हाथियों के आतंक से पहाड़ पर रहने को हुआ मजबूर ये परिवार

संक्षेप:

  • हाथियों की आमद के बाद परिवार अपनी जान बचाने के लिए शरण लेता है
  • बच्चे 200 फीट खाई के किनारे जान जोखिम में डालकर चलते है
  • शासन प्रशासन से अब तक कोई सहयोग नहीं मिला

सरगुजा: आधुनिकता की चकाचौंध से दूर एक तरफ तो हम मंगल तक पहुंच गए लेकिन वहीं दूसरी तरफ ग्रामीणों तथा आदिवासी अंचलों में लोग अपना जीवन यापन किस तरह से कर रहे हैं हम आपको उसकी एक तस्वीर दिखाने जा रहे हैं वह शासन प्रशासन की योजनाओं की हकीकत तो सामने लाएगी ही साथ ही साथ विकास के दावों की पोल भी खोल देगी,,,,, जहां पहाड़ी कोरवा जिन्हें राष्ट्रपति का दत्तक पुत्र भी कहा जाता है उनका परिवार पेड़ों के नीचे आशियाना बनाकर रहने को मजबूर है सुविधाओं का अभाव है तो वहीं हाथी से बचने लोग गुफाओं की शरण में जाने को मजबूर देखिए हाथी से बचने गुफा की शरण में पहाड़ी कोरवाओं के परिवार पर एक खास रिपोर्ट।

सरगुजा जिले से करीब 65 किलोमीटर दूर पर स्थित है पटकुरा पंचायत और पटपुरा पंचायत से 3 किलोमीटर पर स्थित है जोगीडीह पहाड़ जिस पर चलना भी ठीक से मुमकिन नहीं और 3 किलोमीटर के दुर्गम पहाड़ियों के बीच रहता है पहाड़ी कोरवाओं का परिवार लंबू राम, बीनू राम जैसे करीब आधा दर्जन पहाड़ी कोरवा का इलाका कोई बस्ती नहीं बल्कि घना जंगल और पहाड़ों की गुफाओं का इलाका है यहां पहुंचना हमारे लिए भी आसान नहीं था ऐसे में हमने एक स्थानीय व्यक्ति की मदद की और फिर शुरू किया दुर्गम पहाड़ियों पर पहुंचने का सफर।

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घना जंगल, दुर्गम पहाड़ी और उबड़ खाबड़ नालों को पार करने के बाद हमें दिखा पेड़ों के नीचे बना मचान जहां बिना किसी सुविधाओं के पहाड़ी कोरवाओं का परिवार मौजूद था जब हमने यहां पहुंच कर उनसे बात करने की कोशिश की तो पहले तो वह हमारी टीम पर ही भड़क उठे और उन्होंने हमें वन विभाग का कर्मचारी समझ कोई सुविधा न देने की बात कहते हुए खरी-खोटी सुनानी शुरू कर दी समझाइश के बाद जब हमने हाथियों की बात की तो परिवार पूरा सिहर उठा और फिर वह हमें उस जगह पर ले गए जहां हाथियों की आमद के बाद परिवार अपनी जान बचाने के लिए शरण लेता है पगडंडी और खाइयो का यह रास्ता बेहद खतरनाक था और जब हम उस गुफा तक पहुंचे जहां पहाड़ी कोरवाओं के परिवार बसते हैं तो हम भी सिहर उठे क्योंकि छोटे-छोटे बच्चे 200 फीट खाई के किनारे जान जोखिम में डालकर चल रहे थे ऐसे में यहां मौजूद लोगों ने बताया कि वह करीब 3 सालों से यहां रह रहे हैं पहले वह गांव में रहते थे मगर वहां उन्हें न तो घर मिला और ना ही कोई रोजी रोटी का साधन ऐसे में उन्होंने जंगल में ही मचान बनाकर रहना शुरू कर दिया मगर हाथी उनके मचान को हर बार तोड़ देते हैं ऐसे में अब वह झोपड़ी में ही रहते हैं और हाथी आने पर गुफाओं की शरण ले लेते हैं पहाड़ी कोरवा परिवार ने हमें यह भी बताया कि शासन प्रशासन से उन्हें अब तक कोई सहयोग नहीं मिला और ना तो वन विभाग का अमला उन्हें हाथों से बचाने के लिए कोई पहल कर रहा है हमारे साथ के गांव के व्यक्ति ने भी कहा कि यहां जीवन जीना बेहद कठिन है और न तो पंचायत से और ना ही वन विभाग से इन पहाड़ी कोरवा कोई मदद दी है।

हमारी टीम ने सुविधाओं से महरूम और जंगलों के बीच गुफा में रहने वाले पहाड़ी कोरवाकी खोज तो कर ली मगर जब हम इसकी जानकारी लेने वन विभाग के दफ्तर पहुंचे तो वन विभाग के अधिकारियों को ऐसी किसी बात की जानकारी ही नहीं थी हद तो यह कि डीएफओ ने भी ऐसे किसी जानकारी से इनकार करते हुए यह स्वीकार किया कि Iहमारे चैनल के माध्यम से ही उन्हें यह जानकारी मिल रही है मगर अब जब हमारे चैनल ने इस मामले की जानकारी दी तब वन विभाग का अमला भी पहाड़ी करवाओ को सुरक्षित शिफ्ट करने के साथ ही उन्हें सुविधाएं मुहैया कराने के बात जरूर कह रहा है।

बहरहाल यह तस्वीर यह बताने के लिए काफी है कि पहाड़ी कोरवा और हाथियों से लोगों को सुरक्षित करने के लिए शासन प्रशासन की तरफ से करोड़ों रुपए तो खर्च किए जा रहे हैं मगर शायद धरातल पर उनका सही उपयोग नहीं हो पा रहा है यही कारण है कि अभी आदि मानव के काल में यह पहाड़ी कोरवाओ का जीवन बीत रहा है यहां कंदमूल ही उनका भोजन है वन संपदा ही उनकी संपत्ति और पर्वत की खोह ही उनका आशियाना ऐसे में जरूरत इस बात की है कि संरक्षित जाति के पहाड़ी कोरवा ओं के लिए शासन प्रशासन कोई पहल करें ताकि पहाड़ी कोरवाओं का परिवार भी सुरक्षित आशियाने में जीवन बिता सके और हाथियों के दहशत से परिवार उबर सके।

 

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