अनकही-अनसुनीः गुरूद्वारों पर भी दिखती है लखनऊ की टीले वाली मस्जिद की डिज़ाइन

  • Abhijit
  • Saturday | 6th January, 2018
  • spiritual
संक्षेप:

  • बंगाली स्टाइल में बनी है लखनऊ की इस मस्जिद के बालकनी की मेहराब
  • दुनियाभर में मशहूर इस्लामिक विद्वान `शैख़ साहिब` का खास मकबरा
  • कैसे लखनऊ की टीले वाली मस्जिद ने बदली गुरुद्वारों की सीरत

-अश्विनी भटनागर

लखनऊ की टीले वाली मस्जिद अपने में अनूठी है। लाल पुल से सटी हुई, गोमती नदी के ठीक किनारे एक टीले पर स्थित यह मस्जिद पिछले 350 सालों से सुन्नी मुसलमानों के लिये विशेष स्थान रखती है। ईद हो या फिर रमज़ान का महीना, टीले वाली मस्जिद पर जमवाड़ा देखने लायक होता है। अलविदा की नमाज़ पर तो एक लाख से ऊपर लोग नमाज़ अदा करने टीले पर पहुचते हैं।

टीले वाली मस्जिद मुग़ल वास्तुकला का शानदार नमूना है। इसका निर्माण कब शुरू और कब खत्म हुआ कही दर्ज नहीं है पर यह बात पक्की है कि इसे मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब (1658-1707) के शासन काल में बनवाया गया था। एक रोचक बात यह है कि टीले वाली मस्जिद के डिज़ाइन का प्रभाव आगे चल कर सिख गुरद्वारों पर पड़ा था और बहुत से गुरद्वारे इसी तरह से बने हुए हैं।

टीले वाली मस्जिद का नाम उसके टीले पर बने होने से पड़ा है। इसके सामने ही बड़ा इमामबाड़ा है और थोड़ी से दूरी पर लखनऊ का मशहूर रूमी दरवाजा है। कहा जाता है कि लखनऊ का यह टीला बहुत पुराना है और इसका जिक्र पुरातन इतिहास में भी है। पर कुछ इतिहासकारों का कहना है कि 1857 के स्वतंत्रा संग्राम में अंग्रेजों ने इस इलाके को घेर कर बड़े इमामबाड़े पर भीषण गोलाबारी की थी जिसकी वजह से इतना मलबा जमा हो गया था कि उससे यह टीला बन गया था।

पर तथ्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि मस्जिद का निर्माण मुग़ल काल में हुआ था और वो सुन्नी शहरियों की ज़रुरतों को पूरा करने के लिए था। शैख़ पीर मोहम्मद पहले से ही यहां रहते थे। टीले वाली मस्जिद से बीस मीटर दूर ही उनकी कब्र भी बनी हुई है। शैख़ साहिब 1619 में इतावन, जौनपुर में पैदा हुए थे और इस्लामिक अध्ययन में उनका नाम देश और विदेश में जाना जाता था। उनके सैकड़ों शागिर्द थे जो टीले के आस-पास ही रह कर इस्लामिक धर्म ग्रंथों का अध्यन करते थे।

शैख़ साहिब का इंतकाल 1674 में हुआ था और शायद लखनऊ के मुग़लिया नुमाइंदे ने मस्जिद उनकी याद में बनवायी थी और साथ में उनका मकबरा भी जिसका बल्ब नुमा गुंबद है और जिसके शिखर पर उल्टे हुये कमल की आकृति बनी हुई है। एक बड़ा- सा ख़ूबसूरत चिरागदान इस गुंबद से लटका हुआ है। मकबरे के पश्चिम में पत्थर का ताबूत बना हुआ है जिस पर कहा जाता है कीमती रत्न जड़े हुए थे। यह कब्र किसकी है यकीन से कहा नहीं जा सकता है।

टीले वाली मस्जिद में तीन गुंबद और ऊंची मीनारें है जो की दूर से ही दिख जाती हैं। मस्जिद उठे हुए चबूतरे पर ईंट और पत्थर से बनी हुई है। इसमें विशाल आंगन है जिसमें नमाज़ अदा करने के लिये तीन अलग-अलग हिस्से हैं। बीच वाला हिस्सा आजू-बाजू के हिस्सों से बड़ा है और उस पर बनी गुंबद भी और दो गुम्बदों से बड़ी है । हर गुंबद पर उल्टा हुआ कमल का फूल रखा है।

हालांकि मस्जिद मुगलिया स्टाइल में बनी हुई है पर इसकी बीच वाली मेहराब में बंगाल स्टाइल की बालकनी बनी हुई है। इसी को आगे चल कर सिख गुरद्वारों में भी अपनाया गया था।