Video: सारकेगुडा फर्जी एनकाउंटर, गांव वाले बोले- ‘जब तक दोषियों को सजा नहीं मिलेगी तब तक खुशी नहीं मनाएंगे’

संक्षेप:

  • गांव में एक साथ 17 लाशें देखने वाले सारकेगुड़ा के लोग अभी आयोग की रिपोर्ट से उत्साहित तो है लेकिन वो जश्न नहीं मना रहे है.
  • गांव में रहने वाली रत्ना मरकाम और रीता काका कहती है कि आयोग का फैसला तो आ गया है लेकिन जो घटना के जिम्मेदार हैं उन्हें सजा मिले तब तो यह असली जीत होगी.
  • गांव के लोगों ने बताया कि गांव के लोग जांच रिपोर्ट को लेकर खासे उत्साहित हैं और इस इंतजार में हैं कि कब रिपोर्ट के आधार पर सरकार आगे का फैसला लेगी.

रायपुर: सारकेगुडा में 7 साल पहले 17 बेगुनाह और निहत्थे आदिवासियों को यह कह कर सीआरपीएफ ने मौत के घाट उतार दिया था कि वो नक्सली हैं, माओवादी है. हद तो तब हो गई थी जब बच्चे और 9 साल के लड़कों को भी पुलिस ने नक्सली बता दिया था. अब जब न्यायिक आयोग की रिपोर्ट सामने आई हैं तो पुलिस और शासन की नीयत पर संदेह होने लगे हैं और सवाल उठने लगे हैं. सरकेगुडा गांव में जून 2012 को हुई कथित मुठभेड़ की जांच में पता चला है कि गांव वालों की ओर से गोलीबारी नहीं की गई थी. मारे गए लोगों के माओवादी होने के भी सबूत नहीं मिले हैं. एक सदस्यीय न्यायिक आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि गांव वालों को प्रताड़ित किया गया और बाद में उन्हें काफी करीब से गोली मारी गई.

‘जब तक दोषियों को सजा नहीं मिलेगी तब तक खुशी नहीं मनाएंगे’

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अपने गांव में एक साथ 17 लाशें देखने वाले सारकेगुड़ा के लोग अभी आयोग की रिपोर्ट से उत्साहित तो है लेकिन वो जश्न नहीं मना रहे है। गांव के लोगों में इस जानकारी से बेहद खुश है लेकिन गांव में जश्न नहीं मनाया जा रहा है। गांव में सारकेगुड़ा न्यायायिक जांच आयोग की रिपोर्ट की जानकारी रविवार को ही पहुंच गई थी और इस पर लोगों में चर्चा भी होने लगी थी। गांव में रहने वाली रत्ना मरकाम और रीता काका कहती है कि आयोग का फैसला तो आ गया है लेकिन जो घटना के जिम्मेदार हैं उन्हें सजा मिले तब तो यह असली जीत होगी।

गांव के सभी लोगों का करीब-करीब यही कहना है कि जांच आयोग की रिपोर्ट अधिकृत तौर पर हमें नहीं मिली है जो भी बातें पता चल रही हैं वह सोशल मीडिया, अखबारों के जरिये पहुंच रही हैं। ऐसे में अभी इस पर जश्न मनाना जल्दबाजी जैसी होगी। गांव के लोगों ने बताया कि गांव के लोग जांच रिपोर्ट को लेकर खासे उत्साहित हैं और इस इंतजार में हैं कि कब रिपोर्ट के आधार पर सरकार आगे का फैसला लेगी। गांव में रहने वाला मड़कम कहता है कि पहले हमारे लोगों को मारा गया फिर हमें ही नक्सली बता दिया गया फिर हमारे लिये राशन और मुआवजा भेजा गया। वो बातें आज भी हमें याद हैं ऐसे में जब तक दोषियों को सजा नहीं मिलती तब तक हम जश्न नहीं मनायेंगे।

पहले गोली मारी फिर मुआवजा दिया, इसके बाद नक्सली बताकर गिरफ्तारी, 4 साल जेल में काटे

बीजापुर जिले का सारकेगुड़ा सात साल पहले 28 जून 2012 को जवानों की गोलाबारी में 17 लोगों की मौत और दस लोगों के घायल होने के बाद हुई सुर्खियों में आया था। सात साल बाद गोलीबारी के मामले में न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट लीक होने के बाद एक बार फिर से सारकेगुड़ा सुर्खियों में है लेकिन इन सुर्खियों में कई दर्दभरी कहानियां छिपी हुई हैं। न्यायिक आयोग की रिपोर्ट के अनुसार सारकेगुड़ा में मारे गये और घायल लोग नक्सली नहीं हैं लेकिन घटना के बाद पुलिस ने मारे गये 14 लोगों को नक्सली बताया था और उनके खिलाफ बासागुड़ा थाने में नामजद एफआईआर भी दर्ज की गई थी। इस मामले में खास बात यह है कि पुलिस ने नाबालिग बच्चों को भी नक्सली बताया था जिनकी उम्र महज 13-14 साल की थी। यही नहीं घटना में जिन दो लोगों मड़कम सोमा और काका चेंटी को गोली लगी थी उन्हें भी नक्सली बता दिया गया। घटना में ये दोनों बुरी तरह से घायल हुए थे।

इन दोनों की कहानी भी बड़ी रोचक है। मड़कम सोमा और काका चेंटी सारकेगुड़ा के ही रहने वाले हैं जो 28 जून 2012 को मैदान में आयोजित बैठक में शामिल थे। जवानों ने घबराकर जब अंधाधुंध गोलियां चलाई तब इन दोनों को भी गोलियां लगी और ये घायल हो गये। घायल होने के बाद इन्हें हास्पिटल पहुंचाया गया और इनका इलाज शुरू हुआ। घटना के तुरंत बाद इन्हें नक्सल हिंसा पीड़ित माना गया और सरकार ने इन्हें 20-20 हजार रूपये मुआवजे के तौर पर भी दिये। इसके बाद इनकी सेहत बिगड़ी तो इन्हें हेलिकाप्टर से इलाज के लिए रायपुर ले जाया गया। करीब एक महीने तक रायपुर में इनका इलाज जारी रहा। इसी बीच इन्हें पुलिस ने कहा कि जब पुलिस जांच के लिए गांव में गई तो वहां दबी जुबान में लोगों ने इन्हें नक्सली बताया है। इसके अलावा पुलिस ने इन पर आरोप तय किया कि ये नक्सली हैं और मैदान में गोलीबारी की घटना में शामिल थे। इन्हें घायल अवस्था में ही 23 जुलाई 2012 को रायपुर हास्पिटल से गिरफ्तार कर लिया गया और दंतेवाड़ा जेल भेज दिया गया।

अदालत ने दोनों को बरी किया

मामले की सुनवाई करते विशेष न्यायालय एनआईए के न्यायाधीश डीएन भगत ने अभियोजन द्वारा पेश किए प्रमाण एवं साक्षियों के बयान पर विचारण करने के बाद यह पाया कि अभियोजन द्वारा अभियुक्तों के मौके पर मौजूद होने के पक्ष में कोई दस्तावेजी सबूत पेश नहीं किया जा सके। साथ ही उनके घायल होने के बारे में भी कोई चिकित्सकीय प्रमाण पत्र पेश नहीं किया गया। इस प्रकार अभियोजन अभियुक्तों के विरूद्ध पुख्ता प्रमाण पेश करने में नाकाम रहा है। अदालत ने संदेह का लाभ देते दोनों अभियुक्तों को बरी करने का आदेश दिया है।
एक भी गवाह नहीं मिला.

मामले में अभियोजन द्वारा 23 साक्षियों का प्रतिपरीक्षण किया गया। साक्ष्यों में डिप्टी कमांडेंट से लेकर डीआईजी स्तर तक के अधिकारी शामिल थे। दोनों ही ओर से मामला जगदलपुर के अधिवक्ता अरविंद चौधरी ने लड़ा था। न्यायालय ने तो इन्हें पहले ही बरी कर दिया था लेकिन अब सवाल यह है कि इन दोनों के जख्मों, जिंदगी के चार साल जो इन्होंने जेल में काटे उसका न्याय इन्हें कौन देगा और जब ये नक्सली थे तो इन्हें मुआवजे की रकम क्यों दी गई। इसके अलावा न्यायालय में एक भी स्वतंत्र गवाह क्यों सामने नहीं आया।

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