जैसा खाओ अन्न, वैसा होगा मन

संक्षेप:

खास बातचीत


बढ़ेगा जैविक कॉरिडोर का दायरा


बिहार के कृषि मंत्री कुमार सर्वजीत जैविक कॉरिडोर को लेकर खासे उत्साहित है। एक अख़बार को दिए इंटरव्यू में उन्होने बताया कि मुख्यमंत्री नीतिश कुमार की परिकल्पना बहुत हद तक साकार होने लगी है।

जैविक खेती के लिए किसानों को जैविक उपादान,ट्रेनिंग और एक्सपोजर ट्रिप कराया जाता है।जैविक प्रमाणीकरण का पूरा खर्च राज्य सरकार उठाती है,इसके लिए बिहार स्टेट सीड एंड आर्गेनिक, एजेंसी के जरिए सिक्किम स्टेट आर्गेनिक एजेंसी की मदद से किसानों को जैविक सर्टिफिकेट दिलाती है।ताकि किसानों को जैविक फसल का उचित मूल्य मिल सकें ।कुमार सर्वजीत के मुताबिक अभी 187 एफपीओ के जरिए 17507 एकड़ जमीन पर जैविक उपज ली जा रही है।जिसमें से 156 एफपीओ को C-3 सर्टिफिकेट मिल चुका है। बाकी को जुलाई अंत तक प्रमाणपत्र मिल जाएगा।  

जब हमने उनसे पूछा कि जैविक कॉरिडोर विस्तार को लेकर क्या प्लान है,तो उन्होंने तुरंत ही जबाव दिया कि 13 जिलों के अलावा इस साल के अंत तक बाकी 25 जिलों में भी जैविक खेती प्रोत्साहन को लेकर काम शुरु हो जाएगा।जैविक उपज बढ़ाने के लिए बिहार सरकार के चौथे कृषि रोड मैप में व्यापक प्रावधान किए गए है।

BY-आलोक रंजन

जैसा खाओ अन्न, वैसा होगा मन, कहावत पुरानी है। स्वस्थ शरीर ,निरोगी काया..इन सब के लिए शुद्ध आहार आवश्यक है। जैविक खेती ज़रिया है जहर मुक्त  खेती- किसानी की ओर लौटने का। सरकार का नारा है- जैविक खेती, रसायन मुक्त भारत। देश के ज्यादातर इलाकों में जैविक खेती और पर्यावरण संरक्षण को लेकर जागरुकता बढ़ी है।  उत्तर पूर्व के सिक्किम राज्य से जीवंत जैविक खेती का सफ़र बिहार,झारखंड तक पहुंच गया है। बिहार के तेरह जिलों में 104 करोड़ 36 लाख की लागत से जैविक खेती के लिए जागरूकता अभियान चल रहा है। इस जैविक कॉरिडोर को तीन साल यानि 2025 तक पूरा कर लिया जाएगा। राज्य के कृषि विभाग के मुताबिक जल्द ही इस साल कॉरिडोर का विस्तार होने जा रहा है, जिसमें राज्य के सभी 38 जिलों को शामिल किया जाएगा।2022-23 से शुरू हुआ ये प्रोजेक्ट 2025 तक चलेगा ।

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जैविक कॉरिडोर का मुख्य मकसद जैविक खेती को बढ़ावा देने, पर्यावरण और जल को प्रदूषण मुक्त बनाना है। सबसे पहले विषमुक्त सब्जी की पैदावार पर पहले साल में ध्यान दिया गया। उसके बाद जैविक अनाज उपज पर काम चल रहा है।  बिहार के किसानों ने इसमें रुचि दिखाई है। छपरा के किसान राजकुमार सिंह ने बताया कि शुरू में सरकारी सहायता से बहुत कुछ आसान हो गया। राजकुमार तीन साल से  धान,गेहूं की जैविक खेती कर रहे है, वो 375 किसानों के एक समूह (एफपीओ) से जुड़े है। 2022 में सरकार उनको मुंबई में ऑर्गेनिक एक्सपो में जानकारी और एक्सपोजर के लिए ले गई थी। राजकुमार को उम्मीद है कि आगे बाज़ार तलाशने और ब्रांडिंग में भी बिहार सरकार उनकी मदद करेगी। किसानों को कृषि विभाग तीन साल में प्रति एकड़ 24500 रुपए की सब्सिडी दे रहा है । ये सब्सिडी हर साल अलग अलग किस्तों में मिलती है। साथ ही पड़ोसी राज्य झारखंड में भी किसान अब जैविक खेती को लेकर जागरुक हुए है। राज्य में करीब 170 एफपीओ से हजारों किसान जुड़े है। यहां तक कि रांची से दूर चुंद गांव में पंकज गुप्ता का जैविक खाद का स्टार्टअप भी खासा चलने लगा है। और तो और किसान रांची तक अपनी उपज बेचने आते है।

किसानों के समूह उत्पाद की जांच करके सरकारी एजेंसियां इन्हे बाजार तक पहुंचने में मदद करती है । केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने javikkheti.in बेवसाइट पर ई-बाजार शुरू किया है, जिसके जरिए कोई भी किसान अपनी उपज के सही दाम पा सकता है । खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस साल फरवरी में किसानों से जैविक खेती करने की अपील कर चुके है। 2022 तक जैविक खेती का रकबा  59.1 लाख हेक्टेयर में तक पहुंच गया था। इस में मध्य प्रदेश सबसे आगे है, फिर राजस्थान का नंबर आता है ।  

मध्यप्रदेश के खजुराहो में बरसों से शुद्ध जैविक उपज लेने वाले नमित वर्मा कहते है कि ये प्रक्रिया लंबी है पर सस्ती नहीं। वैसे शुद्ध जैविक गेहूँ उपज की लागत 110 से 155 रुपये के बीच पड़ती है, वह भी तब, जब ज़मीन की कीमत पर देय लागत आर्थिक किराया यानी की रिकार्डियन रेंट तथा इस खेती में कुल लागत पर देय रिटर्न ऑन कैपिटल शून्य माना जाय| उपरोक्त सही कीमत में किसान को अपने श्रम का सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम भुगतान हो जाए, यही माना गया है| दरअसल शुरू में जैविक खेती पहाड़ी राज्यों में खास कर उत्तराखंड, हिमाचल और उत्तर पूर्व के राज्यों में ज्यादा होती रही है। सिक्किम ने 15 साल पहले जैविक खेती की योजना पर काम करना शुरू किया। अब वहां 75000 हेक्टेयर में ऑर्गेनिक फार्मिंग होती है। बड़ी इलायची, अदरक, संतरा यहां की नकदी फसल है। अब राजस्थान, छत्तीसगढ़ भी जैविक खेती की पहल कर चुके है। तेलंगाना के एक गांव एनाबावी (ENABABI)को कुछ समय पहले पूर्ण जैविक गांव घोषित किया गया है।     

आधुनिक जैविक खेती के जनक सर अल्बर्ट हावर्ड ने अपनी मशहूर किताब में "एन एग्रीकल्चर टेस्टामेंट में जैविक कृषि दर्शन  को संक्षेप में परिभाषित किया है । धरती माता कभी भी पशु धन के बिना खेती करने का प्रयास नहीं करती, वह हमेशा मिश्रित फसलें उगाती है , मिट्टी को संरक्षित करने और कटाव को रोकने के लिए बहुत मेहनत की जाती है, मिश्रित सब्जी और जानवरों के अपशिष्ट को ह्यूमस में बदल दिया जाता है, कोई बर्बादी नहीं है कि प्रक्रियाएं, विकास और क्षय की प्रक्रिया एक दूसरे को संतुलित करती है । एक तरह से प्राकृतिक खेती पर्यावरण संरक्षण का काम भी करती है ।   

जैविक खेती से मिट्टी की सेहत, उस में उपलब्ध जीवाणुओं का संरक्षण भी होता है। मिट्टी को जैविक खेती के अनुरूप बनाने की प्रक्रिया में वक्त लगता है। योजना का एक बड़ा लक्ष्य खेती को टिकाऊ और दीर्घकालीन बनाना है। साथ ही जैविक खेती किसानों की आय भी बढ़ाता है । एक तरह से जैविक खेती मुनाफे का सौदा है। अब तो क्रिकेटर और फिल्म स्टार भी आर्गेनिक कंपनियों में निवेश कर रहे है। अक्षय कुमार और वीरेंद्र सहवाग ने पुणे की टू ब्रदर्स आर्गेनिक फार्म्स में पैसा लगाया है । ये कंपनी भारत के अलग-अलग गांवों से ऑर्गेनिक प्रोडक्ट खरीदकर दुनिया के 53 देशों में बेचती है।

एक सर्वे के अनुमान के अनुसार 2020 से 2025 के बीच हर साल ऑर्गेनिक प्रोडक्ट्स का बाजार 25 फीसदी की औसत से बढ़ रहा है। मूलत जैविक खेती का मकसद मिट्टी की सेहत सुधारने के साथ शुद्ध आहार और पर्यावरण संरक्षण भी है । 

जैविक कॉरिडोर का दायरा

पटना, बक्सर, भोजपुर, नालंदा ,वैशाली,सारण, समस्तीपुर, लखीसराय,बेगूसराय,भागलपुर, खगड़िया,मुंगेर, कटिहार

 

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