इस तरह खत्म होने जा रहा देहरादून घंटाघर का अस्तित्व

संक्षेप:

  • ऐतिहासिक है देहरादून घंटाघर
  • देहरादून नगर निगम में शामिल हुए 72 गांव
  • 60 वार्ड हुआ करते थे पहले

 

देहरादून: देहरादून के घंटाघर का अपना इतिहास है और इसकी अपनी पहचान भी है. घंटाघर की अलग पहचान सिर्फ सांस्कृतिक ही नहीं रही बल्कि प्रशासनिक भी रही है. दरअसल जबसे देहरादून पालिका में तब्दील हुआ तबसे घंटाघर वार्ड नंबर 15 रहा. लेकिन अब इस नाम से वार्ड नहीं मिल पाएगा. सोमवार को इस वार्ड को तीन हिस्सों में बांट कर इसका अस्तित्व ही खत्म कर दिया गया है.

राजधानी के घंटाघर को और आकर्षक बनाने के लिए इसके सौंदर्यीकरण किया जा रहा है. लेकिन त्रासदी देखिए कि जब तक घंटाघर नए रूप में, ज़्यादा चमकदार बनकर लौटेगा तब तक उसके पैर तले उसकी अपनी ज़मीन खिसक चुकी होगी. उत्तराखंड में नगर निकायों का परिसीमन होने के बाद देहरादून नगर निगम में 72 गांव शामिल हुए और देहरादून प्रदेश का सबसे बड़ा नगर निगम बन गया. यहां पहले 60 वार्ड हुआ करते थे लेकिन परिसीमन के बाद देहरादून नगर निगम में अब 100 वार्ड हो गए हैं.

इस परिसीमन में देहरादून के कई पुराने वार्डों का अस्तित्व खत्म हो गया है और ये वार्ड अब कई हिस्सों में बंट कर अन्य वार्डों में शामिल हो गए हैं. ऐसा ही एक वार्ड था घंटाघर जिसका नाम ही नहीं पहचान भी दून के ऐतिहासिक घंटाघर से जुड़ी थी. लेकिन नगर-निगम परिसीमन में घंटाघर के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक महत्व को कोई तव्वज़ो नहीं दी गई और घंटाघर को तीन अलग-अलग हिस्सों में बांट दिया गया.

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इस मामले में पूछे जाने पर मेयर विनोद चमोली का कहना था कि परिसीमन का एक अलग माप दंड होता है और घंटाघर के नाम का वार्ड यदि खत्म हुआ भी है तो यह कोई बहुत बड़ा मुद्दा नहीं है. राजनीतिक पर्यवेक्षक मानते हैं कि त्रिवेंद्र सरकार ने विपक्ष को बैठे-बैठाए एक राजनीतिक मुद्दा परोस दिया है. अब मुद्दा दे ही दिया है तो राजनीति भी शुरू हो गई है. कांग्रेस निकाय चुनाव से पहले इस नाम को भुनाना चाहती है और इस वार्ड के साथ अन्य वार्डों को भी उनके नाम के साथ बचाना चाहती है. इसी मुद्दे पर आज कांग्रेस के पूर्व विधायक राजकुमार के साथ पार्षदों ने नगर निगम का घेराव भी किया.

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