उत्तराखंड में अंग्रेजों की बनाई राजस्व पुलिस व्यवस्था 6 महीने में होगी खत्म

संक्षेप:

  • पुरानी राजस्व पुलिस व्यवस्था छह महीने में होगी खत्म
  • नैनीताल हाईकोर्ट ने सुनाया ऐतिहासिक आदेश
  • कुमाऊं के तत्कालीन ब्रिटिश कमिश्नर ने पटवारियों के 16 पद किए थे सृजित

 

देहरादून: नैनीताल हाईकोर्ट ने उत्तराखंड में चली आ रही सदियों पुरानी राजस्व पुलिस व्यवस्था को छह महीने में खत्म करने का ऐतिहासिक आदेश सुनाया है। इस फैसले के बाद पहाड़ी प्रदेश को 158 सालों से चली आ रही व्यवस्था से छुटकारा मिलने जा रहा है।

पर्वतीय राज्य उत्तराखंड में राजस्व पुलिस की व्यवस्था अंग्रेजों के जमाने से है। 158 सालों से जमाना कहां से कहां पहुंच गया, सामाजिक क्षेत्र में व्यापक बदलाव गये, भौगोलिक स्थिति बदल गईं लेकिन राजस्व पुलिस बिना हथियार के ही कानून व्यवस्था को संभाल रही थी।

अंग्रेजों की ये खासियत रही है कि उन्होंने भारत में जहां भी शासन किया, वहां कानून व्यवस्था और राजस्व वसूली को संभालने के लिए पुलिस थानों की भी स्थापना की। पहाड़ी क्षेत्र उत्तराखंड में भी अंग्रजों ने साल 1860 में राजस्व पुलिस की स्थापना की और इस व्यवस्था का केंद्र पटवारी को बनाया गया।

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कुमाऊं के तत्कालीन ब्रिटिश कमिश्नर ने पटवारियों के 16 पद सृजित किए थे। इन्हें पुलिस, राजस्व संग्रह, भू अभिलेख का काम दिया गया था। साल 1874 में पटवारी पद का नोटिफिकेशन हुआ। रजवाड़ा होने की वजह से टिहरी, देहरादून, उत्तरकाशी में पटवारी नहीं रखे गए। साल 1916 में पटवारियों की नियमावली में अंतिम संशोधन हुआ। 1956 में टिहरी, उत्तरकाशी, देहरादून जिले के गांवों में भी पटवारियों को जिम्मेदारी दी गई। पटवारी के ऊपर कानूनगो आदि अधिकारी और अधीनस्थ पद पर चपरासी को तैनात किया गया।

पटवारी को वो सभी अधिकार दिये गये जो पुलिस के दिये गये, जिसमें मुकदमा दर्ज करने से लेकर गिरफ्तारी और जांच तक शामिल है। इसके लिए पूरे क्षेत्र को पट्टियों में बांटा गया। एक पट्टी में एक पटवारी होता था। पटवारी और उसके संवर्ग के अन्य कर्मचारियों को कानून व्यवस्था के साथ ही भू राजस्व संबंधी सभी काम देखने होते हैं। इसके अलावा राजस्व संग्रह और कर्ज वसूली का दायित्व भी उसके ऊपर था।

आजतक पर्वतीय जिलों में इसके मुताबिक ही काम हो रहा है। पहाड़ की 60 प्रतिशत आबादी राजस्व पुलिस के पास है। इन जिलों में सिविल पुलिस नहीं है, वो केवल नगरों और सड़कों से लगे गांवों में ही कार्य देखती है। हालांकि, उत्तराखंड राज्य बनने के बाद पटवारियों ने ब्रिटिश नियमावली में संशोधन की मांग उठाई थी लेकिन उनकी आवाज दबकर रह गई। अब हाइकोर्ट के आदेश के बाद इन गांवों के अंग्रेजों के कानून से बाहर निकलने की उम्मीद जग गई है। इस पर सरकार ने भी मंथन भी शुरू कर दिया है।

 

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