सिटी स्टारः पान बेचने को मजबूर है गोल्ड मेडल विजेता

  • Sonu
  • Saturday | 29th July, 2017
  • local
संक्षेप:

  • बॉक्सर को आर्थिक तंगी ने तोड़ कर रख दिया था
  • पान की दुकान खोल कर रहा परिवार का पालन
  • सुरेश शिरोमणि की NYOOOZ से ख़ास बातचीत

कानपुरः बाक्सिंग में शहर के नाम रोशन कर चुके सुरेश शिरोमणि ने कभी गोल्ड और सिल्वर मैडलों की भरमार लगा दी थी। सुरेश बॉक्सिंग में अपना भविष्य भी तलाशने लगे थे, लेकिन उन्हें क्या पता था कि यही बाक्सिंग एक दिन उसके परिवार को एक-एक रोटी के लिए तरसा देगी। इसके बाद इस बॉक्सर ने हमेशा के लिए हाथों से ग्लब्स निकल फेके और फिर कभी रिंग में नहीं चढ़ा। सुरेश शिरोमणि ने NYOOOZ से ख़ास बातचीत की।

सुरेश जब पूछा गया कि आप को बाक्सिंग से कितना लगाव है?

सुरेश ने कहा कि जितना लोगों को अपनी जिन्दगी से प्यार होता है उतना ही मुझे बॉक्सिंग से प्यार है। मैंने बॉक्सिंग में अपना बचपन रिंग में बिताया है, मैंने जीतोड़ मेहनत की है जिसकी वजह से लोग मुझे बॉक्सर के नाम से जानने लगे। लेकिन हालातों ने मुझे बॉक्सिंग से दूर कर दिया लेकिन मुझे आज भी बॉक्सिंग से बहुत लगाव है।

कहा बॉक्सिंग खेलने गए और इसकी शुरुआत कैसे की?

साल 1989 में जब मैं 11 वी क्लास में था तब मुझे बॉक्सिंग का शौक था, मैं डीबीएस कालेज में सीखने के लिए गया था। वहीं से मेरी नई पारी की शुरुआत थी, मैंने सबसे पहले गोल्ड मैडल जीता था 1989 में कानपुर डिस्टिक अमेचर बॉक्सिंग एसोशियेशन द्वारा प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था। इसके बाद जूनियर उत्तर प्रदेश बॉक्सिंग प्रतियोगिता में मैंने सिल्वर मैडल जीता था। सन 1990 में स्टेट बॉक्सिंग चैम्पियनशिप नैनीताल में मैंने गोल्ड मैडल जीता था। इसी तरह से मैंने हैदराबाद, मेरठ, समेत कई राज्यों में मैंने कई प्रतियोगिताये जीती है।

कैसे बॉक्सिंग से दूर होते गए?

सुरेश ने बताया कि मेरे पिता जी रेलवे में थे, मैं बॉक्सिंग करता था यह बात मेरे भाइयों और पिता को पसंद नहीं थी। मेरे सबसे बड़े भाई महेश सिरोमणि सिर्फ मेरा सामर्थान करते थे, वह मुझे कपड़े, ग्लब्स जूते प्रोवाइड कराते थे। लेकिन जब मेरी शादी हुई तो मुझे घर से अलग कर दिया गया, जब मैं अपने परिवार को लेकर अलग रहने लगा तो मुझ पर परिवार चलाने का दबाव बढ़ गया। इस बॉक्सिंग से मेरा परिवार नहीं चल रहा था। इसकी बजह से मैंने बॉक्सिंग को बाय-बाय कर दिया और फैक्ट्री में काम करने लगा। लेकिन एक बॉक्सर को यह काम रास नहीं आ रहा था मुझे लोगों की तारीफे सुनने की आदत हो गई थी। लेकिन हालातों के आगे मुझे टूटना पड़ा, इसके बाद मैंने पान मसाले की दुकान खोली और उसी से परिवार का जीवन यापन करने लगा। मुझे ख़ुशी इस बात की है कि अपने मैडल और सर्टिफीकेट बच्चों को दिखता हूं और उन्हें बताता हूं और खुश हो लेता हूं।

ये रहीं उपलब्धियां

- कानपुर डिस्ट्रिक एमेच्योर बॉक्सिंग एसोसिएशन 1989 (गोल्ड मेडल)

- चौथी सब जूनियर, 14वीं जूनियर यूपी एमेच्योर बॉक्सिंग चैंपियनशिप 1989-90 नैनीताल (सिल्वर मेडल)

- दूसरी यूपी इंटर क्लब लालजी मेमोरियल बॉक्सिंग चैंपियनशिप 1990 (गोल्ड मेडल)

- 22 जूनियर बॉक्सिंग चैंपियनशिप हैदराबाद (सिल्वर मेडल)

- 19वीं यूपी स्टेट सीनियर बॉक्सिंग चैंपियनशिप 1990 लखनऊ (सिल्वर मेडल)

- छठी सब जूनियर व 16वीं जूनियर यूपी स्टेट बॉक्सिंग चैंपियनशिप 1990-91 (सिल्वर मेडल)

- कानपुर यूनिवर्सिटी कानपुर बॉक्सिंग चैंपियनशिप 1994 (गोल्ड मेडल)

- ऑल इंडिया इंटर यूनिवर्सिटी शिमला 1994-95 (सिल्वर मेडल)

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