अभिव्यक्ति का अधिकार: आवाज से जगाई अलख, थाईलैंड तक पहुंची महिला अधिकारों की गूंज

करिश्मा बताती हैं कि पढ़ाई के समय से ही नारी शक्ति के लिए कुछ करने का मन था, लेकिन आवाज गिने-चुने लोगों तक ही पहुंच सकती थी।

वर्ष 2015 में सामुदायिक रेडियो वक्त की आवाज की प्रमुख राधा शुक्ला से संपर्क हुआ तो उस वक्त करिश्मा कक्षा नौ में पढ़ रही थीं।  उन्होंने रेडियो जाकी बनकर आवाज गांव-गांव पहुंचाने को कहा।

इसके बाद तो जिंदगी ही बदल गई।

अब तो वह रोज एक विषय चुनती हैं और उस पर महिलाओं के लिए कार्यक्रम प्रस्तुत करती हैं।

इसमें कभी महिला शिक्षा विषय होता है तो कभी अपने अधिकारों के प्रति लड़ाई।

महिलाएं उनसे जुड़ती हैं, समस्याएं बताती हैं और कई बार उनके साथ जुड़कर उसके समाधान के लिए संघर्ष भी करती हैं।   उनका कहना है कि चूंकि ग्रामीण परिवेश में ही जीवन बीता लिहाजा महिलाओं से बात करना उनसे जुड़ना ज्यादा आसान रहा।

अब तो कई बार महिलाएं फोन पर संपर्क करती हैं तो उनकी समस्या के अनुरूप ही थाने की महिला डेस्क, वन स्टाप सेंटर या 181 नंबर पर डायल समस्या बताने को कहती हैं और समस्या निदान तक इसकी चिंता करती हैं तो महिलाओं का भी आत्मविश्वास बढ़ रहा है। करिश्मा बताती हैं कि इस कार्यक्रम को बीते साल ही सितंबर थाईलैंड के स्वयंसेवी संगठन अमार्क ने सराहा और महिला अधिकारों को लेकर आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में आमंत्रित किया।

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