी पैचिंग और बाइंडिंग दोबारा से की गयी और समाजवादी सरकार के आते ही इसपर एक बार फिर से भारी वाहन आने जाने लगे। अब इसके अस्तित्व को खतरा है।

 शेरशाह सूरी मार्ग पर बना मालवीय सेतु दयनीय स्थिति में है। कुछ सालों पहले इसकी की गयी बाइंडिंग एक बार फिर टूट गयी थी। जिससे कभी भी कोई भी अनहोनी हो सकती है। उत्तर प्रदेश और बिहार दो राज्यों को जोड़ने वाले इस पुल से नीचे जाती ट्रेन आसानी से देखी जा सकती है। साथ ही इसपर लगी लोहे की बाइंडिंग प्लेट भी टूट गयी है। जो वाहन के गुज़रने पर हिल रही है। इस पुल पर भारी वाहनों का प्रवेश वर्जित है उसके बाद भी अर्धरात्रि के बाद कोयला, बालू और गिट्टी से लदे ट्रक आसानी से पार कराये जाते हैं। जिससे पुल की यह दशा हुई है।

व्यस्त रहने वाले पुल पर अब तक रात में रोशनी का इंतजाम नहीं हो सका है। अब भी लोग रात में इस पुल पर अंधेरे में ही अपना सफर तय करते हैं। छह साल बाद जब देश में लगातार रेल हादसे हो रहे तब रेलवे विभाग ने इसकी सुध ली है। अब मरम्मत और रंगाई पुताई का काम पूरा हुआ है।

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