इलाहाबाद कल आज और...पाठक ने बनाई जब ‘शहीद वाल’ बनी नई मिसाल

  • Hasnain
  • Monday | 20th November, 2017
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संक्षेप:

  • आजादी की लड़ाई में इलाहाबाद के न जाने कितने ही अनजान शहीदों ने दिया बलिदान
  • गांव-गांव घूम कर निकाला गया इलाहाबाद के 14 शहीदों का नाम
  • अनाम शहीदों में मौलवी लियाकत अली की कहानियां सबसे पहले हुई शामिल

 

--वीरेन्द्र मिश्र

एक कहावत है ‘भूसा’ से सुई निकालना। मुश्किल तो है ही दुरूह और टेढ़ी खीर भी है।  ऐसे ही शास्त्रों में भी कहा गया है कि ‘हंस श्वेत: वक: श्वेत: को भेद: वक हंसयो। नीर-क्षीर विवेकं तु हंसो हंस: वको वक:।’ अर्थात् जो ज्ञानी होगा वही दुरूह कार्य को पूरा कर सकता है।

हम बात कर रहे है इलाहाबाद की मिट्टी त्रिवेणी की, जो तीर्थराज की धरती तो है ही जहां 1857 में भारत की जंग-ए-आजादी की पहली लड़ाई से लेकर 1947 तक 100 वर्षों के काल में न जाने कितने ही अनजाने शहीदों ने अपना बलिदान दिया। चन्द्रशेखर आजाद का बलिदान युगों-युगों तक इलाहाबाद में याद किया जाता रहेगा। ऐसे ही उन अनाम शहीदों के बलिदान को भी भुलाया नहीं जा सकेगा।

तीर्थराज

इसके लिए युवा प्रखर मीडिया धर्मी और सृजनशील, सचेतक वीरेन्द्र पाठक के प्रयासों से लगभग 14 शहीदों की खोजबीन आरम्भ हुई और उन सभी की जंग-ए-आजादी में लड़ाई के योगदान को गांव-गांव घूम-घूम कर ढूंढ कर ही नहीं निकाला गया, बल्कि उन्हें इकट्ठा कर इलाहाबाद शहर की पहचान से भी जोड़ दिया गया। उन्होंने सिविल लाइन्स में ‘शहीद वाल’ बनवाई, जिसमें शहर प्रशासनिक शक्तियां भी सक्रिय हो गई।

आज ‘शहीद वाल’ में उन अनाम शहीदों की पहचान, उनका निवास, उनकी लड़ाई की गाथा सहित अन्य तथ्यों को एक जगह संग्रहित कर दिया गया है। आज हम गर्व के साथ कह सकते है, वीरेन्द्र पाठक के प्रयासों से उन वीर शहीदों भारत के सपूतों के प्रति आम जनमानस अपनी श्रद्धा सुमन अर्पित कर सकता है। चलो कुछ अच्छा करे की पहल पर इलाहाबाद के अनाम शहीदों को नमन करते हुए वीरेन्द्र पाठक ने इस युग में निश्चित ही नई कहानी लिख दी है।

चन्द्रशेखर आजाद

1887 से लेकर 1947 तक के अनाम शहीदों में मौलवी लियाकत अली की कहानियां सबसे पहले हाईटेक इलाहाबाद शहर में शामिल हुई हैं। जो 1857 की जंग-ए-आजादी की लड़ाई में इलाहाबाद में महानायक थे। शहर पश्चिमी क्षेत्र में मंह गांव के उस वीर सिपाही की वीरता की कहानी सामने रखी है। यही नहीं छठवीं इन्फैंट्री रेजिमेंट के सरदार, रामचन्द्र जो मंझनपुर वासी हनुमान पण्डित थे, जो ‘कोरव’ गांव के सेनानी थे, तब वह गुरिल्ला लड़ाई में माहिर थे। ऐसे त्रिलोकी नाथ कपूर ने कमला नेहरू रोड, हीवेट रोड पर सीने में गोली खायी थी। शहीद अब्दुल मजीद 1942 में शहर कोतवाली के बीच शहीद हुए थे। जबकि शहीद लाल पद्मधर 12 अगस्त 1942 को इलाहाबाद विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों का नेतृत्व करते हुए भारत माता की गोद में चिरनिद्रा में लीन हुए वह अंग्रेजों की ताकत का सामना करते हुए शहीद हुए थे। ऐसे ही रमेश मालवीय भी उसी दिन (जो सी.ए.वी. कॉलेज के छात्र थे) अंग्रेजों की गोली का शिकार होकर शहीद हुए। यही नहीं उसी दिन जमादार ननकाजी चौक में ही बलूच सैनिकों का विरोध करते शहीद हुए थे। इन्हें याद किया जाना, इलाहाबाद की मिट्टी को नित नमन करना और उन पर फूल चढ़ाना हैं।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय

इनके अलावा शहीद नियाकत उल्ला 62 वर्ष की उम्र में सन् 1932 में शहीद हुए, तो हरि नारायण भी 1932 में ही इलाहाबाद विश्वविद्यालय के विद्यार्थी  के रुप ने आजादी की लड़ाई लड़ी थी और अपनी भारत माता की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिये। शहीद महावीर नैनी क्षेत्र में तो मुरारी मोहन भट्टाचार्य शाहगंज क्षेत्र में झा एण्ड कम्पनी दवा की दूकान के कार्मिक के रुप में लड़ाई लड़ते हुए शहीद हुए थे। तथा द्वारिका प्रसाद हीवेट रोड पर शहीद हुए थे। उन सभी भारत माता के ललनाओं को शत्-शत् नमन और वीरेन्द्र पाठक के किये गये प्रयासों को सामूहिक चेतना की तरफ से बधाई कि उनके प्रयासों से इलाहाबाद में एक ‘शहीद वाल’ बन सकी, जहां सामूहिक रुप से लोग इकट्ठा होकर उन शहीदों को श्रद्धा सुमन अर्पित कर सकते हैं। अपने पुरखों की धरती पर गर्व कर सकते हैं कि - शहीदों  की वाल पर लगेंगे हर समय मेले, वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा।

शहीद वाल

इलाहाबाद शहर की अपनी पहचान है और वहां की अपनी गाथा भी है। यही नहीं किताबों-पन्नों में संग्रहित अनेकानेक कहानियां भी है। यदि हर युवा उन सबके प्रायोगिक समयानुसार किसी न किसी रुप में संग्रहित कर समय काल से जोड़ कर प्रस्तुत कर सके, तो सृजनशीलता की गौरव गाथा भी बन सकती है। जैसा कि वीरेन्द्र पाठक ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. आर.पी. मिश्रा की पहल से हिन्दू महिला महाविद्यालय की दीवाल को ‘शहीद वाल’ बनाने की सर्वत्र सराहना हो रही है। ऐसे डॉ. भुवनेश्वर गहलौत, डॉ. गायत्री सिंह, महामहिम राज्यपाल केशरी नाथ त्रिपाठी, पूर्व न्यायमूर्ति गिरधर मालवीय जी जैसी महान विभूतियों के सहयोग और मार्ग दर्शन से इलाहाबाद के सिविल लाइन्स क्षेत्र में यह नई कहानी नये आयामों के साथ लिखी गई है, जो ‘हाईटेक’ युग में हाईटेक इलाहाबाद शहर की पहचान से भी अब जुड़ चुकी है।

राज्यपाल केशरी नाथ त्रिपाठी

इलाहाबाद शहर 1857 में एक दिन के लिए आजाद हो गया था। इलाहाबाद के वीर शहीदों के शौर्य पराक्रम और बलिदान से ही यह सम्भव हो सका था। चौक में नीम का वृक्ष इलाहाबाद में शहीदों का गवाह है। आज भी वह वह वृक्ष खड़ा है। चन्द्रशेखर आजाद की बलिदान की मिट्टी को नमन करते हर दिन लोग पहुंचते ही रहते है। अब ‘शहीद वाल’ बनी है, तो इसकी प्राण प्रतिष्ठा करते हुए, एक खास जगह पर सरकार को मेयोहाल क्षेत्र में उन शहीदों की गाथाओं पर श्रव्य-दृश्य का नित कार्यक्रम भी चलवाया जाना चाहिए, ताकि नई पीढ़ी भी भारत की आजादी की मर्म को महसूस करती रहे।

(अगले अंक में फिर भेंट होगी। एक नई कहानी के साथ, आप इन्तज़ार कीजिए ‘अनकही-अनसुनी’ की अगली कड़ी का)

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