मुलायम से अखिलेश को मिली सत्ता की चाबी, यादव-मुस्लिम वोटों में बिखराव; अब पिता की विरासत संजोए रखने की चुनौती

, कानपुर।

सैफई... इटावा का वो गांव, जो कभी लोगों के लिए कोई महत्व नहीं रखता था पर राजनीति में नेताजी के नाम से पहचान बनाने वाले पहलवान मुलायम सिंह यादव ने कुछ ऐसे सियासी दांव चले कि देश-दुनिया तक उसकी चमक बिखरी।

राजनीति के अखाड़े में चले दांव-पेच में माहिर मुलायम ने शुरुआत की तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा।

पहली बार वो 1989 में जनता दल से मुख्यमंत्री बने।

इसके बाद एमवाइ (मुस्लिम-यादव) समीकरण साधकर 1992 में समाजवादी पार्टी का गठन कर ऐसी साइकिल चलाई कि प्रदेश की राजनीति की धुरी बन गए।

पार्टी गठन के चार वर्ष बाद ही वह राष्ट्रीय राजनीति में बड़ी पहचान बनकर उभरे और देश के रक्षा मंत्री तक बने।

तब इटावा, औरैया, कन्नौज और फर्रुखाबाद से सटी लोकसभा सीटें सपा का मजबूत किला हुआ करती थीं। मुलायम ने 2012 में अखिलेश को सौंपी विरासत पार्टी कार्यकर्ता पूरे गुरूर से नारा बुलंद करते थे, जिसका जलवा कायम है, उसका नाम मुलायम है।

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