हाईकोर्ट ने कहा- शस्त्र लाइसेंस एक विशेषाधिकार है, मौलिक अधिकार नहीं

संक्षेप:

  • आपराधिक केस में बरी होने मात्र से लाइसेंस बहाली नहीं।
  • लोक शांति व सुरक्षा की स्थिति के अनुसार लाइसेंसिंग प्राधिकारी की संतुष्टि।
  • शस्त्र लाइसेंस नागरिक का मूल अधिकार नहीं।

प्रयागराज- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि आपराधिक केस में बरी होने मात्र से निलंबित या निरस्त शस्त्र लाइसेंस की बहाली नहीं की जा सकती। यह लोक शांति व सुरक्षा की स्थिति के अनुसार लाइसेंसिंग प्राधिकारी की संतुष्टि पर निर्भर करेगा। कोर्ट को इस मामले में दखल देने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने कहा कि शस्त्र लाइसेंस विशेषाधिकार है। नागरिक का मूल अधिकार नहीं है। यह परिस्थितियों पर निर्भर करेगा।

निलंबित या निरस्त शस्त्र लाइसेंस की बहाली आपराधिक केस में बरी होने की प्रकृति के आधार पर तय होगी। जानलेवा हमला करने का आरोपी बाइज्जत बरी हुआ है या संदेह का लाभ लेकर अथवा आरोप साबित करने में अभियोजन की नाकामी के चलते बरी हुआ है, इन तथ्यों पर विचार कर प्राधिकारी की संतुष्टि पर निर्भर करेगा कि लाइसेंस बहाली हो या निरस्त रखा जाए।

कोर्ट ने जानलेवा हमले के आरोपी के संदेह का लाभ लेकर बरी होने पर निरस्त शस्त्र लाइसेंस बहाल न करने के आदेश पर हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि अपराध में शस्त्र का इस्तेमाल किया गया, इस कारण शस्त्र बहाल न करने का आदेश सही है। यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने इंद्रजीत सिंह की याचिका पर दिया है।

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याची का कहना था कि वह आपराधिक केस में बरी हो चुका है, इसलिए केस लंबित होने के कारण निरस्त शस्त्र लाइसेंस बहाल किया जाए। सवाल उठा कि क्या केस में बरी होने मात्र से निलंबित या निरस्त शस्त्र लाइसेंस बहाल किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा, यह कानून में स्पष्ट नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के फैसलों में स्थिति स्पष्ट की गई है। यह केस की परिस्थितियों व प्राधिकारी की संतुष्टि पर निर्भर करेगा। प्रश्नगत मामले में शस्त्र का घटना में इस्तेमाल किया गया है। संदेह का लाभ देते हुए बरी किया गया है। लोक शांति, सुरक्षा व कानून व्यवस्था को देखते हुए यह अधिकारी की संतुष्टि का विषय है।

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