भारत के वीर सपूत अर्जन सिंह की कहानी, उनकी जुबानी

  • Saturday | 16th September, 2017
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संक्षेप:

  • पाकिस्तान ने माना था अर्जन सिंह का लोहा
  • हर भारतीय को है अर्जन सिंह पर नाज़
  • इकलौते फाइव स्टार रैंक के अफसर थे

नोएडा। देश के लिए अपनी जान की परवाह ना करने वाले एयर मार्शल अर्जन सिंह को भुलाना नामुमकिन है। वो ऐसे ही देश के हीरो नहीं बने। इस मुकाम तक पहुंचने के लिए उन्होंने अपनी जान की बाज़ी एक बार नहीं बल्कि कई बार लगायी। NYOOOZ आपको बताना जा रहा है उनको द्वारा कहे गये वो शब्द जो अब इतिहास में शामिल हो गये हैं। उनकी बातें ये बताने के लिए काफी हैं कि अगर हौसले बुलंद हों तो विरोधी मुल्क को युद्ध में धूल चटाना कोई बड़ी बात नहीं होती। डर नाम का शब्द तो शायद उनकी डिक्शनरी में था ही नहीं। जानिए क्या कहते थे अर्जन सिंह अपने सफर के बारे में-

`जब तक बगल से बुलेट न गुजरे जंग-ए मैदान का अहसास नहीं होता`
शुरू से ही मैं नीले आसमान में उड़ते हवाई जहाज देखकर रोमांचित हो उठता था। पहली बार अपने गांव लायलपुर से ऊपर उन्हें उड़ते देखा था। लाहौर से कराची का हवाई रूट हमारे गांव के ऊपर से होकर गुजरता था। मुझे लगता था कि एक दिन मुझे भी उन्हीं हवाई जहाजों को उड़ाना है। गवर्नमेंट कॉलेज लाहौर में साढ़े तीन साल की पढ़ाई के बाद 1938 में 19 साल की उम्र में मुझे ब्रिटेन के रॉयल कॉलेज ऑफ एयरफोर्स (आरएएफ) के लिए चुन लिया गया।

वहां हमारी ट्रेनिंग दो साल तक चलनी थी लेकिन इस बीच सितंबर, 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो गया और उसी साल दिसंबर में हमें रॉयल इंडियन एयरफोर्स में कमीशन मिल गया। उन दिनों ब्रिटेन के रॉयल एयरफोर्स से लेकर भारतीय वायु सेना तक, हर जगह पायलटों की भारी कमी थी। भारतीय वायु सेना के पास तब अंबाला में सिर्फ एक स्क्वाड्रन हुआ करता था। जनवरी, 1940 में मैंने और पटियाला राजघराने के पृथीपाल सिंह ने एक साथ रॉयल इंडियन एयरफोर्स ज्वाइन की।

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फ्रंटियर प्रोविंस के अनुभव
अंबाला में ज्वाइनिंग के बाद मैं कराची गया और वहां से नार्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस पहुंचा। पठानों के उस इलाके में जंग लड़ना बहुत कुछ अफगानिस्तान में लड़ने जैसा था। अफगानिस्तान की ही तरह उस इलाके में निशाना बनाने लायक कोई टारगेट नजर नहीं आता था क्योंकि वह मैदानी इलाका नहीं बल्कि गुफाओं और घाटियों से भरा क्षेत्र था।

मेरा माना है कि जब तक कोई बुलेट आपके पास से होकर नहीं गुजरे, लगता ही नहीं है कि आप जंग में है। शुरू-शुरू में मुझे भी डर लगा लेकिन धीरे-धीरे वह निकलता गया। 1940 में नार्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस में मेरे विमान को पठानों ने मार गिराया। हमारा विमान दो पहाड़ियों के बीच एक सूखी नदी में जा गिरा, जिसकी चौड़ाई घग्गर नदी जितनी थी।

तीन साल में चार प्रमोशन
मुझे 1943 में जापानियों के खिलाफ मोर्चा संभालने के लिए इंफाल भेजा गया। तब तक मैं चार रैंक के प्रमोशन के साथ स्क्वाड्रन लीडर बन चुका था। जापानियों ने इंफाल घाटी को चारों तरफ से घेर लिया था और एकमात्र सड़क मार्ग को भी अवरूद्ध कर दिया था। ऐसी सूरत में अमेरिकी एयर फोर्स ने हमारी मदद की और सप्लाई जारी रखी। इस जंग ने यह साबित कर दिया कि भारतीय वायु सेना स्थापित वायु सेना से भी लड़ने में सक्षम है। इस जंग के बाद मुझे विशिष्ट फ्लाइंग क्रॉस (डीएफसी) से नवाजा गया। मेरे स्क्वाड्रन को कुल आठ डीएफसी मिले, जो उस समय ब्रिटेन और भारतीय वायु सेना के किसी भी स्क्वाड्रन के लिए एक रिकॉर्ड था।

पाकिस्तान से जंग
पाकिस्तान ने 1965 की जंग की शुरुआत की थी। उसकी सेना ने कश्मीर में घुसपैठ की और चंब-जौरियां सेक्टर में हमला बोल दिया। जनरल जेएन चौधरी ने मुझसे कहा कि इस हमले को नाकाम करने में सेना को मुश्किलें आ रही हैं। हम दोनों रक्षा मंत्री वाईबी चह्वाण के पास पहुंचे। उन्होंने तत्काल हवाई हमले की अनुमति दे दी और देखते ही देखते हमने पाकिस्तान को धूल चटा दी। अखनूर ब्रिज पर कब्जे का उसका ख्वाब कभी पूरा नहीं हुआ।
द्वितीय विश्व युद्ध का अनुभव बहुत काम आया, लेकिन यह जंग बहुत जल्दी खत्म हो गई। इससे मैं बहुत निराश हुआ क्योंकि हम यहां से पाकिस्तान के हर शहर पर हमला कर रहे थे जबकि उसके विमान अंबाला से आगे नहीं बढ़ पाए थे। वे दिल्ली को भी निशाना नहीं बना पा रहे थे, मुंबई और अहमदाबाद तो बहुत दूर की कौड़ी थे।

भारतीय वायुसेना के एकमात्र मार्शल अर्जन सिंह का निधन हो गया है। 98 साल के अर्जन सिंह पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे. दिल का दौरा पड़ने की वजह से उन्हें शनिवार सुबह को दिल्ली स्थित आर्मी हॉस्पिटल रिसर्च ऐंड रेफेरल में भर्ती कराया गया था।
उनके खराब स्वास्थ्य की जानकारी मिलने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण उनसे मिलने भी पहुंचे थे। अर्जन सिंह को 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में अहम भूमिका निभाने के लिए जाना जाता है. वह इकलौते फाइव स्टार रैंक के अफ़सर थे। उनके निधन के बाद सोशल मीडिया पर भी माहौल ग़मगीन है। ट्विटर पर सबसे ऊपर ट्रेंड कर रहा है और लोग उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी समेत तमाम हस्तियों ने अर्जन सिंह के निधन पर शोक जताया है। पीएम मोदी ने ट्वीट किया,``भारत 1965 के युद्ध में मार्शल अर्जन सिंह का शानदार नेतृत्व कभी नहीं भूलेगा। कुछ वक़्त पहले मैं उनसे मिला। उनकी सेहत ठीक नहीं थी और मेरे रोकने के बावजूद उन्होंने खड़े होकर सैल्यूट करने की कोशिश की। सेना का कुछ ऐसा अनुशासन था उनमें। ऐसे महान योद्धा और उदार शख्स के निधन पर मेरी संवेदनाएं उनके परिवार के साथ हैं.``

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने लिखा,``एक बेहतरीन सैनिक जिसने देश का नेतृत्व किया, एक डिप्लोमैट और प्रबंधक के तौर पर अर्जन सिंह हमेशा याद किये जाएंगे.`` कांग्रेस पार्टी की ओर से भी उनके निधन पर शोक जाहिर किया गया। भारतीय वायुसेना के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया गया,``यह देश और वायुसेना के लिए बहुत बड़ी क्षति है. आज मार्शल अर्जन सिंह का देहांत हो गया है.`` कांग्रेस नेता शशि थरूर ने लिखा,``मुझे मार्शल अर्जन सिंह से मिलने का अवसर मिला था. उनका साहस हजारों बहादुर वायुसैनिकों में जिन्दा है. उनकी आत्मा को शांति मिले.`` भारतीय वायु सेना को अपनी सेवाएं देने के लिए उनको देश के दूसरे सबसे बड़े सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया जा चुका है।

निधन से पहले पीएम मोदी और रक्षा मंत्री सीतारमण ने जाना था हाल
1965 भारत-पाकिस्तान युद्ध में अहम भूमिका निभाने वाले पूर्व वायु सेना प्रमुख अर्जन सिंह का निधन हो गया है। शनिवार सुबह उन्हें आर्मी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। 98 वर्षीय सिंह पांच स्टार पाने वाले भारतीय वायु सेना के एकमात्र अधिकारी थे। आज सुबह उन्हें दिल का दौरा पड़ा उसके बाद आर्मी हॉस्पिटल R&R में भर्ती कराया गया था। दोपहर बाद से उनकी हालत नाजुक बनी हुई थी। प्रधानमंत्री मोदी और रक्षा मंत्री सीतारमण ने अस्पताल पहुंच कर उनका हाल जाना था। अर्जन सिंह भारतीय वायु सेना के एकमात्र ऐसे अधिकारी हैं, जिन्हें साल 2002 में फील्ड मार्शल के बराबर फाइव स्टार रैंक देकर प्रमोशन दिया गया था। बता दें कि 1 अगस्त 1964 से 15 जुलाई 1969 तक वह वायुसेनाध्यक्ष थे और 1965 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।

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