बंगाल चुनाव के नतीजे तय करेंगे UP में मुस्लिम सियासत की दिशा, ओवैसी पर सबकी नजर

संक्षेप:

  • बिहार के विधानसभा चुनाव (Bihar Vidhansabha Elections-2019) में पांच सीटों पर जीत दर्ज करने के बाद से असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) खासे उत्साहित हैं
  • बंगाल में तैयारी कर चुके हैं. वैसे तो नतीजे आने बाकी हैं लेकिन, इससे पहले ही ये सवाल तैरने लगे हैं कि इसका यूपी की राजनीति पर क्या असर होगा?
  • क्या बंगाल चुनाव (Bengal Elections) के नतीजे यूपी में मुस्लिम राजनीति की दिशा और दशा तय करेंगे?

लखनऊ: बिहार के विधानसभा चुनाव (Bihar Vidhansabha Elections-2019) में पांच सीटों पर जीत दर्ज करने के बाद से असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) खासे उत्साहित हैं. बंगाल में तैयारी कर चुके हैं. वैसे तो नतीजे आने बाकी हैं लेकिन, इससे पहले ही ये सवाल तैरने लगे हैं कि इसका यूपी की राजनीति पर क्या असर होगा? क्या बंगाल चुनाव (Bengal Elections) के नतीजे यूपी में मुस्लिम राजनीति की दिशा और दशा तय करेंगे?

दरअसल यूपी में मुस्लिम राजनीति की बात करते ही इन दिनों असदुद्दीन ओवैसी का नाम अपने आप लोगों की जुबान पर आ जा रहा है. जिस तरीके से बिहार चुनाव में मिली जीत के बाद से ओवैसी के हौसले बुलंद हैं. यदि बंगाल के चुनाव में भी उन्हें कुछ सीटें मिल जाती हैं तो वे दमदारी से ये बात कह सकते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर मुस्लिम समाज को प्रतिनिधित्व देने में उन्हें कामयाबी हासिल हो रही है. इसी दम पर यूपी में भी अपने झंडे तले मुस्लिम समाज को गोलबंद करने का उनका दावा और मजबूत हो जाएगा.

`यूथ में है ओवैसी का क्रेज`

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इसमें कोई दो राय नहीं कि यूपी में 2022 के विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM एक बड़ा फैक्टर रहेगी. इण्डियन नेशनल लीग के अध्यक्ष प्रोफेसर सुलेमान कहते हैं कि ओवैसी की सभाओं में सुनने वाले दीवानों की जो भीड़ हो रही है, वैसी फिलहाल किसी लीडर की जनसभा या मजलिस में देखने को नहीं मिल रही है. सोशल मीडिया पर उनके भाषण खूब सुने जा रहे हैं. लोकप्रियता तो बढ़ती ही जा रही है. खासकर यूथ में.
प्रो. सुलेमान कहते हैं कि ओवैसी की तरफ ये खिंचाव इसलिए है क्योंकि उन्होंने बिना लाग लपेट के हर मुद्दे पर बात की है. जनता के सामने अपनी बेबाक राय रखी है. किसी भी पार्टी के नेता ने ये दम नहीं दिखाया है. चाहे अखिलेश यादव हों या फिर कोई और, सभी ने राजनीतिक नफा-नुकसान को ज्यादा तौलना शुरू कर दिया है. ओवैसी की तकरीर सुनने के बाद मुस्लिम समाज के वोटिंग पैटर्न में भी बदलाव देखने को मिल सकता है. मुस्लिम मतदाताओं पर हमेशा ही आरोप लगते रहे हैं कि वह भाजपा को हराने वाले कैंडिडेट की तरफ से वोट करते रहे हैं. इस नकारात्मक वोटिंग में बदलाव आना शुरू हुआ है. मुस्लिम मतदाता अब भाजपा को हराने के लिए नहीं बल्कि अपने कैंडिडेट को जिताने के लिए वोट करेगा.

तो क्या ओवैसी की पार्टी मुस्लिम वोटबैंक में लगायेगी बड़ा सेंध?

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर शकील समदानी कहते हैं कि इसके भरपूर आसार दिखायी दे रहे हैं. मुस्लिम हितों की बात करने वाली पार्टियों ने इस समाज को हिस्सेदारी देने में कंजूसी की है. समाजवादी पार्टी मुस्लिम हितों की बात करती रही है लेकिन, इस वोटबैंक से सिर्फ अपने महल ही बनाये हैं. प्रो. समदानी यहीं नहीं रूकते. उन्होंने कहा कि जब आज़म खान को बीच मझधार में सपा ने छोड़ दिया तो किसी और की क्या बिसात? यूपी में ओवैसी कई सीटें जीत सकते हैं और कई सीटों पर सियासी समीकरण बिगाड़ सकते हैं.

तस्वीर का दूसरा पहलू ये भी है…

लेकिन, मुस्लिमों की अगुवाई करने वाले सभी ऐसा नहीं सोचते. पिछड़े मुस्लिमों के लिए काम करने वाले पसमांदा समाज के मारूफ अंसारी कहते हैं कि ओवैसी जिन्ना के क्लोन हैं. ऐसे लीडर सिर्फ ऊंचे तबके के लोगों के बारे में ही सोचते हैं और उन्हीं के उत्थान में लगे रहते हैं. पिछड़े मुस्लिमों के लिए इनके दिलों में कोई जगह नहीं है. अखिलेश यादव पर आज़म खान को तन्हा छोड़ देने के आरोपों पर मारूफ कहते हैं कि ये तो मामला न्यायिक प्रक्रिया का है. वे पूछते हैं कि लालू यादव जेल में बन्द हैं तो क्या तेजस्वी यादव इसके लिए सड़क पर आंदोलन कर रहे हैं. ऐसा नहीं होता है.

यूपी में छोटे दलों को साथ लाने में लगे हैं ओवैसी

कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि ओवैसी को यूपी के आने वाले विधानसभा के चुनाव में इग्नोर करके नहीं देखा जा सकता है. उन्हें पता है कि 18-19 फीसदी आबादी वाले मुस्लिम तबके में सेंधमारी ये सुअवसर है. हालांकि इस सेंधमारी से सियासी समीकरण तो बिगाड़ा जा सकता है लेकिन, फतह नहीं हासिल की जा सकती. यही वजह है कि जीत के लिए ओवैसी छोटे दलों को अपने साथ लाने की जुगत में लगे हैं.

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