कश्मीर बढ़ गया स्वर्ण युग की तरफ, बनेगा धरती का स्वर्ग

संक्षेप:

  • जब मोदी 2014 में अपने प्रथम काल में प्रधानमंत्री बने तो अनुच्छेद 370 खत्म करना उनकी प्राथमिकता थी.
  • कश्मीर फिर से भारत माता का सिरमौर बनेगा.
  • धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर में केसर की खुशबू अपनी रंगत बिखेरेगी इसके लिये जरूरी है जनमानस को अपनी सोच में ईमानदारी लाना होगा.

  • मदन मोहन शुक्ला

संकल्प शक्ति ,दृढ़ता,दूरदर्शिता और साहस हो तो कुछ भी असम्भव नहीं। जब मोदी 2014 में अपने प्रथम काल में प्रधानमंत्री बने तो अनुच्छेद 370 खत्म करना उनकी प्राथमिकता थी।लेकिन हालात और अन्य कई चीज़े,इसको क्रियान्वित न करने की वजह बनी।दूसरा नोटबन्धी और उसके बाद जो देश के हालात बने मोदी सरकार ने इसमें हाथ लगाने से परहेज़ किया।लेकिन अपने दूसरे काल में जिस धमक से वापसी की तो मोदी के लिए रास्ता आसान हो गया तथा दृढ़ इच्छा शक्ति के मालिक मोदी ने संविधान की अनुच्छेद 370 को खत्म करने की तरफ कदम बढ़ाकर नामुमकिन को मुमकिन में बदल दिया। मोदी है तो मुमकिन है पर खरे साबित हुए।

समाजवादी नेता डॉ राम मनोहर लोहिया ने भी अनुच्छेद 370 का विरोध करते हुए कहा था कि यह भारत के एकीकरण में बहुत बड़ी बाधा है।लेकिन अब भी कांग्रेस सहित कुछ हैं,जो अड़े है कि यह दर्ज़ा बरक़रार रहना चाहिए ।वह सिर्फ विरोध ही नहीं कर रहे आगाह भी कर रहें है।

संविधान निर्माता और तत्कालीन कानून मंत्री बाबा साहिब अम्बेडकर अनुच्छेद 370 के धुर विरोधी थे।उन्होंने इसका मसौदा तैयार करने से मना कर दिया था।अम्बेडकर के मना करने पर शेख अब्दुल्ला नेहरू के पास पहुँचे।प्रधानमंत्री के निर्देश पर गोपालस्वामी अएंगर ने मसौदा तैयार किया।यह वही अय्यंगर है जो 1937-1943 तक कश्मीर के प्रधानमंत्री रहे।1943-47 तक राजस्व परिषद् के सदस्य रहे।संविधान सभा के भी सदस्य थे तथा जम्मू कश्मीर के महाराजा हरी सिंह के दीवान भी रहे । नेहरू के विश्वास पात्र थे। अब्दुल्ला को अनुच्छेद370 पर लिखे पत्र में अम्बेडकर ने कहा था कि आप चाहतें हैं भारत जम्मू कश्मीर की सीमा की रक्षा करे,यहाँ सड़कों का निर्माण करे,अनाज सप्लाई करे।साथ ही कश्मीर को भारत के समान अधिकार मिलें।लेकिन आगे आप चाहते हैं कि कश्मीर में भारत को सीमित शक्तियां मिले यह प्रस्ताव भारत के साथ विश्वासघात होगा,जिसे कानून मंत्री होते मैं कतई स्वीकार नहीं करूंगा। नेहरू ने सरदार पटेल को भी भरोसे में नहीं लिया था क्योंकि पटेल और अब्दुल्ला के रिश्ते ठीक नहीं थे।संविधान सभा की चर्चा में सदस्यों ने प्रस्ताव फाड़ दिया था।उस समय नेहरू अमेरिका में थे ।ऐसे में अएंगर पटेल के पास जाकर कहते है कि यह मामला नेहरू के अहम् से जुड़ा है,नेहरू ने उनके अनुसार ही फैसला लेने को कहा है लिहाज़ा पटेल ने मसौदे को स्वीकृति दे दी।

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हालांकि जब इस मसौदे को कांग्रेस की कार्यकारिणी सीमिति की बैठक में रखा गया तो घोर विरोध का सामना करना पड़ा इसको भारत की संप्रभुता के लिए खतरा बताया गया यहाँ तक कि देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना आज़ाद ने इसका विरोध किया। अंतोत्वगत्वा भारी विरोध के बावजूद नेहरू की हठधर्मिता और अब्दुल्ला की महत्वकांछा ने यह नासूर भारत को दे दिया जिससे छुटकारा ठीक 70 साल बाद मिला। आखिर सरकार के फैसले का विरोध कर रहे राजनीतिक दल किस आधार पर अनुच्छेद 370 को पसंद कर रहें है?क्या वे इससे अंजान है है कि यह विषम परिस्थीती में किया गया एक अस्थाई प्रावधान था?क्या वे इससे परिचित नहीं कि अनुच्छेद370 के साथ 35 -ए ने किस तरह आम कश्मीरियों और खासकर वहां के वंचित ,दलित और पिछड़े तबको के अधिकारों पर कुठाराघात किया है?अगर इन विभेदकारी अनुच्छेदों ने किसी का हित किया है तो केवल मुट्टी भर नेताओं का।इससे बड़ी विडम्बना और कोई नहीं कि जो अनुच्छेद अस्थाई था उसे कश्मीर को शेष भारत से जोड़ने वाले तत्व के रूप में पेश किया जा रहा था।

जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 को खत्म करने के लिए अनुच्छेद 370 का ही प्रयोग किया गया।अनुच्छेद 370 को खत्म करने के बजाय सरकार ने इसी अनुच्छेद के खंड 3 द्वारा राष्ट्रपति को दी गयी शक्ति का उपयोग करके इसे निष्क्रिय कर दिया।अनुच्छेद 370(3)राष्ट्रपति को जम्मू कश्मीर को दिया गया विशेष दर्ज़ा किसी भी वक्त निष्क्रिय करने का अधिकार देता है।लिहाज़ा संविधानविदो की राय में संविधान सम्मत सरकार का कदम है। भले ही जम्मू कश्मीर को अनुच्छेद 370 और 35-ए से छुटकारा मिल गया हो लेकिन अब केंद्र सरकार को स्थानीय स्तर पर सक्रीय अलगाववादी ताकतों से निपटना एक चुनौती होगी जो वहां के लोगों में घुल मिल गई है और वह वहां के नवयुवकों को बरगलाने और केंद्र सरकार के प्रति यह सन्देश देने की कोशिश करेगी सरकार आपकी स्वतंत्रता और निजता पर हमला कर रही है।इसकी काठ निकालनी होगी।इसीलिये वहां एक ऐसा राजनीतिक विकल्प भी पैदा करना होगा जो अलगाववादियों से प्रेरित न हो न ही उनके दबाब में आएं।इसी तरह सु शासन और शांति स्थापित करने के साथ साथ केंद्र सरकार को वहाँ के युवकों के लिए नौकरियों का सृजन करने के अलावा स्थानीय लोगों में जो डर नए हालात से उभरें हैं Iउनको दूर करना सदभावना का माहौल पैदा करना।इसके साथ ही राज्य में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हो और निजी क्षेत्र में उद्यमियों को उद्योग लगाने के लिए प्रोत्साहित करना ।सब्सिडी के नए प्रावधान को विकसित करना होगा।

आज कश्मीरी युवक पृथकतावादी ताकतों से त्रस्त है उसको चिंता इस बात की है कि प्रदेश को विशेष दर्ज़ा मिलने के 70 साल होने के बाद भी हम आज पत्थर युग में जी रहे हैं तथा शेष भारत से विकास के मामले में 100 साल पीछे हैं।भारत सरकार को इन कश्मीरियों को विश्वास में लेकर यहाँ विकास कैसे हो इसका ठोस रोड मैप जो समय बाधित हो तैयार करना होगा और उस पर ईमानदारी से अमल करना होगा।वहां का जो भी प्रशासक हो वह ईमानदार,दृढ़प्रतिज्ञ,काम के प्रति कटिवद्ध और वहां के लोगों में लोकप्रिय हो। दूसरा यह संवेदन शील मुद्दा है इसमें एक एक कदम फूख -फूख कर रखने वाला है।लेकिन बीजेपी के कुछ अतिउत्साही नेता पूर्व की तरह बेतुके बयान दे रहे हैं।इन पर लगाम लगना जरूरी है।

हम आशा करते है कि कश्मीर फिर से भारत माता का सिरमौर बनेगा।जम्मू कश्मीर के लिए अनुच्छेद 370 और 35-ए जो अभिशाप था वह धुल गया किंतु अभी भी समाज में एक सकारत्मक वातावरण बनाने की आवश्यक्ता है।तभी धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर में केसर की खुशबू अपनी रंगत बिखेरेगी इसके लिये जरूरी है जनमानस को अपनी सोच में ईमानदारी लाना होगा तभी कश्मीर को लेकर ख्वाब ज़मीन पर उतरेंगे।

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