प्यार की एक और निशानी है आगरा का ये लाल ताजमहल

संक्षेप:

  • आगरा में ही एक और ताजमहल है
  • प्यार करने वाली पत्नी ने अपने पति की याद में लगभग 200 साल पहले बनवाया था
  • कर्नल हैसिंग को पूरे सम्मान के साथ इस ताज में दफनाया गया

आगरा स्थित ताजमहल को पूरे विश्व में प्रेम की निशानी माना जाता है। लगभग पौने चार सौ वर्ष पूर्व इस इमारत का निर्माण मुगल सम्राट शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज की याद में करवाया था  लेकिन इस सच्चाई को शायद कम लोग ही जानते होंगे कि इस संगमरमरी सफ़ेद ताजमहल के साथ साथ आगरा में ही एक और ताजमहल है।  जिसे प्यार करने वाली पत्नी ने अपने पति की याद में लगभग 200 साल पहले बनवाया था। आगरा के भगवान टॉकीज चौराहे के निकट हिन्दुस्तान के सबसे पुराने रोमन कैथोलिक कब्रिस्तान के ठीक बीचों-बीच मुहब्बत की एक और दास्तां का साक्षी बनकर खड़ा हुआ है पत्थर का बना लाल ताजमहल।

ये है लाल ताज की दास्तां

आगरा की लाइफ लाइन मानी जाने वाली एमजी रोड के दीवानी चौराहे पर स्थित रोमन कैथलिक कब्रिस्तान सिर्फ कब्रिस्तान नही है। इसकी सबसे ख़ास बात इसके अंदर मौजूद लाल ताजमहल है। इस लाल ताजमहल की कहानी भी कम रूमानी नहीं है। सफेद ताज का निर्माण तो सर्व साधन सम्पन्न बादशाह द्वारा करवाया गया लेकिन इस लाल ताजमहल का निर्माण एक बादशाह की तुलना में बेहद मामूली सिपहसालार की विधवा द्वारा करवाया गया। बात सन् 1797-98 की है। जब कर्नल जॉन विलियम हैसिंग अपनी पत्नी एलिस के साथ आगरा आये तो स्वाभाविक रूप से ताज के आकर्षण से प्रभावित होकर एक शाम ताजमहल पहुंचे। ताज के सौन्दर्य और उसके साथ जुड़ी मोहब्बत की दास्तां ने इस जोड़े को भी प्रभावित किया। वहीं दोनों ने एक दूसरे से वादा किया कि दोनों में से जिसकी मृत्यु पहले हो जायेगी वह दूसरे की याद में ऐसा ही ताजमहल बनवायेगा। जॉन हैसिंग दौलत राव सिंधिया की फौज में एक अफसर था। सन् 1803 में जॉन हैसिंग की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी एलिस ने अपने पुत्र पुत्रियों के साथ मिलकर इस लाल ताजमहल का निर्माण कराया। बादशाह शाहजहां जैसा साधन और धन तो इस परिवार के पास नहीं था इसलिए रेड स्टोन यानी लाल पत्थर से इसका निर्माण करवाया गया। कर्नल हैसिंग को पूरे सम्मान के साथ इस ताज में दफनाया गया ।

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कौन थे कर्नल जॉन हैंसिंग  

 एक मामूली सिपाही डच मूल का कर्नल हैसिंग सन् 1765 में लंका पहुंचा जहां उसने कैंडी युद्ध में भाग लिया। इसके बाद निजाम हैदराबाद की सेना में उसे नौकरी मिल गयी। सन् 1784 में मराठा सरदार महादजी सिन्धिया की सेना में उसे उच्च पद प्राप्त हुआ। फ्रान्सीसी सेनापति द-ब्रूने के नेतृत्व में कई युद्धों में हैसिंग ने अपनी वीरता के जौहर दिखाए। सन् 1792 में महादजी उसे पूना ले गए। सन् 1794 में महादजी की मृत्यु के बाद हैसिंग आगरा आ गया। आगरा पर तब मराठों का अधिकार था। सन् 1799 में आगरा किला एवं उसकी दुर्गरक्षक सेना का वह सेनापति नियुक्त हुआ। 21 जुलाई सन् 1803 को कर्नल का सम्मान पा चुके हैसिंग का देहावसान हो गया। जिसके बाद उनकी पत्नी एलिस ने उनकी याद में एक मकबरा बनवाया जो लाल ताजमहल कहलाता है।

यह मकबरा देखने में हूबहू ताजमहल जैसा है। पूरी तरह मुगल स्थापत्य कला पर आधारित यह मकबरा लगभग 100-100  फीट के दायरे में है। असली ताज की तरह इसमें भी भूमिगत कक्ष हैं व ताजमहल की मीनारों की शक्ल में इसमें भी मुख्य इमारत से मीनारें जुड़ी हुईं हैं। यह मकबरा ताजमहल की तरह चारों ओर से सिमेट्रिकल है। इसके चारों ओर बड़े प्रवेश द्वार हैं। मुख्य गुंबद एक ऊंचे बने चौकोर चबूतरे पर है। इसी गुंबद के अंदर जॉन हैसिंग और उसकी पत्नी एलिस हैसिंग की कब्रें हैं  पर ये असली नहीं हैं। गुंबद के दाएं और बाएं जाने के लिए ऊपर से सीढियां हैं। वहीं से भूमिगत कक्ष की ओर जाने वाला रास्ता भी खुलता है। इसी भूमिगत कक्ष में हैसिंग दंपत्ति संगमरमर की कब्रों में दफन हैं। एएसआई अधिकारीयों के अनुसार ये आर्किटेक्चर का बेहतरीन उदाहरण हैं युवाओं को इससे बहुत कुछ सिखने को मिलता है। 

इतिहासकार राज किशोर के अनुसार शाहजहाँ ने मुमताज के लिए ताजमहल बनवाया उसकी खूबसूरती लाजवाब है। लेकिन एलिस की मोहब्बत और हिम्मत की यह दास्तां बयान करने वाला यह मकबरा अब तक पहचान को मोहताज है। एलिस के बेटो का नाम तो इतिहास में  भी नही मिलता पर असल में यह स्मारक महिला शक्ति और प्यार की मिसाल है। ऑल सोल डे के दिन यहां क्रिश्चन आते हैं और मोमबत्तियां जलाते हैं उनके अनुसार अगर इस स्मारक की सही प्रसिद्धि हो और पर्यटन विभाग इसका प्रचार प्रसार करें तो यूरोपियन पर्यटक समेत ज्यादातर विदेशी इसे देखने जरूर आएंगे ।

 

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