UP Politics: आजम बनाम अखिलेश की जंग ने लिया नया रूप, राजनीति में हो सकते हैं इसके साइड इफेक्ट!

कहने को, यह दो दिग्गजों का अपना मत हो सकता है, लेकिन राजनीतिक गलियारों में इसे सपा में चल रही गुटबाजी के चलते वर्चस्व का कारण माना जा रहा है, जिसके भविष्य में और भी तूल पकड़ने की संभावना है। रामपुर में सपा का मतलब आजम दरअसल, रामपुर में आजम खां का मजबूत सियासी दुर्ग रहा है।

वह खुद तो लंबे अरसे तक विधायक और सांसद रहे, अपने बेटे और करीबियों को भी उन्होंने लखनऊ के सदन तक पहुंचाया है।

पत्नी को भी राज्यसभा सदस्य बनवाया।

रामपुर में सपा का मतलब आजम ही माने जाते रहे हैं।  2019 के बाद से उनपर ताबड़तोड़ मुकदमे दर्ज होने के बाद दुर्ग कमजोर पड़ता गया।

स्थिति यह हुई कि इस लोकसभा चुनाव में उनकी मंशा के विपरीत सपा के शीर्ष नेतृत्व ने मोहिबुल्लाह को सपा प्रत्याशी बनाया और आजम खेमे के विरोध के बाद भी उन्हें रिकॉर्ड मतों से जिता लिया गया।  चूंकि नवाब खानदान और आजम परिवार इस चुनाव से सीधे नहीं जुड़े थे, इसलिए पहले से ही माना जा रहा था कि जीतने वाला रामपुर की राजनीति को धार देने वाला नया धुरंधर होगा।

मोहिबुल्लाह नदवी के आजम को सुधार गृह में बताना इसी दिशा में एक कदम माना जा रहा है।  आजम खेमे के विरोध के बाद भी उन्होंने रामपुर में जीत हासिल की।

जिस रामपुर के मुस्लिम मतदाता कभी आजम खां के साथ रहते थे, आज वह मोहिबुल्लाह के साथ हैं।

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