NYOOOZ Special: ब्लू व्हेल के बढ़ते कहर पर जानिए एक्सपर्ट संगीता शर्मा की राय

संक्षेप:

  • रात में बच्चों की गतिविधियों पर दें ध्यान
  • पेरेंट्स रहें बच्चों से ज्यादा कनेक्ट
  • टीचर तुरंत लें एक्शन

लखनऊः ब्लू व्हेल गेम का कहर कम होने की बजाय बढ़ता ही जारहा है ऐसे में सबसे ज्यादा जरूरी है कि बच्चों के माता पिता को उन पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए. आधुनिक युग में बच्चों के पास मोबाइल होना तो आम बात है लेकिन ब्लू व्हेल गेम का असर देखकर पेरेंट्स को बच्चों की हर गतिविधि पर पैनी नज़र रखने की जरूरत है साथ ही स्कूल प्रशासन को भी पूरी सावधानी बरतने की जरूरत है.

आखिर ऐसे में पेरेंट्स को क्या करना चाहिए और बच्चों को कैसे रोका जा सकता है इस बात पर NYOOOZ संवाददाता शान्तनु त्रिपाठी ने चाइल्ड वेलफेयर कमिटी की वरिष्ठ सदस्य और चाइल्ड लाइन 1098 की कंसलटेंट संगीता शर्मा से खास बातचीत की. पेश हैं बातचीत के कुछ अंशः

 NYOOOZ: ब्लू व्हेल गेम के बढ़ते कहर को रोकने के लिए पेरेंट्स को क्या करना चाहिए?

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संगीतः सबसे पहले इस खेल के कहर को रोकने के लिए सभी पेरेंट्स को अलर्ट रहने की जरूरत है. साथ ही साथ जरूरी है कि इस ब्लू व्हेल गेम की जानकारी पेरेंट्स भी हमारे वालंटियर्स या जानकारों की जरिये लें और जाने कि आखिर यह गेम है क्या, जानकारी जरूरी इसलिए है जिससे कि पेरेंट्स आम गेमों की तरह इस खेल को न समझें.

ख़ास तौर से पेरेंट्स रात में बच्चों पर ज्यादा ध्यान दें उनकी हर गतिविधियों पर नज़र रखें कि बच्चा रात में कहीं ज्यादा चैट तो नहीं कर रहा या यहीं किसी बात को लेकर परेशान तो नहीं है. क्योंकि इस खेल में कमांडर रात में ही बच्चों को टास्क देता है कि ऐसा करो या वैसा करो क्योंकि उस समय बच्चों की ओर ध्यान कम जा पाता है.

जरूरी है कि बच्चों के शरीर पर मार्क को समय-समय पर चेक करते रहें कि ऐसा तो नहीं कि बच्चे के शरीर पर अलग तरह के निशान या कोई चोट के जख्म हों. अगर कहीं भी बच्चे के शरीर में ऐसा दिखे तो तुरंत उस पर एक्शन लें. 

NYOOOZ: क्या प्रमुख उपाय हैं जिससे बच्चों को इस कहर से रोका जा सके? 

संगीतः मेरे अनुसार प्रिवेंशन यानी बचाव ही सबसे अच्छा तरीका है बच्चों को बचाने के लिए. बच्चों को बहुत ज्यादा अकेला न छोड़ें. जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों से ज्यादा से ज्यादा संपर्क बनाने की कोशिश करें और उनकी हर बात को जानने की कोशिश करें.

ध्यान दें अगर बच्चों में एकदम बदलाव आरहा है जैसे अगर कोई बच्चा बहुत बोलता है और चुलबुला है तो जैसे एकदम से उसने बोलना बंद कर दिया और अकेला अकेला रहने लगा तो तुरंत ध्यान दें और बच्चे से संपर्क बनायें.

स्कूल में भी अगर कोई बच्चा खाली कमरे में बैठा है और और अपनी धुन में है तो तुरंत ध्यान देने की जरूरत है कि आखिर यह बच्चा इतने लोगों से अलग यहां क्यों बैठा है. टीचर्स भी एक्शन के साथ साथ बच्चों पर एक्शन भी लें.  

NYOOOZ: चाइल्ड लाइन 1098 की टीम किस तरह काम कर रही है इस क्षेत्र में?

संगीतः हमारे वालंटियर जो पेड हैं इस चाइल्ड लाइन की तरफ से जाते हैं और स्कूलों में जानकारी देते हैं यह जानकारी बच्चों से लेकर टीचर्स तक को दी जाती है. पूरा प्रयास रहता है कि 1 से 12 तक सभी को जानकारी दी जाये. हमारे अनुसार 6 से लेकर 12 तक के बच्चों को ज्यादा जानकारी की जरूरत होती है क्योंकि यह सभी समार्ट फ़ोन यूजर्स होते हैं.

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