इलाहाबाद कल आज और...गंगा-जमुना-सरस्वती और कुम्भ नगरी 

  • Hasnain
  • Monday | 22nd January, 2018
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संक्षेप:

  • इज़राइल के पीएम को सीएम योगी ने भेंट किया था ‘कुम्भ’ का प्रतीक
  • राज कपूर की फिल्म ‘संगम’ यहीं की पृष्ठभूमि पर हुई थी तैयार
  • दिलीप कुमार का भी इलाहाबाद से रहा है गहरा जुड़ाव

--वीरेन्द्र मिश्र

इलाहाबाद कुम्भ नगरी-तीर्थराज प्रयाग की महत्ता विश्व प्रसिद्ध तो थी ही अब ‘विश्व चेतना का हिस्सा’ भी बन गई है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने त्रिवेणी संगम नगरी में वर्ष 2019 में लगने वाले कुम्भ नगरी में वर्ष 2019 में लगने वाले कुम्भ की महत्ता को प्रायोगिक धरातल पर चित्रित परिसम्वाद का हिस्सा भी बना दिया है।

इज़राइल के प्रधानमंत्री श्री बेंजामिन नेतन्याहू जब आगरा ताजमहल का दीदार करने पहुंचे, तो उत्तर प्रदेश में होने वाले विश्व प्रसिद्ध मेला ‘कुम्भ’ का प्रतीक चिन्ह मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ ने उन्हें भेंट किया। जो भारतीय संस्कृति की अक्षुण्ण परम्पराओं का प्रतीक है और प्रयागराज की त्रिवेणी में सरस्वती के अवतरण को व्यक्त करना चरितार्थ करता है, जो दोनों देशों की पहचान और पारम्परिक सहयोग के साथ संस्कृतियों के मंथन चिन्तन को बल प्रदान करता है, जिसे विश्व पटल पर अवश्य ही ‘नवो-नवो भव’ के रूप में स्थान मिलेगा।

समुद्र मंथन से 14 रत्न निकले थे, उसमें विष के साथ अमृत भी निकला था। तब से यह अवधाराणा रही है कि समुद्र का जल खारा होकर भी मीठा के गुणों का भरपूर स्त्रोत है, कैसे? इसे इज़राइल समुद्र के पानी को मीठा बनाकर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और बेंजामिन नेतन्याहू दोनों जन ‘जलपान’ कर चुके हैं, जिससे ‘खारा जल मीठा’ का कथानक चरितार्थ होता है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कुम्भ मेले का ‘लोगो’ उन्हें भेंट स्वरूप प्रदान कर भारतीय संस्कृति की पहचान को इज़राइल से प्रकृति संवर्धन में जुड़ाव को आगे बढ़ाया है। निश्चित ही इलाहाबाद के कुम्भ में दोनों देशों का सांस्कृतिक भाव किसी न किसी रूप में अवश्य दिख सकता है। आइये बात करते हैं - इलाहाबाद की ‘अनकही-अनसुनी कुम्भ’ महत्ता से जुड़ी आस्था में विभूतियों के जुड़ाव और संवाद पहचान की।

इलाहाबाद की मिट्टी और यहां के त्रिवेणी संगम की गंगान्जलि की अपनी पहचान, तासीर, पावनता और औषधि गुणों से भरपूर मान्यतायें परम्पराओं की ऐसी लड़ियां हैं। कौन त्रिवेणी गंगा-यमुना और सरस्वती का संगम नहीं देखना चाहता और किसकी चाहत नहीं होती। इस धरती की माटी की खुशबू से जुड़ने की।

युगों-युगों पुरानी गाथाओं को अलग रख दें, तो इतिहास के न जाने कितने पन्ने यहां के कथानकों से भरे-पूरे मिलते हैं। भारत की आज़ादी के पहले और भारत की आज़ादी के बाद की न जाने कितनी ही कृतियां अपनी पहचान को सहेजती दिखाई पड़ती है।

आगरा से इलाहाबाद बहकर गंगा में विलीन होती यमुना नदी और इलाहाबाद से आगे वाराणसी की ओर बह कर जाती गंगा की कहानी एकदम भिन्न रही है। शायद यही वजह है कि प्रयागराज के त्रिवेणी संगम तट पर पहुंचने की लालसा फिल्म जगत की चाहत बनी रही है।

यही देखिये न राज कपूर की फिल्म ‘संगम’ यहीं की पृष्ठभूमि पर तैयार हुई फिल्म थी, जिसमें राज कपूर और वैजयन्ती माला बाली दोनों त्रिवेणी संगम में नौका विहार किया था।

कालान्तर में आशा पारेख भी संगम पहुंची थी। उन्होंने प्रयाग संगीत समिति में अपना नृत्य प्रस्तुत किया था, तो दर्शकों  की तब भीड़ टूट पड़ी थी। आज हम अपने ‘अनकही - अनसुनी’ के जागरूक पहरुओं और पाठकों को बताना चाहेंगे कि फिल्म जगत की दीवानगी यहां की पहचान से जुड़कर वर्षों से कैसे बोलती आ रही है।

हम अपने पाठकों को पहले ही बता चुके हैं, मशहूर पहलवान और फिल्म जगत के अभिनेता दारा सिंह यहीं इलाहाबाद के ही निवासी थे। जब उन्होंने ‘रामायण’ में ‘हनुमान’ का चरित्र अभिनीत किया, तो वह भी इलाहाबाद आये थे और यहां बड़े हनुमान जी का दर्शन कर त्रिवेणी संगम का जलपान किया था।

अचला सचदेव तो इलाहाबाद के अहियापुर मुहल्ला यानी आज के मालवीय नगर मुहल्ले की रहने वाली ही थीं।  उनके पिता सरदार जी की तेल की मशीन महाबीरन लेन में लगी थी। अहियापुर मुहल्ले के खूनी पण्डा के घर के करीब शम्भूनाथ पण्डा के घर में वो किरायेदार थे।

भारत भूषण जैसे महान अभिनेता का अधिकांश समय इलाहाबाद में ही बीतता था। भारत भूषण में आध्यात्मिक चरित्रों को जीवन्त करने की पहचान यहीं की मिट्टी में मिली वह प्राय: हीवेट रोड चौराहे वाली गल्ली के एक मकान में रहते थे। भारत भूषण जब आखरी समय में बीमार हुए थे, तो वहीं जहां ‘आज’ अखबार का पुराना दफ्तर था, उसके ठीक पीछे रहते थे और भ्रमण किया करते थे।

दिलीप कुमार का भी इलाहाबाद से गहरा जुड़ाव रहा है। उनकी अवधि भाषा में बनी फिल्म ‘गंगा-जमुना’ का चरित्र यहीं विकसित हुआ। माना जा सकता है गंगा जैसी तेज़ धारा की तरह बहने वाले पावन चरित्र की पहचान का कोई जवाब नहीं था। दिलीप कुमार जी का सीधा सम्बन्ध पूर्व सांसद और उद्योगपति रहे एम.आर. शेरवानी से रहा, उनके बेटे सलीम शेरवानी का उनसे पारिवारिक रिश्ता भी है, जब ऐतिहासिक अखिल भारतीय मुशायरा इलाहाबाद में हुआ था, तो उसमें जनाब कैफी आज़मी, नौशाद, सरदार अली जाफरी के साथ उस काल में बम्बई के शेरिफ रहे युसुफ खान यानी दिलीप कुमार विशेष अतिथि के रुप में इलाहाबाद पहुंचे थे, तब उनका इण्टरव्यू - आकाशवाणी के प्रोड्यूसर राजा जुत्शी के साथ मैंने स्वयं लिया था, जिसे विविध भारती में तब प्रसारित भी किया गया था।

वक्त ने करवट बदली इलाहाबाद की मिट्टी की भीनी-भीनी खुशबू में फिल्म जगत की चाहत कम नहीं हुई। यहां मीरापुर मुहल्ले में जगदीश सिदाना रहते थे, वह फिल्म निर्देशक बन गये, तो उनका विवाह तब की मशहूर अदाकारा पद्मा खन्ना से हुआ था। पद्मा दूल्हन बनकर इलाहाबाद पहुंची थी और तबके न जाने किनते ही रिश्तेदारों से यहां जुड़ी रहीं।

ज्यादा भटकने की जरूरत नहीं है। सिविल लाइन्स में ‘मरकरी’ लल्लू वाले की फेमस दूकान है। पहले वहीं थ्री कार्डस होटल था , वहीं रीना राय और बरखा राय दोनों बहने नृत्य किया करती थी। रीना राय तो पहले प्राय: इलाहाबाद आती भी रहीं है।

ये सही है कि मशहूर फिल्म निर्देशक श्याम बेनेगल ने जब ‘नेहरू’ फिल्म बनाई, तो महीनों यहीं इलाहाबाद में रहकर उसकी शूटिन्ग करते रहे। बाद में उनके चहेते कैमरामैन गोविन्द निहलानी ने ‘अटन ब्रो’ की फिल्म ‘गांधी’ की शूटिन्ग इलाहाबाद में हेलीकॉप्टर से संगम तट पर पूरी की थी। उस समय उनके सहयोगी गुरुदत्त के छोटे भाई देवी दत्त बतौर प्रोड्यूसर साथ में रहे हैं।

वर्ष 1977 में जब तीर्थराज प्रयाग में महाकुम्भ लगा, तो पूरे मेला परिसर में भूले-बिसरे शिविर और कुम्भ स्नान में संगम किनारे सेवा भावना से मैं भी जुड़ा, फिर ‘ऑल इण्डिया रेडियो’ से जुड़कर कुम्भ यात्रा आरम्भ हो गयी। जब 1982 का अर्धकुम्भ काअवसर आया, तो नर्मदा तट वासियों के बीच ज्ञान युग प्रभात के माध्यम से ‘चलो चले कुम्भ नहाएं`, आस्था की डुबकी लगाएं’ का विशेष फीचर प्रस्तुत किया। पूरे मध्य प्रदेश में तब धूम मच गई थी। वक्त आगे बढ़ा और वर्ष 1989 का जब ‘महाकुम्भ’ लगा, तो प्रयाग में मेरे द्वारा तैयार करवाई फिल्म (निर्देशक - शंकर सुहेल) ‘अमृत कुम्भ’ ने देशभर में प्रचार तंत्र में धूम मचा दी थी। कड़ियां जुड़ती रहीं, फिर तो नक्षत्रों के योग में कुम्भ स्नान की कड़ियां नित जुड़ती ही रहीं।

अब एक बार फिर 2019 का कुम्भ रिहर्सल प्रयागराज  में सम्पन्न हो रहा है। तो स्थितियां-परिस्थितियां बदल गयीं है। अब तो इलाहाबाद में ‘हाईटेक कुम्भ’ नगरी नये आयाम और सोपान के साथ आगे बढ़ चली है। पूरा मेला परिसर नक्षत्र योग के आमंत्रण में श्रंगार शुरू हो गया है। आर.ओ. पानी पूरे मेला परिसर में ‘गंगाजल’ तक पहुंचने की सफलता और स्वच्छता अभियान ने नया छन्द जोड़ा है।

जब वर्ष 1985 में होने वाले आम चुनाव में मेगास्टार अमिताभ बच्चन ने त्रिवेणी पूजन कर बड़े लेटे हनुमान  जी का पूजन किया था, तो यहां के मौन निमंत्रण को प्रचार माध्यम का बल मिल गया। एस. रामानाथन जैसी मशहूर दक्षिण भारत के फिल्मकार ने ‘गंगा-जुमना-सरस्वती’ बनाकर एक नई कहानी को जन्म दे दिया, जिसमें सांसद अमिताभ बच्चन ने इलाहाबाद वासियों की चेतना का भाव स्नान कर अभिनय किया था। खूब चर्चा हुई। पलक पावणे बिछाकर जनमानस ने अमिताभ का स्वागत किया था।

हालांकि वर्षों पहले जब नासिर हुसैन की फिल्म ‘विदेशिया’ बनी थी, तो उसका गीत ‘हे गंगा मइया तोहे पियरे चढ़इबो सइया से कर दे मिलनवा हाय राम’ खूब चर्चित हुआ था। फिर शत्रुघ्न सिन्हा के अभिनय के साथ ‘गंगा तेरा पानी अमृत’ ने नई ऊंचाईयों को जन्म दे दिया। जिसमें ‘गंगा जल’ की महत्ता और शक्ति खुलकर मुखर हुई थी।

(आज की ‘अनकही-अनसुनी’ यहीं तक, अगले अंक में फिर भेंट होगी। तब तक के लिए इंतजार कीजिए अपनी खासमखास ‘अनकही-अनसुनी’ के लिए।)

 

 

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