भारत में न शुद्ध हवा न पानी सरकार संवेदन शून्य

संक्षेप:

  • अबकी पर्यावरण की थीम है वायु प्रदूषण
  • दुनिया में वायु प्रदूषण आज नंबर एक पर
  • वायु तो जीवन दायनी है, इसके बिना प्राण संभव नहीं

By: मदन मोहन शुक्ला

विश्व पर्यावरण दिवस का एक और साल गुजर गया, अबकी पर्यावरण की थीम है वायु प्रदूषण। दुनिया में वायु प्रदूषण आज नंबर एक पर है।पहले हम पानी-मिट्टी-वनों को लेकर चिंतित थे अब वायु की बिगड़ती सेहत चिंता का सबब बन गई है। वायु तो जीवन दायनी है इसके बिना प्राण संभव नहीं। हाल ही में प्रकाशित ग्लोबल रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया की 91 प्रतिशत आबादी वायु प्रदूषण से प्रभावित है।

भारत तो वायु प्रदूषण का और भी बड़ा शिकार है। भारत को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने चिंता ज़ाहिर करते हुए कहा यहाँ न शुद्ध हवा न पानी है। लेकिन हमारी सरकार पर्यावरण को लेकर पूरी तरह से संवेदन हीन हो गई है । हमारे राजनेता जो सत्ता में है उनके पास केवल हिदू-मुस्लिम,राष्ट्रीयता, मंदिर-मस्जिद और वोट कैसे पाना है, यहीं तक इनकी सोच सीमित है। लेकिन यह भूल गए की जिस तरह से हम पर्यावरण से खिलवाड़ कर रहे हैं आने वाली पीढ़ी कतई हमें माफ़ नहीं करेगी क्योंकि हम उन्हें भू-पाताल-आकाश में केवल ज़हर ही घोल कर देंगे।

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आज दुनिया जिस विकास की दौड़ में है उसमें विनाश भी छिपा है।हमने ऐसे हालात पैदा कर दिए है,न तो हम ज़्यादा गर्मी बर्दाश्त कर पा रहे और न ही ज़्यादा ठंड।इनसे राहत के जो उपाय सोचे हैं वह और भी घातक है। एसी का ज़्यादा उपयोग वातावरण में ह्यड्रोफ्लोरोकार्बन ,क्लोरोफ्लोरोकार्बन की मात्रा बढ़ाते हैं जिसका पर्यावरण पर बुरा असर पड़ता है। इससे प्रकर्ति का तापमान पर से नियंत्रण ख़त्म हो जाता है।
विलासिता का जुनून ऐसा हावी हुआ कि हम प्रकीर्ति से दूर हो गए जिसमे हमने खोया शुध्द वायु, शुध्द पानी। आज हालात ब द से बदतर हो चले हैं।

पानी के बिना जीवन जैसे उखड़ती साँस,प्रकीर्ति से बेरुखी कर बैठे मानव का उससे छूटता साथ और वादे की आड़ में सिर्फ और सिर्फ झूठी आस ।सूखे हलक और उम्मीदे पानी पानी। फैसल आज़मी का यह शेर:-हर्फ़ अपने ही मआनी की तरह होता है,प्यास का ज़ायका पानी की तरह होता है। अभी हाल की घटना चेन्नई की जहाँ आप कल्पना करे की पर-कैपिटा आय के मामले में चेन्नई अव्वल है हर तीसरा रईस इसी जगह से आता है लेकिन पीने के लिए पानी नहीं पैसा है,लेकिन फिर भी हलक सूखा।आखिर ऐसा कैसे हुआ?

आज हम 122 देशो में पर्यावरण और शुध्द पानी की उपलब्धता के मामले में 120 वे नंबर पर है। 1947 में जब जनसंख्या 31 करोड़ थी तब प्रत्येक व्यक्ति को पानी 6042क्यू बिक मीटरउपलब्ध था आज 2018 में 1355 क्यू बिक मीटर ही रह गया।चेन्नई को ही लीजिए एक समय यहाँ 35 झीलें थी जिसमे से 10 झीलों पर अब कॉलोनी बन गयी है।आईवल लेक जो 125 एकड़ में थीे अब सिकुड़ कर 10 एकड़ रह गई।तिलई गई नागर झील,मरी मक्कम झील , वेलापोरी झील और उच्च वेलम झील के ऊपर 20 लाख लोग रहते हैं।2005 में यहाँ जो जमीन 80रु0 स्क्वायर फ़ीट थी वह आज 6000 रु स्क्वायर फ़ीट है।पर्यावरण बचें इससे क्या लेना-देना।मुनाफ़ा तो 2लाख करोड़,केवल 10 साल में है ।और तो और हवाई अड्डा भी झील पर।फिर काहें रोना पानी के लिए।पैसा है न हलक़ को तर कर देगा।

जनसंख्या आज अगर 5 गुना बड़ी तो पानी की मांग 7 गुना बढ़ गई। एक समय पानी ही पानी था लेकिन आज 634 जिले लगातार सूखे से प्रभावित हैं जिनमे से 92 जिलों में पानी के लिए हर दिन 5किलोमीटर चलना पड़ता है।12 से 14 घंटे पानी को ही समर्पित होते हैं। गुजरात को ही लीजिये जहाँ सरदार सरोवर बांध जिसका शिलान्यास सरदार पटेल ने 1962 में किया और उदघाटन नरेंद्र मोदी ने।80%किसान कर्णाटक और 82% किसान महाराष्ट्र के,पानी की कमी से गुजर रहें है।32000 पानी के टैंकर से इन लोगों को पानी की आपूर्ति हो रही है।

चेन्नई में 40% लोग हाथ में बाल्टी लिए पानी के लिए भटक रहे।यहाँ 4 रिजर्वायर जिसमे पानी केवल 10 %। बड़े रिजर्वायर में केवल 20% पानी बचा है लेकिन कोई चिंता नहीं। 2518 बिलियन क्यू बिक मीटर पानी सरफेस पर ।1869 बिलियन क्यू बिक मीटर अंडरग्राउंड पानी में केवल 690 बिलियन क्यू बिक मीटर पानी ही शुध्द बाकि दूषित इसको साफ़ करने की कोई तकनीक नहीं। स्थीतियां इतनी भयावह हो गई है कि 2030 तक 40%आबादी बिन पानी हो जायेगी ।2050 तक पानी की वजह से जी डी पी 6% घट जाएगी।

उ0प्र0 में भूजल की स्तिथी काफ़ी दयनीय है।तालाब पाटकर मकान बनाये जा रहें हैं।नदियों में पानी कम हो रहा है।भूजल के अवैध तरीके से दोहन से हालात गंभीर हो चले है । एक रिपोर्ट के मुताबिक उ0प्र0 के 660 ब्लॉक में भूजल का स्तर लगातार गिर रहा है।इनमें से 45जिलों के 180 ब्लॉक में भूजल की स्थीति काफी गंभीर है।लखनऊ,कानपुर, मेरठ,ग़ाज़ियाबाद,आगरा,नोएडा और वाराणसी में शायद दो साल से कम में भूजल पूरी तरह खत्म हो जाएगा।किस तरह हम पानी बचाने में पीछे हैं

यह इसी पता चलता है कि साल 1912 में लखनऊ में 320 तालाब थे लेकिन आज इनमें से ज्यादातर तालाब पाट दिए गए । मोदी सरकार का दावा की पांच साल में प्रत्येक गांव के हर घर को नल से जल दिया जायेगा।लेकिन यह नहीं बताया कैसे? सवाल यहाँ उठता है कि भू जल अलबत्ता तो सीमित है जिस पर कोई नियंत्रण नहीं।दूसरा इसका बड़ा हिस्सा प्रदूषित है जिसको साफ़ करने की तकनीक नहीं तो फिर कैसे हर घर नल से पानी पहुंचेगा।

क्योंकि हमने धरा के हर कोने को विकास के नाम पर बर्बाद किया।नदियों को ही ले चाहे वे गंगा यमुना हो या कृष्णा कावेरी,सतलज हो या झेलम,ब्रह्मपुत्र हो या हुगली इनको हमने नालो में तब्दील कर दिया। वास्तव में जिस प्रकार मनुष्य को जीने का अधिकार है उसी प्रकार हमारी नदियों को भी स्वछन्द होकर अविरल एवं निर्मल रूप से प्रवाहित होने का पूर्ण अधिकार है।लेकिन हमने क्या किया,पावन नदियों को इस कदर प्रदूषित कर दिया की न हम इसको पी सकते है न हम अन्य कार्यो में इसको प्रयोग में ला सकते हैं।और तो और इनके किनारे जंगलो में रहने वाले जीव जंतु को भी प्यास से तड़प तड़प के मरने के लिए छोड़ दिया।एक घटना देवास मध्य प्रदेश की जहाँ पुंजापुरा छेत्र के जोशी बाबा जंगल में पानी को लेकर बंदरो के दो गुटों में जंग में 15 बन्दर मर गए।अंदाज़ा लगाइये हालात कितने भयावह है।

वर्तमान की अगर हम बात करें तो विश्व की कुल आबादी का 18 फीसदी हिस्सा भारत में रहता है।जहाँ तक जल संसाधन का सवाल है वह केवल कुल का 4%। देश को जल संकट से निकलने का बस एक ही रास्ता है नदियों को जीवंत एवं प्रदुषण मुक्त रखना।अगर अब भी नहीं सतर्क हुए तो तय है हम सबको मरना। आज भी हर वर्ष केवल दूषित पानी पीने से करीब 2 लाख आदमी मर जाते हैं।अब सवाल उठता है जितना पानी हमारे पास भंडारित है उसको अगर कुशल प्रबंधन में किफ़ायत के साथ प्रयोग में लाएं और हर साल बारिश की बूंदों को सहेज लें तो साल भर हम सबका गला तर रहेगा।पहले जगह जगह ताल -तलैया,पोखर जैसे तमाम जल स्रोत थे।जमीन कच्ची थी। बारिश होती थी ,तो पानी स्वतः रिसकर भूजल रिचार्ज करता रहता था।आज जलस्रोत बचे नहीं जमीन का कंक्रीटीकर्ण हो चूका है।ऐसे में प्रकीर्तिक रूप से भूजल को उपर उठाने की बात बेमानी लगती है।इसलिए धरती की कोख से जो जितना पानी इस्तेमाल करें ,उससे वहां उतना पानी जमा करना सुनिश्चित कराना होगा।इसके लिये चाहे सामाजिक चेतना को जागृत करना पड़े चाहे कानून की सख्ती दिखानी पड़े।जलस्रोतों के रखरखाव और पुनर्निर्माण पर भी जोर देना होगा।

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