सिटी स्टारः कानपुर की प्रीति बाथम अनाथ बच्चों को कपड़े और स्टेशनरी देकर बांटती हैं दर्द

  • Sonu
  • Saturday | 23rd September, 2017
  • local
संक्षेप:

  • कानपुर की प्रीति बाथम हैं युवा समाजसेवी
  • अनाथ और गरीब बच्चों की करती हैं मदद
  • पिता के मौत के बाद समझा बच्चों का दर्द

कानपुरः कहते है जिन बच्चों का बचपन पैरेंट्स की गोद में बीतता है वह बच्चे बड़े ही खुशकिस्मत होते है। एक ऐसी ही 25 साल की समाज सेविका ने अपना दर्द बया किया और उस दर्द को समझते हुए वह एक एनजीओ के माध्यम से अनाथ बच्चों और गरीब बच्चों की मदद कर रही हैं। इस काम में उनके पति भी उनकी सहायता करते हैं और उनके इन्हीं कामों की वजह से शहर के बड़े-बड़े समाजसेवी इस युवा सोशल वर्कर खुबिया बताने में जरा भी नहीं कतराते है।

नौबस्ता की रहने वाली प्रीति बाथम सेवियर फाउंडेशन की चेयर मैन है, पति आशीष बाथम और एक तीन साल की बेटी आर्या के साथ रहती हैं। प्रीति की शादी चार साल पहले आशीष से हुई थी। इनके पति कंस्ट्रक्शन का काम करते हैं। प्रीति मूल से झांसी की रहने वाली है प्रीति के पिता सूबेदार बाथम एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट में सुपर वाईजर थे। इनके पिता की मौत सन 1997 में हुई थी तब वह मात्र पांच की थी।

-आप के मन में कैसे ख्याल आया कि समाज सेवा की जाये?

प्रीति ने बताया कि जब मैं 5 साल की थी तब मेरे पिता जी का देहांत हो गया था। मैं अपने परिवार की अकेली थी मैं अपने पापा से बहुत प्यार करती थी उनकी मौत के बाद मेरा परिवार टूट गया मैं और मेरी मां को उनकी कमी खलने लगी थी। इसके बाद मेरे पिता की जगह मां की नौकरी लग गई। जब मां जॉब पर जाने लगी तो मैं घर पर अकेले पड़ गई। अब मैं मां और पापा दोनों की कमी को महसूस करने लगी। तभी मेरे मन में ख्याल आया कि वह बच्चे कैसे रहते है जिनके मां बाप दोनों ही नहीं रहते है। तभी मेरे मन में ख्याल आया कि मैं बड़ी हो कर अनाथ बच्चों की मदद करुंगी।

-कैसे आप गरीब बच्चों की मदद करती हैं?

उन्होंने बताया कि हमारी संस्था गरीब बच्चों को कपड़े, कापी किताबें, दवाइयां मुहैया कराती है। इसके साथ ही चाइल्ड लाइन में आने वाले बच्चों की मदद करती है। उनको उनके परिवार से मिलवाने में भी मदद करती है, इसके साथ ही हम लोग बच्चों की काउंसलिंग भी करते है।

-आपने बचपन में पढाई-लिखाई कैसे की?

उन्होंने बताया कि मैंने हाईस्कूल, इंटर, ग्राजुएशन किया इसके बाद शादी के बाद भी मैं एमसीए कर रही। मैंने भोपाल यूनीवर्सिटी से ग्रेजुएशन में टॉप भी किया था।

-आप के दिल में छेद था जब ऑपरेशन के लिए गई थी तब कैसा महसूस कर रही थी?

उन्होंने बताया कि जब मैं ऑपरेशन के लिए जा रही थी मुझे नहीं पता था कि मैं जिन्दा बचुगी या नहीं। मैंने जो सपने देखे वह पूरे कर पाउंगी की नहीं लेकिन इश्वर का धन्यावद है कि मैंने दूसरी जिन्दगी पा ली। अब मैं अपने काम को बेहतर ढंग से कर पा रही हूं। इसके साथ ही मैं अपनी बेटी को कभी भी पैरेंट्स की कमी को महसूस नहीं होने देती हूं।

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