प्रयागराज की प्रेरणा से `गुरु मिशन` पर जुटे विवेकानंद

संक्षेप:

स्वामी विवेकानंद के गुरुभाई योगानंद प्रयागराज में प्रवास करते थे। उन्हें चेचक होने की सूचना पर वह बड़ानगर आश्रम कोलकाता से अपने कुछ गुरु भाइयों के साथ 21 दिसंबर 1889 को प्रयागराज आए थे।

तपस्थली प्रयागराज गुरुकुल परंपरा का संवाहक रहा है। त्रेता युग में महर्षि भारद्वाज के गुरुकुल आश्रम में हजारों लोग वेद-वेदांग की शिक्षा ग्रहण करते थे। उसी तपस्थली पर स्वामी विवेकानंद को अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के सम्मान में कुछ बड़ा करने का भाव जाग्रत हुआ। वैसे, गुरु के प्रति उनमें अगाध समर्पण था। लेकिन, प्रयागराज में संतों की तपस्या, समर्पण देखकर वह इतना प्रभावित हुए कि अपने गुरु के नाम से `रामकृष्ण मिशन` स्थापित करने का संकल्प लिया। मिशन विवेकानंद द्वारा गुरु को दी गई सबसे बड़ी दक्षिणा मानी जाती है।

स्वामी विवेकानंद के गुरुभाई योगानंद प्रयागराज में प्रवास करते थे। उन्हें चेचक होने की सूचना पर वह बड़ानगर आश्रम कोलकाता से अपने कुछ गुरु भाइयों के साथ 21 दिसंबर 1889 को प्रयागराज आए थे। फिर गुरुभाई प्रमदादास को पत्र लिखकर सारा हालचाल बताया था। उन्हें रुकना एक सप्ताह था। लेकिन, जब आए तो संगम तीरे माघ मेला की तैयारी चल रही थी। भजन-पूजन के लिए दूर-दूर से संतों व श्रद्धालुओं के आगमन को देख वे 17 जनवरी 1890 तक रुके। प्रतिदिन संगम स्नान, मंदिरों में दर्शन व संतों के सानिध्य में समय व्यतीत करना उनकी दिनचर्या थी। उन्होंने किला में अक्षयवट का दर्शन भी किया था। मेला क्षेत्र में करीब एक सप्ताह प्रवास किया था। इसमें कुछ संस्थाओं का नाम मिशन देखा और महात्माओं की तपस्या तथा उनकी सेवा देखकर उनके मन में गुरु के नाम पर मिशन बनाने का विचार कौंध गया।

समालोचक रविनंदन सिंह बताते हैं कि फ्रांसीसी पत्रकार रोमारोला ने विवेकानंद की जीवनी में लिखा है कि उन्हें प्रयागराज में तपस्वी महात्माओं का सानिध्य बहुत भाया था। संतों के सेवाभाव से प्रभावित होकर उन्होंने खुद को सेवा के मिशन में झोंकने का निर्णय लिया। इसके लिए गुरु के नाम पर मिशन बनाने का संकल्प लेकर उस दिशा में काम करने लगे। एक मई 1897 में कोलकाता में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। मिशन की स्थापना का उद्देश्य वेदांत दर्शन का प्रचार-प्रसार व सेवा है। देश-विदेश में इसकी कई शाखाएं हैं।

गाजीपुर के पवहारी बाबा आश्रम भी गए

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स्वामी विवेकानंद ने प्रयागराज में संतों से गाजीपुर के तपस्वी पवहारी बाबा के बारे में सुना तो उनसे मिलने 18 जनवरी 1890 को प्रयागराज से प्रस्थान कर गाजीपुर के पवहारी बाबा आश्रम गए। वहां गुफा में तपस्या करने वाले बाबा के सानिध्य में तीन दिन  रुककर उनकी साधना को देखा।

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