दूधनाथ सिंह को श्रद्धांजलि: इलाहाबाद के साहित्यकारों की पहचान वाले कोने हो गए सूने

संक्षेप:

  • गुरुवार को हुआ था कथाकार दूधनाथ सिंह का निधन
  • पत्नी के निधन के बाद टूट गये थे दूधनाथ सिंह
  • कटु सत्य को व्यक्त करने में नहीं रहते थे कभी पीछे

 

--वीरेन्द्र मिश्र

इलाहाबाद के साहित्यकारों की सृजनशीलता का बगीचा, जो कड़ुवा, कसैला, मीठा, फीका और सुहाने वृक्षों की पहचान से जुड़ा था, वो सूना हो गया।

इलाहाबाद के साहित्यकारों की पहचान वाले कोने सूने हो गये। पुरानी पीढ़ी के साहित्यकारों की मौजूदगी अनन्त में विलीन हो गयी। कल तक धर्मवीर भारती, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, रघुबीर सहाय, बी.डी.एन. साही, डॉ. जगदीश गुप्त, उपेन्द्र नाथ अश्क, नरेश मेहता, कमलेश्वर कैलाश गौतम, डॉ. रविन्द्र कालिया, अमरकान्त, लक्ष्मीकान्त वर्मा सभी अनन्त में विलीन हो गये। एक के बाद एक सभी साहित्य जगत के प्रकाश पुंज के नामों की फेहरिश्त काल की अवधारणा के साथ अपने नाम और कृतियों की पहचान को इलाहाबाद से जोड़कर अनन्त में विलीन हो गई।

ये भी पढ़े : सारे विश्व में शुद्धता के संस्कार, सकारात्मक सोच और धर्म के रास्ते पर चलने की आवश्यकता: भैय्याजी जोशी


दूधनाथ सिंह भी अपनी साहित्य सृजनशीलता अक्खड़पन और बेबाकी के साथ कड़ुवा बोलने वाले ‘अन्धकार’ के लेखक समालोचक इलाहाबाद के साथ की पहचान को बीते सप्ताह अलविदा कह गये। अमरकान्त, डॉ. रविन्द्र कालिया और दूधनाथ सिंह तीनों जनों की पहचान, जो संगोष्ठियों में दिखती थी, वो भी सूनी हो गयी।

कैसा अद्भुत संयोग माना जायेगा। दु:खत काल भी माना जा सकता है कि विश्व पुस्तक मेला में ठहाका, गप्प सड़ाका गूंजता रहा, किसी ने भी दूधनाथ सिंह को न याद किया और न ही उनकी चर्चा की। जाने कहां सब बिला गये। लाखों की भीड़ जुटी पर किसी को भी उनकी याद नहीं आई।

राष्ट्रीय सम्मान से अलंकृत और अपनी कृति ‘आंवा’  के लिए राष्ट्रीय सम्मान पाने वाली चित्रा मुद्गल ने दु:खद स्थितियों को व्यक्त करते हुए, दूधनाथ सिंह के अप्रत्याशित निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया और विश्व पुस्तक मेला में खिलखिलाते साहित्यकारों की टोलियों को देख गहरी पीड़ा और संवेदना का अनुभव किया।


एक अक्खड़पन, स्पष्टता और कङुवापन की पहचान वाले दूधनाथ सिंह के निधन पर चित्रा मुद्गल ने दु:ख व्यक्त किया और कहा - इलाहाबाद की पुरानी पहचान से जुड़े साहित्याकरों की एक पीढ़ी का अवसान हो गया।

‘आंवा’ की लेखिका चित्रा मुद्गल पर अपने विचारों से दूधनाथ सिंह ने खुलकर  व्यक्त किया था। उनकी सृजनशीलता और संवेदना का खुलकर पता चलता है, उन्होंने बताया कि दूधनाथ सिंह कहते थे, श्री लाल शुक्ल के राग दरबारी के बाद चित्रा का ‘आंवा’ ने धूम मचा दी थी।

अपने अन्तरमन में वह पीड़ा से निरन्तर जूझते रहे। उनका कड़ुवापन खुलकर मुखर होता था। संगोष्ठियों में भी वह अपनी पसन्द पर ही पहुंचते थे।

अपनी पत्नी के निधन के बाद, वो टूट से गये थे। हालांकि उन्होंने अपने अन्तरमन की पीड़ा को अपने ‘अन्धकार’ में खुलकर भी व्यक्त किया था। परन्तु समय हमेशा नहीं रहता। कैसी अद्भुत बात थी कड़ुवापन में वह गेरुवा वस्त्र और चटक रंग में कुर्ता जब पहनकर संगोष्ठी में मिलते, तो मुस्कुराहट होती थी, किन्तु कटु सत्य को व्यक्त करने में वो कभी पीछे नहीं रहते थे।

चित्रा मुद्गल कहती हैं  वास्तव में दूधनाथ सिंह रंगों को मान देते थे। रंगों में ठाठ के साथ जीते थे। विवाद भले ही अच्छे न लगते रहे हों, किन्तु कुटिलता को कौशल के साथ व्यक्त करना उनकी पहचान से जुड़ा था। उसे वो कभी छिपाते नहीं थे।

कड़ुवा है, तो कड़ुवा कहना और कहते-कहते ही उनकी स्पष्टवादिता का भी अंत हो गया। अब नई पीढ़ी इलाहाबाद के साहित्य पहचान को लेकर कैसे आगे बढ़ेगी। यह वक्त बतायेगा।

 

 

If You Like This Story, Support NYOOOZ

NYOOOZ SUPPORTER

NYOOOZ FRIEND

Your support to NYOOOZ will help us to continue create and publish news for and from smaller cities, which also need equal voice as much as citizens living in bigger cities have through mainstream media organizations.

Read more Allahabad की अन्य ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें और अन्य राज्यों या अपने शहरों की सभी ख़बरें हिन्दी में पढ़ने के लिए NYOOOZ Hindi को सब्सक्राइब करें।

Related Articles