अनकही-अनसुनीः मशहूर है लखनऊ का गड़बड़झाला बाजार

  • Sonu
  • Saturday | 9th September, 2017
  • local
संक्षेप:

  • गड़बड़झाला बाज़ारः खरीदारी का मोहक क्षण
  • चूड़ियों की खनखनाहट गुलजार गड़बड़झाला बाजार
  • अमीनाबाद के तंग गलियों में है गड़बड़झाला बाजार

By: अश्विनी भटनागर

लखनऊः लखनऊ में मॉल कल्चर ज़रूर आ गया है पर अगर किसी महिला को मन भर कर शॉपिंग करनी है तो उसके लिये शहर में सिर्फ एक ही जगह है- गड़बड़झाला। इस छोटे से तंग बाज़ार में नाज़नीनों को अपने ज़रूरत का वो सब समान मिल जाता है जो कही भी मिलना मुश्किल है। इसीलिये इसे लेडीज बाज़ार भी कहते है।

बाज़ार का नाम गड़बड़झाला ज़रूर है पर इसमें कोई गड़बड़ नहीं है। यह नाम शायद इसलिये पड़ा क्योंकि यहां पर मोल भाव खूब होता रहा है। कोई फिक्स्ड प्राइस नहीं है। दुकानदार अपना दाम बताता है और फिर यह ग्राहक की कुव्वत है कि उसे वो कितना तोड़ सकता है। सारा खेल या गड़बड़ इसी में है या फिर दुकानदार की मीठी-मीठी बातों (झाले) में जिसमें वो ग्राहक को ऐसा गड़बड़ा देता है कि वो एक ज़रूरी चीज़ के साथ दस गैर ज़रूरी चीज़े भी खरीद लेती है।

गड़बड़झाला की शुरू से ही बड़ी धूम रही है। वो अपने में अनूठा है क्योंकि यहां के शॉपिंग के अनुभव का कोई मेल नहीं है। कहने को गड़बड़झाला एक सकरी सी गली में है जिसमें हमेशा ही भारी भीड़ रहती है और इस वजह से सांस लेना भी दूभर है। पर जो एक बार गड़बड़झाला में घुस गया तो उसका कुछ घंटों तक बाहर आना मुश्किल है। शायद डिस्काउंट और सेल का कांसेप्ट इसी बाज़ार से शुरू हुआ है। साथ की यहां आप जी भर कर मोल–भाव (बारगेनिंग) भी कर सकते हैं और घर आकर विजयी भाव से बता सकते है कि आपने सौ रुपये की चीज़ मात्र दस रुपये में झटक ली है।   

गड़बड़झाला अमीनाबाद में है। लखनऊ का अमीनाबाद बाज़ार लगभग 250 साल पुराना है और उसी के एक छोटे से हिस्से को गड़बड़झाला कहते है। लगभग सौ साल पहले 1922 में अमीनाबाद के समाने कुछ अस्थाई दुकाने लगने लगी थी जो की पुराने हिन्दुस्तानी स्टाइल बाज़ार की तरह थी। इस बाज़ार में छोटे दुकानदार और व्यापारी बैठा करते थे और बहुत ही सस्ते दामों पर औरतों के साजों समान को बेचा करते थे।

शुरू में यहां सिर्फ चूड़ियां बिका करती थी। लखनऊ में कांच या लाख की चूड़ियां नहीं बनती है पर औरतों को इनका शौक़ हमेशा से रहा है। साड़ी हो या सरारा खिलता तभी था जब उसके साथ हाथ भर चूड़ी पहनी हो। अमीनाबाद की बड़ी दुकानों से औरते कपडे खरीद कर गडबडझाले की तरफ चुड़ियों के लिये मुह्खातिब हुआ करती थी। आज भी सबसे ख़ूबसूरत और वाजिब दामों की चूड़ियां यही मिलती है।

गड़बड़झाला में अब लगभग सौ पक्की दुकाने है। पलती सी गली में इतनी सारी दुकानों की वजह से घुटन महसूस होती है। इस वजह से हर जगह पंखे लगे हुए है जो की उमस भरे माहौल को ठंडा करते रहते है। पखों के बावजूद खरीददारी के लिये जिग्रह चाहिये। गड़बड़झाला में सुबह से ले कर शाम तक जो भीड़ लगी रहती है वो इस बात का सबूत है कि औरतें अपनी मनचाही शॉपिंग के लिये पसीना बेहिचक बहा सकती है।

चूड़ियों के साथ मैचिंग ब्लाउज या फिर दुप्पटे की भी मांग गड़बड़झाले ने पूरी की। धीरे-धीरे मैचिंग ज्वेलरी की भी दुकाने खुल गयी और आज इस बाज़ार में बसे ज्यादा बिक्री इमीटेशन ज्वेलरी की ही होती है। बड़े से बड़े ब्रांड का कोई भी स्टाइल ऐसा नहीं होगा जिसकी नक़ल सस्ते दामों में गड़बड़झाला में न मिलती हो। सोने के सुहागा यह है कि इस नकली माल की कारीगरी में असली से फरक उनीस बीस का भी नहीं है।

गोटा, सितारा, सेक्विन, लेस, बिंदी, बैग आदि जैसा समान जो की लेडीज ड्रेस्स में किया जाता है यहां पर थोक के भाव में उपलब्द है। किसी भी दुकान पर अगर आप एक चीज़ मांगेगे तो आपको उसी तरह की दस चीज़े मिल जायेंगी। गड़बड़झाला का सुहागपुड़ा, जिसमें नई दुल्हन के शिंगार के लिये परंपरागत प्रसाधन सामग्री होती है, बहुत ही लोकप्रिय है और सिर्फ यहां ही मिलता है। सिन्दूर दान या करेली की चूड़ी (सावन में पहने वाली विशेष हरी चूड़ियां) भी यहां की विशेषताओं में से है।

Related Articles