इलाहाबाद कल आज और...त्रिवेणी संगम के ‘गंगाजल’ से भरी ‘गंगाजलि’ की चाहत

  • Hasnain
  • Monday | 29th January, 2018
  • local
संक्षेप:

  • संगम तट पर लगी रहती ‘गंगाजलि’ जल भरने का पात्र बेचने वालों की लाइन
  • साइबेरियन पक्षियों के कलरव गान से भरा रहता है पूरा संगम क्षेत्र
  • आदि शंकराचार्य ने की थी मां पार्वती के आंखों से बहते नीर की त्रिवेणी जल की तुलना

 

--वीरेन्द्र मिश्र

‘गंगा तेरा पानी अमृत’ ये गीत के बोल हो सकते है, परन्तु सच तो यही है कि गंगाजल पान की चाहत किसे नहीं होती। यह देखना-जानना-समझना और महसूस करना है, तो संगम तट पहुंचिए और ‘गंगाजलि’ जल भरने का पात्र बेचने वालों की वहां लाइन लगी रहती है। प्लास्टिक के छोटे, मझोले बड़े डिब्बों की भरमार तो होती ही है, तामपत्र, पीतल के बर्तन ‘गंगा सागर पात्र’ सभी मिलते हैं और उनमें त्रिवेणी संगम का असली जल भरा हुआ मिलता है, आप दक्षिणा-राशि दीजिए घटवारा, पण्डा जी, पुरोहित जी अथवा जलपात्र बेचने वाले स्वयं ही भरकर तैयार मिलता है। विशाल पावन गंगाजल में डुबकी लगाना, स्नान करना, पूजन-अर्चन और आरती के बाद असली त्रिवेणी की धारा को देखना और महसूस करना। युगों-युगों पुराने कथानक को जन्म दे देता है। स्थितियां-परिस्थितियां कैसी भी हो हर ऋतु में हर मौसम में आपको यह व्यवस्था मिलती है। वेणी बांध और शंकर विमान मंडपम से नीचे उतरिए, बड़े हनुमान जी (लेटे हुए हनुमान जी की विग्रह) का दर्शन कीजिए, फिर लाइन की लाइन लगी दूकानें जल पात्रों की संजी-संवरी मन को लुभाती ही नहीं चाहत को जन्म देती यहां मिलती है।

एक बार तो गंगाजल की चाहत में गोवा से पहुंची तीर्थयात्री ने मूल गंगा-यमुना संगम से सीधे तीन कंटेनर10-10 लीटर वाले भरकर ले लिए कि फिर गंगा स्नान या असली त्रिवेणी जल मिले न मिले और उसे वह ले चलीं, किन्तु बमरौली हवाई अड्डे पर पहुंचते ही. उसे जहाज पर नहीं ले जाया जा सकता था, लाख जतन करने के बाद बड़ी मुश्किल से एक कंटेनर (10 लीटर) वाला ले जाने में उन्हें कामयाबी मिली, तो यह है गंगा जल की पावनता और उसके प्रति आस्था और विश्वास।

दरअसल त्रिवेणी संगम को देखना अद्भुत भी लगता है, जिसे रामायण में महर्षि वाल्मीकि जी ने वर्णित किया हुआ है - गंगा-यमुना और सरस्वती तीन नदियों की संगम स्थली ही है त्रिवेणी। कुम्भ रिहर्सल में हाईटेक लेजर बीम से त्रिवेणी का दृश्य देखिये ‘श्रीराम’ का संगम तट आगमन का दृश्य भी तमाम कथानक याद दिलाता है।

आइये जरा सरस्वती घाट पावन मनकामेश्वर मन्दिर के बगल से बोट द्वारा अथवा नाव द्वारा या फिर मोटर बोट स्टीमर से सीधे संगम पहुंचा जाये अथवा बांध के नीचे पदयात्रा करते हुए मांगलिक गीतों की धुन सुनते पहुंचे टिकली, सिंदूर, बांसुरी, रामदाना की लइया, मूंगफली पागा मीठा और नमकीन सभी पूरे मेला परिसर में मिल जायेगा। चना जोर गरम का लुफ्त भी उठा सकते हैं। यही नहीं संजीवनी बूटी और चित्रकूट की मीठी जड़ जिसका मिठास और स्वाद का कहना ही क्या? पूरा मेला क्षेत्र मनभावन अनुभव का संसार होता है।

पूरा संगम क्षेत्र साइबेरियन पक्षियों के कलरव गान से भी भरा रहता है, जहां गंगा मइया की जय और तरह के जयकारों की धूम रहती है। ऐसे में जब वर्षों पुरानी भारत की पहली भोजपुरी फिल्म ‘विदेशिया’ का गीत ‘हे गंगा मइया तोहे, पियरी चढ़इबो सईया से कर दे मिलनवा हाय राम’ और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी द्वारा लिखित गीत मनोज की आवाज में ‘गंगा तू कितनी निर्मल है’ गूंजता सुनाई पड़ ही जाता है और ‘चल नदिया तू धीरे-धीरे चल’ डॉ. सुमन दुबे की आवाज मन मोह लेती है। और गीत-संगीत के साथ बालू रेती पर पग बढ़ाते लोगों की भीड़ अपनी लोक परम्पराओं में जीवन जीने की सामूहिक स्वर लहरियों की अनुगूंज से वातावरण ही एकदम भिन्न बना जान पड़ता है। कहीं रामायण के बोल गूंज रहे होते हैं, तो कहीं पूरा वातावरण प्रवचन रामलीला, नाटक, श्रीकृष्ण लीला के बोल सुहाते है। गंगा तट पर गंगा मइया को पुष्प चढ़ाना, दूधवारा दूध बेचने का सिलसिला प्रात: बेला में शुरू करता है, तो भक्तों की चाहत ऐसी कि वो दूध बेचता रहता है और उसका दूध दोपहर तक खत्म नहीं होता। वास्तव में दूध में गंगाजल मिलाकर भक्तों की भावनाओं में अपनी आर्थिक सम्पन्नता की धुन चढ़ाता रहता है।

नाव से त्रिवेणी संगम को निहारना एक नये सुख की अनुभूति करना है। यमुना का हरा जल गहरी और विशाल बहता हुआ यहीं त्रिवेणी में आकर गंगा की तीव्र उच्छृंखल धारा के बीच आकर क्लीन हो जाती है और आगे बढ़ जाती है। मोक्ष नगरी काशी की ओर बहती है, फिर वही गंगा सागर में क्लीन हो जाती है। कैसी अद्भुत बात है इस त्रिवेणी की मिलन स्थली पर गंगा-यमुना दोनों का मिलन और फिर उसका प्रवाह से मंथन ऊपर-नीचे होता दो रंगों का जल कैसे मिलकर एक हो जाता है, ठीक उसी तरह से जैसे घड़ा में भरा मथानी से मन्थन करने पर दही में मक्खन अलग निकल आता है और उसका छाछ बन जाता है। यही भाव यहां गंगा-यमुना और सरस्वती के जल के मिलन का भाव होता है, जो पूरे वातावरण में सरस्वती का जल लालिमा लिये हुए सा प्रतीत होता है। पावनता का कहना ही क्या, घटवारा नाव से नाव जोड़कर आपके स्नान करने, वस्त्र बदलने की व्यवस्था बनाता है। गंगा मइया के नाम पर दान लेता है। नमामि गंगे तब पाद कणे। आदि शंकराचार्य जी की गंगा लहरी के बोल सुहाते है।

हम आपको अतीत में ले जाना चाहेंगे, जब आदि जगद्गुरु शंकराचार्य जी यहां त्रिवेणी पर पहुंचे थे, तो त्रिवेणी के जल की तुलना मां पार्वती के आंखों से बहते नीर से की थी। और आध्यात्मिक अनुभूति को साक्षात् व्यक्त किया था। पूरा वातावरण एकदम भिन्न था। वही भाव आज भी आम भक्त भाव से यहां अनुभव कर सकते हैं।

परन्तु वक्त बदल चुका है, भक्तों की चाहत ने हमारी गंगा मइया को प्रदूषित कर दिया है, तभी तो गंगा की निर्मल जलधारा का बुरा हश्र हो रहा है। गंगा की पावनता में अपने पाप धोकर भक्तों का रेला, जो गंगा को प्रदूषित कर रहा है, उसे अब अविलम्ब रोकना होगा। अन्यथा आने वाली पीढ़ियां हमारे पावन गंगा जल को किताबों की कहानियों में शेष बचा जान सकेंगे। जिस तहर से ‘सरस्वती’ आज विलुप्त हो चुकी है। वही स्थिति हमारी गंगा की भी हो जायेगी। त्रिवेणी की पावनता चाहिए, तो प्रदूषण मुक्त मन की भावना जगाना होगा।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में ‘नमामि गंगे’ योजना और गंगा मइया को प्रदूषण मुक्त बनाने का बड़े स्तर पर काम चल पड़ा है। जागरूकता बढ़ गई है, जल्दी ही गंगा फिर निर्मल होगी और गंगाजल लेकर देश-दुनिया में पहुंच बना सकेंगे। हालांकि केन्द्र सरकार भी अब डाक के जरिये गंगाजल की व्यवस्था का अन्जाम दिला रही है। कुम्भ जल भी शीघ्र उपलब्धता की दोहनी में भरा जा सकेगा।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ की प्रबल प्रभा मण्डल और प्रयासों से कुम्भ नगरी प्रयागराज की महत्ता तो आगामी वर्ष 2019 में खुलकर बोलेगी। हाईटेक शहर में कुम्भ आगमन समस्त ग्रह नक्षत्रों का मौन मिलन और मौन सासों का मेला जुटेगा, तब यहां का कथानक ही भिन्न होगा। दुनियाभर से करोड़ों भक्तों की भीड़ जुटेगी, जो सचमुच देखने लायक होगा। ऐतिहासिक क्षण भी वही बनेगा।

चलते-चलते एक और बात बताता चलूं प्रीति जिंटा फिल्म अभिनेत्री भी संगम तट पहुंची थी, उन्होंने त्रिवेणी स्नान ही नहीं किया, बल्कि गंगाजलि में भर कर गंगाजल भी ले गई थीं। यह सब तो आस्था और विश्वास का आयाम है और इसी के साथ ‘अनकही-अनसुनी’ की लम्बी फेहरिश्त भी है। शेष फिर...

(आज की ‘अनकही-अनसुनी’ यहीं तक, अगले अंक में फिर भेंट होगी। तब तक के लिए इंतजार कीजिए अपनी खासमखास ‘अनकही-अनसुनी’ के लिए।)

Related Articles