नया मोटर वाहन अधिनियम दे रहा झटका 11000 वोल्ट का

संक्षेप:

  • संशोधित मोटर वाहन अधिनियम का अभी ट्रेलर ही आया है सामने
  • हर साल एक अप्रैल से 10% तक की बढ़ोत्तरी का है प्रावधान
  • मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पुलिस से वाहन चेकिंग के छीन लिए हैं अधिकार 

By: मदन मोहन शुक्ला

सख्त नियम और भारी जुर्माने के चलते चर्चा का विषय बने संशोधित मोटर वाहन अधिनियम का अभी ट्रेलर ही सामने आया है। पूरी फिल्म होश उड़ाने वाली है।जुर्माने की जिस राशि के लिए हाहाकार मचा है वह इतने पर नहीं ठहरने वाली,महंगाई की तरह  हर साल एक अप्रैल से 10% तक की बढ़ोत्तरी  का प्रावधान है। एक्ट में ही सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के सचिव को अधिकार दिए गए है।

हालांकि कई जगह विरोध भी हो रहा है। मध्य प्रदेश ,पंजाब और वेस्ट बंगाल, छत्तीसगढ़ की सरकारों ने इसे लागू करने से साफ़ मना कर दिया है।कही ताबड़तोड़ कार्यवाही के तहत गाड़ी की कीमत से ज्यादा का जुर्माना वसूला जा रहा है।अभी हाल में उड़ीसा में एक ट्रक पर 6.80 लाख का चालान किया गया तो उत्तराखंड में एक बैल गाड़ी का ही 1000 रु का चालान कर दिया गया।  किस तरह स्कूटी वाले पर 23 हज़ार का जुर्माना तो एक ऑटो वाले पर 47 हज़ार का जुर्माना लगाया गया।

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इन सबका केंद्र सरकार को विरोध का सामना करना पड़ रहा है केंद्र सरकार भी नरमी को वरीयता दे रही है ।कुछ बीजेपी शासित  सरकारों ने जुर्माने की राशि में कटौती भी कर दी है जिसमे गुजरात शीर्ष पर है,इसके अलावा उत्तराखंड ने जुर्माना घटाया।उड़ीसा में 3 महीने की रोक,उत्तरप्रदेश में जुर्माना कम होगा,केरल में रोक,राजस्थान में आंशिक रूप से लागू। झारखंड, महाराष्ट्र और हरियाणा की सरकारें लागू करने की इच्छुक  नहीं दिखती। इससे साफ हो गया कि जहाँ आने वाले कुछ दिनों में चुनाव होने है वहां की  सरकारें लागू करने में डर रही है कही यह आगे होने वाले चुनाव में मुश्किल न पैदा कर दे।

केंद्रीय परिवहन मंत्री ने कहा कि कानून को लेकर इस देश के लोगों में न तो कोई सम्मान है न ही कोई भय।यही कारण है  कि प्रत्येक वर्ष 1.5 लाख लोग सड़क दुर्घटना में मर जाते हैं।इनकी इस बात से सहमत हूं।आगे मंत्री जी कहतें है ज्यादा जुर्माना दुर्घटना को रोकने के लिए ले रहे हैं।इसका लिंक कहाँ है इसको कैसे साबित करेंगे?

जो भ्रष्ट सिस्टम है मंत्री जी उसकी अनदेखी नहीं कर सकते कानून पूरी तरह लागू होगा पारदर्शिता अपनाई जायगी इसकी सरकार क्या गारंटी लेगी ?कागज़ पर तो सारे प्रावधान है कानून आज से नहीं कई सालों से है लेकिन कभी यह लागू नहीं हो पाता इसमें अमूमन भ्रष्टाचार का तड़का लगता रहता है।भ्रष्ट विभागों की अगर  कोई लिस्ट बने तो परिवहन मंत्रालय से जुड़े विभाग जैसे आर टी ओ ,वहाँ दलालो और बाबुओं का गठजोड़ क़ाबिज़ है और सरकार लाचार है।

इसी तरह पुलिस भ्रष्टाचार का पर्याय बन गयी है।उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने पुलिस से वाहन चेकिंग के अधिकार छीन लिए है अब केवल ट्रैफिक पुलिस ही वाहन की जाँच कर सकती है क्योंकि पुलिस अवैध वसूली में लिप्त थी। सोशल मीडिया पर एक यूजर ने पोस्ट में लिखा है ,यह मोटर वाहन अधिनियम में संशोधन नहीं है बल्कि पुलिस वालों के लिए 8वा वेतन आयोग लागू हुआ है। एक यूज़र ने पोस्ट में लिखा है संशोधन में फांसी की सजा छूट गई है उसे भी जोड़ देते।

यातायात कानून में संशोधन तो लागू कर दिया गया इसमे एक नियम और जोड़ दे की गड्ढा युक्त सड़क में गिरकर घायल होने पर रोड टैक्स का 100 गुना हर्जाना और मरने पर एक हज़ार गुना हर्जाना सरकार देगी।

एक यूज़र का कहना है कि एक सवारी बैठने का 2000 रु का चालान काटने वाली सरकार 80 लोगों की ट्रेन की बोगी में 200 लोगों का टिकट बना देती है।यह आम नागरिक के सवाल जिसका जबाब शायद सरकार के पास नहीं है।

खराब ट्रैफिक सिग्नल ,सड़क पर गड्ढे ,सड़कों पर सीवर का कचरा बह रहा,सड़कों पर लाइट के खंभे नहीं,खुदी सड़क कोई मरम्मत नहीं,गड्ढो में गिर कर चोटिल या मर जाएं ,आवारा गाये टकरा जाय कुत्ता रोड पर काट ले।इन सबके लिए कोई जिम्मेदार नहीं।ऐसा लगता है जनता ही एक मात्र अपराधी है और जुर्माना देने के लिए उत्तरदायी है ।इन सबके बीच में दबाया जाता है छोटे वाहनों का चालक उन्हीं का चालान सबसे ज्यादा होता है क्योंकि यह कोई रसूक वाला नहीं होता ,सरकारें प्रायः गरीबो,मज़दूरों,दुःखी, शोषित,मध्यमवर्गी को ही दबाती है जो ईमानदारी से सारे टैक्स भरता है सांसदों, विधायकों के अनाप सनाप खर्चो का भी बोझ उठाता है और सरकार का कोपभाजन का भी शिकार होता है।यह कहाँ का न्याय है कि अगर आपको लखनऊ से दिल्ली वाया रोड जाना है तो टोल टैक्स के रूप में आपको 900 के करीब देना पड़ेगा और अगर आप माननीय या वैरी वैरी इम्पोर्टेन्ट व्यक्ति हैं तो आपको कोई टोल टैक्स नहीं देना पड़ेगा यह भेद भाव क्यों?आम नागरिक रोड टैक्स भी दे और पेट्रोल या डीज़ल पर भी आधे से ज़्यादा टैक्स दे यह कहाँ का न्याय है?प्रशासन ,निगम,सरकार कोई जिम्मेदार नहीं है उनके लिए कोई नियम कानून  लागू नहीं होते वह किसी भी चूक  के लिए कभी जिम्मेदार नहीं ,उन्हें दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिए।नितिन गडकरी जी लचर सिस्टम को दुरुस्त करें तभी कोई कानून लागू हो पाएगा अन्यथा जो आप अच्छा करने की सोच रहें है उसमें केवल बदनामी ही मिलेगी।सिस्टम कितना लचर और भ्रष्ट है इसकी बानगी आपके संसदीय क्षेत्र नागपुर  में ही देखने को मिल जाएगी।

नागपुर में पिछले पांच महीनों में 425 सड़क हादसों में 28 सड़क पर गड्ढो के  कारण हादसे हुए।इस साल 1 जून से लेकर 31 अगस्त के बीच 28 सड़क हादसों के कारण 3 मौत और 29 घायल ।नागपुर ट्रैफिक पुलिस की एक स्टडी के अनुसार, स्टडी में सामने आया कि 15 हादसे गलत तरीके से पुलिया बनाई गई जिनमे 3 लोगों की जान चली गयी।जून में गड्ढो के कारण 8 और अगस्त में 6 हादसे हुए।सिर्फ वही मामले पुलिस के पास पहुँचते है जो गंभीर होते है जबकि बाकी ऐसे ही चले जाते है। सड़कों के हालात पर नागपुर नगर निगम पर भ्रष्टाचार और अयोग्यता के आरोप लग रहे है।

सड़कों पर सही से न चलने पर और हेलमेट न पहनने  के कारण दो पहिया चालको को और कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
सेंट्रल मोटर वाहन अधिनियम में सड़कों पर गड्ढो के कारण होने वाले हादसों के लिये अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्यवाही का प्रावधान नहीं है।नगर निगम का दावा है कि 1जून से 10 सितम्बर 19 के बीच 1464 गड्ढों को भरा गया।लेकिन यह दावे उस समय हवा हो गए जब पहली ही हलकी बारिश में  सड़कें गड्ढो से बदहाल हो गयी।

भारत में सड़क पर बने गड्ढों से हर साल सैकड़ो लोगों की मौत  हो जाती है।लगातार हो रहे हादसों के बाद भी सरकारों के कान में जूँ भी नहीं रेंगती जबकि सुप्रीम कोर्ट ने सड़कों पर मौजूद गड्ढों से बड़ी संख्या में हादसों में हो रही मौतों पर चिंता जताई।दि इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक सड़कों की बदहाली से जुड़े मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने तीखी टिप्पढ़ी करते हुए कहा आतंकी हमलों से ज्यादा लोग सड़क पर गड्ढों से होने वाले हादसों में मर रहे है।इसको बेहद डरावना बताते हुए इसे अत्यंत गंभीर मुद्दा कहा।जजों का यह भी कहना था कि गड्ढों से होने वाली दुर्घटना में मारे जाने वालों के लिए मुआवजे का प्रावधान होना चाहिए।

विकास के लिए सड़कों का होना और सही हालत में होना ज़रूरी है।भारत में विकास का पर्याय मान कर,इसके निर्माण पर सरकार राजस्व का एक बड़ा हिस्सा खर्च करती है फिर भी सड़कें ऐसी बनती हैं जिनमे कुछ समय बाद ही गड्ढों का बसेरा बन जाता है ।सड़कों पर इन गड्ढों की वजह से हर साल हज़ारो हादसे होते है।एक अनुमान के मुताबिक अकेले मुम्बई में सड़कों पर लगभग 4000 गड्ढें हैं जो बारिश में रौद्र रूप धारण कर लोगों का जीवन लीलना शुरू कर देते हैं।देश भर में इन गड्ढों के चलते औसतन प्रतिदिन 10 जाने जाती हैं।बीते साल 2018 में  करीब 4500 जाने गड्ढों की वजह से गई,2017 में 3597 लोग सड़क पर गड्ढों के शिकार हुए,2016 से इसकी तुलना में 50 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई।साल 2017 में केवल महाराष्ट्र  में 726 वहीं 2018 में 950 लोगो ने गड्ढों की वजह से जान गवाई।2016 की तुलना में यह आंकड़ा दुगना हो गया ।गड्ढों के चलते होने वाली मौतों में उत्तर प्रदेश शीर्ष पर है ।एक आर टी आई के जबाब में यातायात निदेशालय ने यह जानकारी दी है कि 2017 में प्रदेश में 662 सड़क हादसे बेसहारा मवेशियों की वज़ह से हुए और इनमें 335 लोगों की जान गयी।

वहीं खराब सड़कों की वजह से 4,285 हादसे हुए जिनमें 2,273 लोगों ने जान गवाई ।मवेशियों की वज़ह से होने वाली मौतों में 2016 के मुकाबले 11 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है,जबकि खराब सड़कों से होने वाले हादसों में 13 फीसदी का इजाफ़ा हुआ है। वर्ष 2018 में देश में हुए हादसों में सिर्फ हेलमेट नहीं होने के कारण मौके पर ही 43 हज़ार से ज्यादा दोपहिया सवारों ने जान गवां दी,इसमें अकेले 6 हज़ार से ज्यादा मौते उत्तरप्रदेश  में हुई ,यह एक गभीर विषय है। गुजरात और हरियाणा भी गड्ढों से होने वाली मौतों के मामलें  चिंताजनक स्थिति में पहुँच चुका है। बीते साल आतंकी घटना में 803 जाने गई जबकि सड़क के गड्ढों से होने वाली मौते 4500 से ज्यादा थी।

सड़कों पर गड्ढों के चलते बड़ी संख्या में होने वाली मौतों ने सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि सड़क निर्माण से जुड़े विभाग अपना काम ठीक से नहीं कर रहें हैं।नगर निगमों ,नगर पालिकाओं,और लोक निर्माण विभाग में भ्रष्टाचार ने ऐसे गड्ढें कर दिए हैं कि इसका परिणाम सड़कों पर गड्ढों के रूप में सामने आ रहा है। ठेकेदार ,बाबू और अधिकारी की तिकड़ी रोज भ्रष्टाचार के नए आयाम बना रही है और एक दूसरे पर दोषारोपण कर मार्गभ्रमित ,आम नागरिक को कर रहीं हैं।

2016 में सड़क घोटाला सामने आया था जिसमे मुम्बई के दो अभियंताओं ने सुधर चुकी सड़कों की जाँच किये बगैर ही ठेकेदारों का बिल मंजूर कर दिए थे ।इस कथित घोटाले में 354 करोड़ की लागत से साउथ मुम्बई, वेस्ट और पूर्वी उपनगरों में 34 सड़कों की मरम्मत के कार्य में लगें ठेकेदारों ने घटिया काम किया था।इस पर क्या कार्यवाही हुई महाराष्ट्र सरकार मौन है। उत्तर प्रदेश में 85000 किलोमीटर सड़कों में सिर्फ 40 फीसदी सड़के ही गड्ढा मुक्त हैं।

यही हाल है महाराष्ट्र और कमोबेश पूरे भारत का है।  इस हालत में नया मोटर वाहन अधिनियम के तहत नागरिक पर भारी जुर्माने की मार और अपराधी मानना कितना जायज़ है इस पर मनन ज़रूरी है।साथ साथ दोषी अधिकारियों की सज़ा भी निर्धारित होनी चाहिए।क्योंकि अधिकारी यह मान  कर चल रहे है कि हम कुछ भी कर सकतें है कोई हमारा बाल बांका भी नहीं कर सकता इनमे डर पैदा करना होगा नहीं तो मंत्री जी यह आपकी वाट लगाते रहेंगे और सरकार की छवि धूमिल करते रहेंगे। आम नागरिक केवल काम करेंगे दर्द का सामना करेंगे ,कर का भुगतान करेंगे और सरकार की जेब भरेंगे और उन्हें फिर से चुनाव में वोट देकर सत्ता पर बैठाएंगे।

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