राजनीतिक दलों के प्रति दरकी जातियों की प्रतिबद्धता, यहां वोटरों ने बदल दिए सारे समीकरण, BJP-BSP को सोचने पर कर दिया मजबूर

सपा ने छह में तीन सीटें जीतीं तो कांग्रेस हारकर भी मतदाताओं का दिल जीतने में कामयाब रही।

भाजपा के गढ़ गोरखपुर-बस्ती मंडल में हैरान कर देने वाला यह चुनाव परिणाम जातीय राजनीति के लिए बदनाम इस क्षेत्र में नई सियासत का सूत्रपात कर गया।

बिरादरी बहुल इलाकों में बूथवार परिणाम इसे पुष्ट कर रहे हैं। सबसे पहले बात कांग्रेस की।

पिछले चुनाव में महराजगंज से 3.40 लाख मतों के अंतर से जीतने वाले भाजपा के दिग्गज नेता पंकज चौधरी के सामने पिछली बार एक लाख वोट भी न सहेज सकी कांग्रेस ने इस बार साढ़े पांच लाख मत बटोरे।

35 हजार मतों से हारे फरेंदा विधायक वीरेंद्र चौधरी दलित, अति पिछड़ा और सवर्ण मतदाताओं की बदौलत अपने विधानसभा क्षेत्र में तो आगे रहे ही, नौतनवा और महराजगंज में भी कांटे की टक्कर दी। इसे भी पढ़ें-लोकसभा चुनाव में मजबूती से उभरी कांग्रेस, सीएम योगी के गढ़ में भाजपा को दी कड़ी टक्‍कर, देखें आंकड़े बांसगांव में भी कुछ ऐसा ही हुआ।

एक लाख से अधिक मतों से जीतने वाले तीन बार के सांसद कमलेश पासवान को जीत के लिए कांग्रेस प्रत्याशी सदल प्रसाद से अंत तक जूझना पड़ा।

रुद्रपुर और चौरीचौरा को छोड़ दें तो सवर्ण और वंचित बहुल मतदाता वाले बांसगांव, बरहज और चिल्लूपार विधानसभा क्षेत्र में सदल को बढ़त मिली। पांच हजार वोटों के कम अंतर से जीतने वाले कमलेश अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित उस बांसगांव विधानसभा क्षेत्र में भी जीत नहीं दर्ज करा सके जहां से उनके छोटे भाई डा. विमलेश पासवान विधायक हैं।

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