क्यों दुनिया को दिखते हैं गांधी में सब समाधान?

संक्षेप:

  • गांधी को आधुनिक कहे जानेवाले मनुष्य जीवन की कमजोरियों और संभावनाओं का अच्छी तरह आभास हो चुका था.
  • दुनिया को लीलते जा रहे रोगों का उपचार भी उन्हें ठीक-ठीक समझ में आने लगा था.
  • इसलिए तो उन्होंने घोषणा कर दी कि दुनिया को कुछ तो पश्चिम का पशुबल आधारित युद्ध और विजयवादी मानसिकता नष्ट कर देगी और इससे बचा-खुचा काम अमर्यादित भोगवाद कर देगा. 

- अव्यक्त

गांधी को आधुनिक कहे जानेवाले मनुष्य जीवन की कमजोरियों और संभावनाओं का अच्छी तरह आभास हो चुका था। दुनिया को लीलते जा रहे रोगों का उपचार भी उन्हें ठीक-ठीक समझ में आने लगा था। इसलिए तो उन्होंने घोषणा कर दी कि दुनिया को कुछ तो पश्चिम का पशुबल आधारित युद्ध और विजयवादी मानसिकता नष्ट कर देगी और इससे बचा-खुचा काम अमर्यादित भोगवाद कर देगा। संप्रदाय, जाति, वर्ग, क्षेत्र, भाषा और अन्यान्य प्रकार के झगड़े इन्हीं दोनों धरातलों पर फलेंगे-फूलेंगे। विवेकहीन मशीनीकरण श्रम के अवसरों को खाकर लोगों को न केवल अकर्मण्य, बेरोजगार, संवेदनहीन और रोगी बना देगा, बल्कि वह प्रकृति के मौलिक पंचतत्व को भी दूषित और नष्ट कर देगा।

आज से लगभग 93 साल पहले 23 दिसंबर, 1926 को ही ‘यंग इंडिया’ में गांधी लिख रहे हैं—

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“आज के जमाने में तो हम अपनी नदियों से केवल यही काम लेना जानते हैं कि उनमें अपनी गंदी नालियां बहावें और उनकी छाती पर अपनी नावें चलावें और इस प्रकार उन्हें भी गंदा करें। हमारे पास इतना समय नहीं है कि हम उनके पास जाएं और ध्यानस्थ होकर उनका वह संदेश सुनें जो वे हमारे कानों में धीरे-धीरे गुनगुनाती हैं।”

5 अक्टूबर, 1945 को जवाहरलाल नेहरू को दुनिया के भावी संकट के प्रति चेतावनी देने के लहजे में गांधी लिखते हैं—

“अगर हिन्दुस्तान को सच्ची आज़ादी पानी है और उसके मारफत पूरी दुनिया को आज़ादी पानी है, तो आज नहीं तो कल यह बात माननी ही पड़ेगी कि हमें देहातों और झोपड़ियों में ही रहना होगा, महलों में नहीं। कई अरब आदमी शहरों में और महलों में एक-दूसरे के साथ सुख और शांति से कभी नहीं रह सकते हैं। तब उनके पास कोई चारा नहीं बचेगा, सिवाय इसके कि वह हिंसा और असत्य दोनों का सहारा लें।”

2 अप्रैल, 1947 को ‘अंतर-एशियाई संबंध सम्मेलन’ में गांधी कहते हैं—

“पश्चिम आज सच्चे ज्ञान के लिए तरस रहा है। परमाणु बमों की दिन-दूनी बढ़ती हुई संख्या से न केवल पश्चिम का बल्कि पूरी दुनिया का नाश हो जाएगा। प्रलय की भविष्यवाणी मानो सच होने जा रही है। अब यह आपके ऊपर है कि आप दुनिया की नीचता और पापों की तरफ उसका ध्यान खींचें और उसे बचाएँ।“

आज पर्यावरणवादियों से लेकर अर्थशास्त्रियों तक को गांधी के अर्थों वाला जागतिक स्वराज्य समझ में आ रहा है। तरह-तरह के भय, उत्पीड़न, शोषण, असुरक्षा, तनाव, शारीरिक और मानसिक व्याधियों और आंतरिक तथा बाह्य युद्धों में झुलसती मानवता को अहिंसा, संयम, शांति और प्रेम का मर्म समझ में आ रहा है। क्या हम ये उम्मीद करें कि धीरे-धीरे ये बातें दुनियाभर के अहंकारी राष्ट्राध्यक्षों, छलनीति के अभ्यस्त कूटनीतिकों, सेनानायकों, हथियार के सौदागरों, कट्टरता में अंधे हो चुके धर्मध्वजियों और अंतहीन लोभ से ग्रसित प्राकृतिक संपदा के लुटेरों के भी समझ में आएंगीं?


(लेखक गांधी और विनोबा दर्शन के जाने-माने अध्येता हैं)

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