मध्य प्रदेश: अब शराबबंदी करने की बात नहीं टाल सकती सरकार

संक्षेप:

  • एमपी में शराब सालों से औरतों की दुश्मन
  • पतियों का ये ज़ुल्म अब और नहीं चल सकता
  • भोपाल से पत्नि पर हुई बर्बरता की एक और घटना आई

 

भोपाल। शराब किस तरह से महिलाओं की जिंदगी पर किस तरह कहर बनकर टूटती है, तबाह करती है, इसकी जिंदा मिसाल भोपाल के निशातपुरा थाना क्षेत्र में मंगलवार रात को हुई वो बर्बर घटना है, जिसमें शराब के नशे में डूबे एक पति ने फरसे से अपनी पत्नी के हाथ-पैर काट कर जिस्म से अलग कर दिए. पत्नी जिंदगी के लिए अस्पताल में मौत से जंग लड़ रही है.

यह इकलौती दिलदहला देने वाली घटना सूबे की सरकार को जगाने, सिस्टम को हिलाने और बताने के लिए काफी है कि प्रदेश में शराबबंदी क्यों जरूरी है. शराबबंदी के लिए मनुहार की नहीं, सीधे प्रहार और मजबूत इच्छाशक्ति की जरूरत है. प्रदेश रोज मां-बहन-बेटियों के साथ हो रही इस तरह की घटनाओं से दो-चार हो रहा है.

शराब का नशा सबसे बड़ी सामाजिक बुराई है. शऱाबखोरी चोरी, बलात्कार, घरेलू हिंसा जैसे अपराधों की एक बड़ी वजह है ये मानने के बाद भी सरकार इस पर रोक नहीं लगाती क्योंकि शराब की बिकरी से सरकार की सबसे ज़यादा कमाई होती है.

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उमा भारती भी शराबबंदी के पक्ष में, जनता भी सड़क पर

पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने 22 जनवरी को बुलाई एक प्रेस कांफ्रेस में साफ कहा था कि `लाकडाउन में महीनों शराब दुकानें बंद रहीं, लेकिन शराब नहीं पीने से कोई नहीं मरा. हां, शराब पीने से लोग जरूर मरते हैं. स्वस्थ समाज का निर्माण करने की जिम्मेदारी सरकार की है. मेरा स्पष्ट विचार है कि राज्य में शराब बंदी होना चाहिए, मैं अब शराबबंदी के लिए अभियान शुरू करूंगी, राजस्व आमदनी बढ़ाने के दूसरे उपाय भी हैं.

यहां श्वेत क्रांति हो सकती, लेकिन लोगों की जान की कीमत पर धन की उगाही ठीक नहीं.` उन्होंने यह भी कहा कि `शराब माफिया सरकार, अफसरों और चिंतकों को जकड़ लेता है. इसलिए शराबबंदी लागू नहीं की जा रही.` उन्होंने टीकमगढ़ अपने गृहनगर टीकमगढ़ से शराबबंदी का अभियान चलाने का ऐलान भी किया था

नशे की वजह से ही अपराधों में हो रही वृद्धि

उमा ने मीडिया से बातचीत में यह भी कहा था कि `नशा करने के बाद ही रेप की घटनाएं बढ़ रही हैं, इसलिए नशा और शराबबंदी होनी चाहिए. ऐसा निर्णय लेने के लिए राजनैतिक साहस की जरूरत होती है.` उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा था- `थोड़े से राजस्व का लालच और माफिया का दबाव शराबबंदी नहीं होने देता.

देखा जाए तो सरकारी व्यवस्था ही लोगों को शराब पिलाने का प्रबंध करती है. जैसे, मां जिसकी जिम्मेदारी अपने बालक का पोषण करते हुए उसकी रक्षा करने की होती है. वही मां अगर बच्चे को जहर पिला दे. शराबबंदी को लेकर सरकार का रवैया ऐसा ही है.`

शराबबंदी दूर, सरकार चाहती थी दुकानों की संख्या बढ़ाना

बता दें कि मुरैना में जहरीली शराब से 28 लोगों की मौत के बाद जब एक जांच में यह तथ्य सामने आया कि अवैध शराब बिकने के पीछे गांवों में शराब दुकानों का दूर-दूर होना बड़ा कारण है, तो गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने शराब दुकानों की संख्या बढ़ाने की मंशा जाहिर की थी, तब भी उमाभारती के विरोध के कारण मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को सफाई देनी पड़ी और कदम पीछे खींचने पड़े. गौरतलब है कि प्रदेश में शराब की देसी 2544 और विदेशी शराब की 1061 दुकानें हैं, जिनकी संख्या शिवराज सरकार बढ़ाना चाहती थी.

 

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