राम को देखकर धन्य हो जाता है भगवान शिव का तीसरा नेत्र : मैथिलीशरण

उनमें विकार कभी होता ही नहीं।

मैं शिव से किसी पुनर्विषय की इच्छा से विवाह कर ही नहीं रही हूं।

मैं तो उन शिव से विवाह करना चाह रही हूं, जिनके हृदय में सदा राम रहते हैं और वे नेत्र का उपयोग केवल प्रभु दर्शन के लिए ही करते हैं। स्वामी मैथिलीशरण ने कहा कि संसार न तो शिव के चिंतन का विषय है, न दर्शन का ही।

वे सदा निर्विकार हैं।

पार्वती ने अपने विवाह के मूल में गुरुकृपा को देखा और कहा कि विवाह तो मैं केवल शिव से ही करूंगी अन्यथा अविवाहित रहूंगी, क्योंकि मेरे गुरुदेव भक्तिमार्ग के आचार्य नारद ने मुझे उपदेश किया है।प्रवचन से पूर्व अनिल पाठक व बिक्रम मिश्र ने शिवम चौरिहा के तबला वादन पर भजनों की सुमधुर प्रस्तुति देकर सभी को भावविभोर कर दिया।

इस मौके पर श्री सनातन धर्म सभा गीता भवन के अध्यक्ष राजेश ओबराय, राघव ओबराय, अंजू ओबराय समेत बड़ी संख्या में भक्तजन मौजूद रहे। शिव से जुड़कर गुण में तब्दील हो जाते हैं दोषस्वामी मैथिलीशरण ने कहा कि नारदजी ने हिमालय पुत्री उमा का हाथ देखकर कह दिया था कि इस कन्या का विवाह शिव से होगा।

संसार में केवल शिव ही ऐसे हैं, जिनके साथ जुड़कर दोष भी गुण कहलाते हैं।

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