वाराणसी के बुनकर देंगे जर्मनी के राष्ट्रपति को ये नायाब तोहफा
- वाराणसी जाएंगे जर्मनी के राष्ट्रपति फ्रैंक वॉटर स्टीन्मीयर
- अतिथि देवो भवः परम्परा के अनुसार यहां के हस्तशिल्पी उन्हें एक नायाब तोहफा देंगे
- वाराणसी के बुनकर और कारीगर खास तैयारी कर रहे हैं
वाराणसी में जर्मनी के राष्ट्रपति फ्रैंक वॉटर स्टीन्मीयर के दौरे पर अतिथि देवो भवः परम्परा के अनुसार यहां के हस्तशिल्पी उन्हें एक नायाब तोहफा देने की तैयारी कर रहे हैं। 22 मार्च को जर्मनी के राष्ट्रपति को भेंट करने के लिए भगवान बुद्ध के मंत्र ‘‘बुद्धम शरणं गच्छामि’’ पीपल की पत्ती और पंचशील का हैण्डलूम पर अंगवस्त्रम के साथ साथ लकड़ी की भगवान् बुद्ध कि प्रतिमा देने की तैयारी कर रहे हैं। यह मूर्ती जर्मनी राष्ट्रपति के सारनाथ दौरे पर महाबोधि सोसाइटी द्वारा दी जाएगी। राष्ट्रपति के आगमन को लेकर वाराणसी के बुनकर और कारीगर खास तैयारी कर रहे हैं।
यूरोप में बनारस परिक्षेत्र का बाज़ार सबसे बड़ा मना जाता है, बनारस परिक्षेत्र से कॉलिन, ब्रोकेट, स्कॉप,स्टॉल से लेकर लकड़ी की बनी सामग्री जर्मनी सहित यूरोप के विभिन्न देशों में निर्यात किया जाता है। ऐसे में 22 मार्च को वाराणसी दौरे पर आने वाले जर्मनी के राष्ट्रपति के लिए वाराणसी के कारीगर ख़ास तैयारी कर रहे हैं। वाराणसी के रामकटोरा इलाके के रहने वाले चंद्र प्रकाश विश्वकर्मा लकड़ी की मूर्ति बनाते हैं। जब उन्हें पता चला कि जर्मनी के राष्ट्रपति भारत आने वाले हैं और वाराणसी का दौरा करेंगे तब उन्होंने अपने तरफ से राष्ट्रपति को उपहार देने की सोची। चंद्र प्रकाश विश्वकर्मा ने सारनाथ के महाबोधि ट्रस्ट से संपर्क किया, जहां से उन्हें भगवान् बुद्ध की डेढ़ फ़ीट ऊंची लकड़ी की प्रतिमा बनाने के लिए कहा गया। पिछले 15 दिनों की कड़ी मेहनत कर वाराणसी के इन कारीगरों ने सारनाथ स्थित भगवान् बुद्ध की प्रतिमा का स्वरुप लकड़ी के मूर्ति के रूप में उतार दिया। कारीगरों का कहना है कि जर्मनी के राष्ट्रपति को वह यह नायाब तोहफा वह वाराणसी के कारीगरों की तरफ से उपहार स्वरुप देंगे, जिससे विश्व पटल पर बनारस के कारीगरी को एक नई पहचान मिलेगी।
वहीं जीआई विशेषज्ञ डॉ रजनीकांत ने बताया कि आगामी 22 मार्च को जर्मनी के राष्ट्रपति वाराणसी के एक दिवसीय दौरे पर आ रहे हैं। इस दौरे पर भारतीय संस्कृति के अनुरूप उन्हें छाहीं ग्राम के बुनकर बच्चे लाल मौर्या द्वारा निर्मित भगवान् बुद्ध के मन्त्र ` बुद्धम शरणम् गच्छामि`, पीपल की पत्ती और पंचशील का हैंडलूम निर्मित अंगवस्त्रम दिया जाएगा। इसके अलावा लकड़ी के उपर कार्विंग कर के भगवान बुद्ध की प्रतिमा को राम कटोरा निवासी चंद्र प्रकाश विश्वकर्मा बना रहे हैं। यह मूर्ति सारनाथ स्थित बुद्ध की मूर्ति की हूबहू रेप्लिका है, जिसका आकार 12 इंच चैड़ा और 18 इंच लम्बा है और लगभग 7 दिन के लगातार प्रयास से इसे बनाया गया है। डॉ रजनीकांत ने बताया कि यह रेप्लिका महाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया, सारनाथ के मुख्य भंते जी द्वारा यह मूर्ति जर्मनी के राष्ट्रपति को भेंट की जाएगी और उन्हीं के आग्रह पर इसे बनाया गया है। डॉ रजनीकांत के अनुसार ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन के सहयोग से यह पंचशील का अंगवस्त्र 10 दिन के लगातार परिश्रम से कैलीग्राफी विधि से बुनकर तैयार हुआ है। जीआई विशेषज्ञ डॉ रजनीकांत ने बताया कि एक बार फिर बनारस के शिल्पी और बुनकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना जलवा बिखेरेंगे। हाल ही में फ्रांस के राष्ट्रपति ने यहां के जीआई हस्तशिल्पियों को बहुत सराहा है और अब जर्मनी के रास्ते शिल्प और हैंडलूम का बाजार और मजबूत होगा। जर्मनी में भारतीय हस्तशिल्प का बहुत बड़ा निर्यात होता है, जिसमें भदोही की कालीन प्रथम स्थान पर है।
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पहले जापान फिर फ़्रांस और अब जर्मनी के राष्ट्रपति को बनारसी कारगरी को देखने का मौक़ा मिलेगा। ऐसे में वाराणसी की कारीगरी को विश्व पटल पर एक नया आयाम मिलने की उम्मीद जताई जा रही है। वाराणसी के कारीगरों को भी उम्मीद है कि जर्मनी के राष्ट्रपति उनके द्वारा दिए जा रहे उपहार के बदले वाराणसी शहर के कारीगर और बुनकरों के लिए एक बड़ा बाज़ार उपहार स्वरुप लौटा सकते हैं।
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