सर्वे / प्रसव खर्च के लिए 30% परिवारों को संपत्ति बेचनी पड़ी, 63% महिलाएं डिलीवरी तक काम कर रही थीं

संक्षेप:

  • 6 राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में गर्भावस्था से गुजर रहीं महिलाओं के सर्वे के चौंकाने वाले नतीजे.
  • जून 2016 में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, यूपी, ओडिशा, झारखंड, हिमाचल प्रदेश में किया गया सर्वे.
  • ग्रामीण इलाकों में गर्भवती व हाल ही में जन्म देने वाली माताओं के स्वास्थ्य को लेकर पूछे सवाल.

नई दिल्ली: देश के छह राज्यों में ग्रामीण इलाकों में रहने वाली गर्भवती और हाल ही में बच्चों को जन्म दे चुकीं माताओं के बीच हुए सर्वे के चौंकाने वाले नतीजे सामने आए हैं। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, झारखंड, ओडिशा और हिमाचल प्रदेश के ग्रामीण इलाकों और आंगनवाड़ी में हुए इस सर्वे के मुताबिक ग्रामीण इलाकों में महिलाओं की स्थिति काफी निराशाजनक है। सबसे निराशाजनक नतीजे यह है कि 30% के परिवारों को प्रसव खर्च पूरे करने के लिए संपत्ति बेचनी पड़ी, वहीं 63% महिलाएं डिलीवरी के दिन तक घर या खेतों में कामकाज करती रहीं। इसके अलावा किसी को पौष्टिक भोजन नहीं मिल पा रहा, तो किसी को परिवार से मदद नहींं मिल रही, कई महिलाएं तो ऐसी रहीं, जिनका वजन डिलीवरी के दिन तक 40 किलो से भी कम था। गर्भवती महिलाओं की सबसे निराशाजनक स्थिति उत्तर प्रदेश में सामने आई है।

गर्भावस्था के दौरान कई समस्याओं से जूझना पड़ा

सर्वे के मुताबिक ज्यादातर महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान और डिलीवरी के बाद भी कई समस्याओं से जूझना पड़ा। पौष्टिक भोजन न मिलने की वजह से ज्यादातर महिलाओं को कमजोरी, थकावट, पैरों में सूजन जैसी तकलीफें झेलनी पड़ी।

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समस्याएं  महिलाएं

कमजोरी- 49%
पैरों में सूजन- 41%
आंखों की रोशनी कम पड़ना- 17%
दौरे पड़ना- 9%
पर्याप्त आराम नहीं- 30%
पैसे की कमी से अच्छा इलाज नहीं - 34%

13 किलो की जगह सिर्फ 7 किलो बढ़ा वजन

आम तौर पर गर्भावस्था के दौरान महिलाओं का वजन बढ़ता है, लेकिन खान-पान में कमी की वजह से इसमें कमी भी आ जाती है। कम बॉडी मास इंडेक्स यानी ऊंचाई के अनुपात में वजन के मामले में आम तौर पर 13-18 किलोग्राम वजन बढ़ना चाहिए। लेकिन सर्वे में शामिल महिलाओं का वजन औसतन 7 किलो तक ही बढ़ा। यूपी में यह आंकड़ा महज 4 किलो रहा। इनमें उन महिलाओं की जानकारी शामिल नहीं है, जिन्हें अपने वजन के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।

यूपी में स्थिति सबसे निराशाजनक

सर्वे में बेहद निराशाजनक नतीजे यह रहे कि जिन घरों में सर्वे किया गया वहां गर्भावस्था की जरूरतों जैसे- अच्छा खाना, दवाइयां, आराम और स्वास्थ्य की देखभाल पर बहुत ही कम ध्यान दिया जा रहा था। इनमें भी सबसे निराशाजनक स्थिति उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में देखने को मिली। उदाहरण के तौर पर यूपी में 48% गर्भवती महिलाओं को यह नहीं पता था कि इस दौरान उनका वजन बढ़ा या नहीं। वही जन्म दे चुकीं 39% महिलाओं को अपना वजन बढ़ने या घटने के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। इस दौरान सिर्फ 12% महिलाओं ने पौष्टिक भोजन लेने की बात मानी। इतना ही नहीं, उन्हें गर्भावस्था के दौरान या डिलीवरी के बाद कुछ समय तक आराम करने या स्वास्थ्य लाभ लेने के बारे में भी जानकारी नहीं थी।

6,000 रुपए का सरकारी लाभ सभी के लिए नहीं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 31 दिसंबर 2016 को घोषणा की थी कि देशभर में गर्भवती महिलाओं को 6,000 रुपए का मातृत्व लाभ मिलेगा। लेकिन जमीनी स्तर पर इसका लाभ सभी को नहीं मिल पा रहा। प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद 2017-18 के बजट में `मातृत्व लाभ` कार्यक्रम के लिए 2,700 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था, किन्तु यह जरूरत के हिसाब से काफी कम है। क्योंकि 20 प्रति हजार की जन्म दर और 90% का प्रभावी कवरेज मानें, तो प्रत्येक गर्भवती महिला को 6,000 रुपए का मातृत्व अधिकार देने के लिए सालाना करीब 15 हजार करोड़ रुपए की जरूरत होगी। सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत प्राप्त की गई जानकारी से पता चला कि 2018-19 में इस योजना की पात्र सिर्फ आधी महिलाओं को ही थोड़े-थोड़े पैसे मिले। पहले जीवित बच्चे की शर्त के कारण 55% से ज्यादा महिलाएं तो इसकी पात्र भी नहीं हैं।

रकम घटाकर 5,000 रुपए कर दी

अगस्त, 2017 में केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने प्रधानमंत्री मातृत्व वंदना योजना (PMMVY) दिशानिर्देश और ड्राफ्ट नियम जारी किए। इसके तहत रकम घटाकर 5,000 रुपए करने और मातृत्व लाभ सिर्फ पहले जीवित जन्म के लिए लागू करने जैसी कई शर्तें लगा दी गईं।

...लेकिन यहां सकारात्मक असर- अस्पतालों में प्रसव बढ़ा

कई निराशाजनक मामलों के बीच एक सकारात्मक और राहत देने वाला नतीजा यह रहा कि घर पर डिलीवरी के बजाय सरकारी या निजी अस्पतालों में डिलीवरी बढ़ी है। इससे जच्चा-बच्चा की देखभाल उचित तरीके से हो पा रही है। सर्वे के मुताबिक सिर्फ 12% परिवारों ने कहा कि उन्होंने घर पर प्रसव कराया, यानी 88% बच्चों का जन्म डॉक्टर और नर्स की देखरेख में किसी अस्पताल में हुआ। इसके अलावा नियमित स्वास्थ्य जांच भी की गई।

सेवाएं गर्भवती प्रसव के बाद

नियमित जांच 74% 86%
टिटेनस इंजेक्शन 84% 96%
आयरन या ताकत की गोली 74% 93%
खाद्य पूरक, पोषण 77% 92%
स्वास्थ्य सलाह 72% 64%

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