खाताधारकों का पैसा अगर डूबा तो बनती है सरकार की जबाबदेही

संक्षेप:

  • PMC में 23 सितंबर 2019 तक सब कुछ ठीक था
  • सरकार के रुख पर भी सवाल उठना लाजिमी है
  • PMC देश का 24वां ऐसा सहकारी बैंक है जिसे RBI ने अपने नियंत्रण में लिया

By: मदन मोहन शुक्ला

कितने दुःख की बात है जिस पंजाब एंड महाराष्ट्र कोऑपरेटिव बैंक(PMC)में 23 सितंबर 2019 तक सब कुछ ठीक था तथा जिस बैंक ने 2018-19 वितीय वर्ष में 31 मार्च 2019 तक 100 करोड़ का शुद्ध मुनाफ़ा दिखाया था।अचानक आखिर ऐसा क्या हो गया कि 24 सिंतबर को रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया ने इसको अपने नियंत्रण में ले लिया और किसी भी तरह के वित्तीय लेन देन को नियंत्रित करते हुए खाता धारकों को 6 महीने में केवल 40000 रु  तक निकालने की अनुमति दी। यानि खाताधारक अपनी कमाई हुई गाढ़ी कमाई का ज़रूरत पड़ने पर  इस्तेमाल नहीं कर सकता।

यह कितना दुखद है उन 16 लाख खाताधारकों के लिए जिनका पैसा महाराष्ट्र से लेकर कर्नाटक,दिल्ली,हरियाणा और पंजाब की 137 शाखाओं में  जमा है।सवाल यह उठता है कि जो ऊपर से दिखने में इतना मजबूत दिख रहा था जो साल के 365 दिनों में 300 दिन बराबर सेवाएं देता था ,जो बचत की स्टेट बैंक की 3.5%की तुलना में 4% ब्याज दे रहा था।जिस बैंक का सकल एन पी ए 3.76% और शुद्ध एन पी ए 2.19% रहा था तथा पूंजी पर्याप्तता अनुपात स्टेट बैंक से थोड़ा कम 12.72% की जगह 12.62% था।तो आखिर यह बैंक अंदर से इतना खोखला क्यों निकला?इसने 16 लाख खाताधारकों के विश्वास को खंडित कर दिया इसका परिणाम यह हुआ कि अब तक 5 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं अगर आगे इनके जमा पैसों को लेकर सरकार कोई कदम नहीं उठाती है तो परिणाम और भी गंभीर हो सकतें।
अब एक सवाल और उठता है कि नियामक संस्था आर बी आई बैंक में होने वाले घोटालों को रोकने में क्या अक्षम है? क्यों नहीं ऑडिटर्स से भी सवाल पूछे जाने चाहिए ।उन्होंने वित्त के अनैतिक प्रबंधन की अनदेखी की या देखतें हुए भी आंखे मूंद ली।इसकी जांच जरूरी है जांच एजेंसी को इनको भी जांच में शामिल करना होगा।

ये भी पढ़े :


यहाँ सरकार का जो रुख उस पर भी सवाल उठना लाजिमी है,सरकार को क्या उन 16लाख खाताधारकों का करुण क्रंदन नहीं सुनाई देता जिनकी जीवन भर कि जमा पूंजी का भविष्य अनिश्चित हो गया।मुम्बई के संजय गुलाटी(51)जिनका दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गयी उनके 90 लाख रु बैंक की ओशिवारा शाखा में जमा थे।उनके कुछ दायित्व थे जिसको पूरे करने के लिए पैसों की ज़रूरत थी लेकिन पैसा न निकालने की बंदिश ने उनकी  असमय जान ले ली।लेकिन वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने सारा ठीकरा आर बी आई पर डाल कर सरकार को ज़िम्मेदारी से अलग कर दिया।वह ये भूल गए कि यही जनता इनको सत्ता में लाती है ,अगर जनता के साथ कोई बे इंसाफी होती है तो सरकार की जबाबदेही बनती है, नही तो जनता का कोपभाजन का शिकार बनना पड़ता है यह बात सत्ता का सुख भोगने वालों को नहीं भूलनी चाहिये।क्योंकि कल जो सत्ता में थे वे आज जेल में है।यहां जो सत्ता में है वे कोई दूध के धोए नही है।वक्त किसी को बख्शता नही है।

खाताधारकों को अपनी मेहनत की कमाई कब मिलेगी ?बैंक प्रबंधन की करतूत का खामियाजा क्यों खाताधारक भुगतें?महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का कहना है कि चुनाव के बाद देखेंगे?इसका चुनाव से क्या लेना देना,इस मामले को तो रिज़र्व बैंक को देखना है।सरकार कहती है आचार संहिता लागू है।2019 के लोक सभा चुनाव में पी एम सम्मान योजना का पैसा किसानों के खातों में जाना था तब तो आचार संहिता आड़े हाथ नहीं आया था।

सबसे चौंकाने वाला पहलू यह है कि आर बी आई के अधिकारियों की हाउसिंग वेलफेयर सोसाइटी का पैसा भी यहीं जमा है।आर बी आई कि गाइडलाइन्स के अनुसार हाउसिंग सोसाइटी का खाता सहकारी बैंक में खुलने की बंदिश ,तो सवाल उठना लाज़िमी है कि हाउसिंग सोसाइटी के खाताधारक केवल 6666 रु प्रति महीने में कैसे अपने स्टाफ को सैलरी देंगे यह आर बी आई को सोचना होगा।बैंक की बैलेंस शीट से यह बात इंगित होती है कि बैंक के 615 करोड़ रु आर बी आई के पास जमा है तो फिर निकासी पर रोक क्यों?

इस घटना से एक बार फिर देश की बैंकिंग व्यवस्था को आघात पहुंचा है।ऐसी सूचनाएं प्राप्त हुई हैं कि यह घोटाला करीब 7000 करोड़ रु का है।घोटाले का पर्दाफाश होने के बाद पता चला कि पी एम सी ने अपने कुल 8800 करोड़ रु के कर्ज़ में से 73% सिर्फ एक ही कंपनी हाउसिंग डेवलपमेंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (HDIL)को दे रखा था  जो पहले से ही कर्ज़ में डूबी हुई थी और दिवालिया हो चुकी थी।इस बैंक के पंजाब और हरियाणा के प्रबंधन में मुलुंद हरियाणा से 4बार से रहे भाजपा विधायक सरदार तारा सिंह के पुत्र सरदार रणजीत सिंह पिछले 13 साल से बैंक के निदेशक रहे और उन्ही के संरक्षण में घोटाला होता है,जैसा कि आरोप कांग्रेस ने लगाया है तो क्या भाजपा जिनकी केंद्र और हरियाणा में सरकारें हैं, ज़िम्मेदारी नही बनती की इसकी जांच अपने स्तर से कराए और दोषी को उचित सज़ा दिलाये ।

पी एम सी देश का 24वां ऐसा सहकारी बैंक है जिसे आर बी आई ने अपने नियंत्रण में लिया है।वहीं देश भर के 26 बैंक आर बी आई के नियंत्रण में है।मार्च 2019 तक देश में 1542 शहरी सहकारी बैंक थे जबकि 2018 में इनकी संख्या 1551 थी यानी एक साल में 9 बैंक कम हो गए।

आर्थिक समाचारों की वेबसाइट में प्रकाशित अलग अलग रिपोर्ट के आकलन से पता चलता है कि देश मे 2014-19के बीच 2लाख करोड़ रु से अधिक के बैंक के घोटालें हो चुके हैं।बैंकों से धोखाधड़ी के 92% मामले ऋण से संबंधित थे।भारतीय रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया ने धोखाधड़ी से संबंधित जो सूचनाये संकलित की है उसके अनुसार वित्तिय वर्ष 2018-19 में देश मे 6800 से अधिक धोखाधड़ी के मामलें सामने आए है।इन बैंकों को 71500 करोड़ का चूना लगा।

इस वक्त हर दो से तीन महीने पर कोई न कोई कोआपरेटिव बैंक बंद हो रहा है।देश मे 1500 से ज्यादा सहकारी बैंक है।इन सबके जमा कर्ता बेहद डरे हुए हैं।बाकी बैंकिंग क्षेत्र की हालत भी ठीक नहीं है।रेटिंग एजेंसी केअर रेटिंग्स ने हाल ही में देश के 36 प्रमुख बैंकों को परखने के बाद पाया कि 17 बैंको के एन पी ए या डूबते ऋण कुल वितरित ऋण के 10%से ज्यादा हो चुके हैं।इसमें 16 सरकारी बैंक है और केवल एक निजी बैंक है।कुछ बैंक के एन पी ए तो 20% से ज्यादा है यह बैंक है यू को बैंक और इंडियन ओवरसीज बैंक।तीन सरकारी बैंक स्टेट बैंक,इंडियन बैंक और केनरा बैंक  जिनका एन पी ए 10% से कम है।

केअर रेटिंग्स के अनुसार 36 बैंकों का एन पी ए मार्च 2017 में 6.17 लाख करोड़ था।मार्च 2018 में 9.66ंलाख करोड़ और 2019 अब तक 8.97ंलाख करोड़ है।

जिस सरकार ने कैश के खिलाफ अभियान चलाया नोटबन्धी की और लोगों पर बैंको में धन रखने का दबाब बनाया, वो आज बैंकों की विफलता की सीधी ज़िम्मेदारी लेने से बच नहीं सकती।

सरकार की ज़िम्मेदारी बनती है जहां जहां जिन-जिन बैंकों या चिट फण्ड में निवेशकों का पैसा डूबा है वहाँ इसमें राजनीतिक रोटी सेंकने की जगह पारदर्शी तरीके से जांच करा कर निवेशकों का पैसा वापिस हो इसको सुनिश्चित करें तभी सरकार जनता की हितैषी मानी जायेगी ।चिट फंड घोटालों की भी लंबी चौड़ी फेहरिस्त है।

राजस्थान पुलिस ने पिछले 6 महीनों में तीन चिट फंड घोटालों का पर्दाफाश किया जिसमें 1.5लाख निवेशको के 6000 करोड़ रु डूब गए।जो कंपनियां पैसा लेकर भागी उनमें हैं संजीविनी सहकारी सोसाइटी,आदर्श कोआपरेटिव सोसाइटी।जिसमें संजीविनी में 1100 करोड़ का घोटाला सामने आया।इसमे करीब 5900 लोगों को फर्जी ऋण दिया गया तथा इनके मालिकानों ने इन रुपयों से न्यूज़ीलैंड और साउथ अफ्रीका में होटल और ज़मीने खरीदी यह बात पुलिस जांच में सामने आई।जो चिट फंड घोटाले प्रकाश में सामने आए उनमे प्रमुख 50,000 करोड़ का पी ए सी एल घोटाला।

इस घोटाले के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में सेबी को आदेश दिया था कि इनके निवेशकों को अविलम्ब 6 महीने में पैसा वापस लौटाया जाय लेकिन आज भी इसके निवेशक दर-दर की ठोकरे खा रहे हैं।यही हाल कमोबेश अन्य चिट फण्ड घोटालों का है।सहारा इंडिया स्कैम 24,000 करोड़,ग्रीन टच स्कैम 12,000 करोड़,रोज वैली स्कैम 3000 करोड़,सारधा स्कैम 10,000 करोड़,सम्रद्ध जीवन स्कैम 1500 करोड़।इनकी आज यथा-स्थिति क्या है ,क्या निवेशकों का पैसा मिल पायेगा ,इसमें सरकार का कहना है कुछ में जांच चल रही है और कुछ मामले अदालत में है यानी सरकार की मंशा संदेह के घेरे में है।निवेशक को शायद अपना पैसा भूलना होगा।यह कितनी बड़ी विडम्बना है तब भी सब भूल कर जनता मंदिर-मस्जिद,राष्ट्रीयता की घुट्टी पी कर मस्त रहती है।राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल भी 24 घंटे इसी का पाठ पढ़ाते रहते हैं।उनको इससे कोई मतलब नहीं आये दिन नीरव-मेहुल सरीखे लोग गरीब जनता को चूना लगा रहे हैं।

नियामक एजेंसी आर बी आई कि जो शाख संदेह के घेरे में हैं उस मिथ को तोड़ना होगा इसके लिए आंतरिक ऑडिट प्रणाली को और चाक चौबंद करना जो समय से पहले ही रिस्क की पहचान करके उससे निपटने के सुझाव दे।बैंकों के बोर्ड में ऐसे लोग बैठाय जाए जो निष्ठावान हो,जिनमें नेतृत्व की क्षमता हो और रिस्क प्रबंधन में विशेषज्ञ हों।इसके अलावा गैर कार्यकारी सदस्यों के रूप में भी रणनीतिक क्षमता से लैस और स्वतंत्र विचारों वाले लोगों की नियोक्ति हो।बैंक बोर्ड को सशक्त करना होगा,सरकारी दखल से मुक्त करना होगा ।सरकार की भूमिका केवल सुझाव देने तक होनी चाहिए।यह बात मैनेजमेंट गुरु डॉ विकास सिंह ने अपने एक लेख में कही है।

आज आमजन न घर का न घाट का है बैंकों में उसके पैसों पर घोटालेबाज़ों की तिरछी नज़र और घर में रखें पैसों पर आयकर की नज़र।पैसा उसका डूबे तो नेति अगर पैसों की वापसी के लिए धरना प्रदर्शन करता हैं तो पुलिस की लाठी या मौत उसका भाग्य है।सरकार कह देती है लोग अधिक मुनाफ़े के चक्कर मे फँस कर अपनी पूँजी गवां देते हैं।यह दलील सरकार में बैठे हुक्मरानों कि कितनी बचकानी लगती हैं क्योंकि उनकी जीवन भर की कमाई नहीं डूबी है।इस पर हमको सोचना होगा कि कहां हमारी जमा पूंजी सुरक्षित रह सकती है।क्योकि कल हम- आप मे से कोई भी नीरव-चौकसी के कृत्यों का शिकार हो सकता है।

 

If You Like This Story, Support NYOOOZ

NYOOOZ SUPPORTER

NYOOOZ FRIEND

Your support to NYOOOZ will help us to continue create and publish news for and from smaller cities, which also need equal voice as much as citizens living in bigger cities have through mainstream media organizations.

Read more Lucknow की अन्य ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें और अन्य राज्यों या अपने शहरों की सभी ख़बरें हिन्दी में पढ़ने के लिए NYOOOZ Hindi को सब्सक्राइब करें।