जनसंख्या वृद्धि की तुलना में रोजगार में तीन गुना अधिक बढ़ोतरी, पढ़ाई से साथ कमाई भी कर रहे युवा

, वाराणसी।

पूरे विश्व में डिजिटलीकरण की रफ्तार तेजी से बढ़ी है, जिसने समाजों को रूपांतरित किया है और भविष्य के काम और रोजगार के लिए महत्वपूर्ण निहितार्थों के साथ एक नई आर्थिक क्रांति की शुरुआत की है।  भारत के इस आर्थिक क्रांति में सबसे आगे रहने के लिए दोहरे फायदे हैं, एक अनुकूल जनसंख्या संरचना और तेजी से बढ़ती डिजिटल प्रौद्योगिकियां।

गिग-प्लेटफॉर्म अर्थव्यवस्था इस उभरते हुए प्रतिमान बदलाव के केंद्र में है।  आईएलओ की 2021 वर्ल्ड एम्प्लॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले दशक में डिजिटल श्रम प्लेटफार्मों की संख्या पांच गुना बढ़ गई है।

डिजिटल प्लेटफॉर्म परिवहन, खुदरा, व्यक्तिगत और घरेलू देखभाल जैसे विभिन्न क्षेत्रों में नवीन समाधान प्रदान करते हैं।  ये विभिन्न कौशल सेट वाले श्रमिकों को आशाजनक आय के अवसर और व्यवसायों को व्यापक बाजार पहुंच प्रदान करते हैं।

गिग अर्थव्यवस्था ने महामारी के दौरान भी लचीलापन दिखाया है, जहां प्लेटफार्म वर्करों ने शहरी भारत में एक अनिवार्य भूमिका निभाई है। अलग-अलग प्लेटफार्म पर की गई चर्चा विगत दिनों भारत में रोजगार को लेकर अलग-अलग प्लेटफार्म पर चर्चा की गई और आंकड़ों की एकरूपता की कमी से कभी भी स्पष्ट तस्वीर नहीं बन पाई।

परन्तु धरातलीय सर्वेक्षणो के माध्यम से और सरकारी आंकड़ों को लेते हुए अगर कोई अध्ययन हो तो उस पर एक व्यापक बहस होनी चाहिए।  इस क्रम में अर्थशास्त्र विभाग डीएवी पीजी कालेज के अध्यक्ष प्रो. अनूप कुमार मिश्र ने गत दो अप्रैल से 25 अप्रैल के बीच एक व्यावहारिक सर्वेक्षण किया, जिसमें प्रतिदिन ओला राइडर्स की सवारी करके उनकी आकांक्षाओं, कमाई और सामाजिक-आर्थिक स्थिति की जांच की गई थी।  करीब 50 ओला बाइकर्स के बीच सर्वेक्षण में पाया गया कि शहरी वाराणसी में एक ओला बाइकर औसतन प्रतिमाह 18,000 से 25 हजार रुपये कमा रहा था।

उम्र का आयाम 22 साल से 28 साल के बीच था और लगभग हर जाति का व्यक्ति इस काम में शामिल था।  40 प्रतिशत ओला बाइकर्स ने इसे पढ़ाई या अन्य नौकरी के साथ-साथ चॉइस के तौर पर पार्ट-टाइम काम के रूप में चुना।

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