Exclusive: 30 करोड़ वोटरों के रोजी- रोटी पर आफत, क्या ये 23 मई को बदल रहे हैं देश की सरकार?

संक्षेप:

  • भारतीय अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा- गांव से लेकर शहर तक भीषण संकट में है.
  • 30 करोड़ से ज्यादा की बड़ी आबादी रोजी-रोटी के संकट से जूझ रही है.
  • क्या हम भूखे पेट युद्ध लड़ना पसंद करेंगे?

नई दिल्ली: आर्थिक जानकार, अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी से लेकर मोदी सरकार के आर्थिक सलाहकार समिति के सदस्य तक गंभीर आर्थिक संकट की ओर इशारा कर चुके हैं. भारतीय अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा- गांव से लेकर शहर तक भीषण संकट में है. 30 करोड़ से ज्यादा की बड़ी आबादी रोजी-रोटी के संकट से जूझ रही है. वित्तीय वर्ष 2019 के अक्टूबर- नवंबर के Centre for Monitoring Indian Economy (CMIE) के रिपोर्ट के मुताबिक देश के सभी सेक्टर में बिजनेस 14 साल के सबसे न्यूनतम आंकड़ों पर पहुंच चुका है. बैंकिंग सेक्टर के सामने दैत्य की तरह खड़ा- एनपीए है तो टेलीकॉम सेक्टर का सबसे बड़ा सरकारी निगम बीएसएनएल डूब चुका है. एविएशन सेक्टर का भी बुरा हाल है, जेट एयरवेज कंगाल हो गया है, कंपनी के हजारों कर्मचारी एक झटके में बेरोजगार हो गए और कंपनी ने रातों-रात सर्विस बंद कर दी. एयर इंडिया 52 हजार करोड़ के कर्जे में डूबा है और ये भी कभी बंद हो सकता है.

30 करोड़ वोटरों के सामने रोजी-रोटी या फिर राष्ट्रीय सुरक्षा है अहम मुद्दा

बड़ा सवाल यह है कि इस देश में कुल वोटरों की संख्या 90 करोड़ है और 90 करोड़ में 30 करोड़ वोटर के सामने रोजी- रोटी का संकट है. क्या 30 करोड़ वोटरों ने इस बार रोजी-रोटी के मुद्दे को लेकर वोट किया या फिर बीजेपी के राष्ट्रवाद के जोश और देशभक्ति के उफान में आकर राष्ट्रीय सुरक्षा को अहम मुद्दा मानकर वोट दिया. क्या बीजेपी का भारत- पाकिस्तान काम कर गया. खैर इस सवाल का जवाब तो 23 मई को पता चल जाएगा. मगर क्या इस राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा के शोर में हम आम इंसान की सबसे बड़ी जरूरत भूख और पेट को ही नजरअंदाज कर चुके हैं. क्या हम भूखे पेट युद्ध लड़ना पसंद करेंगे?
90 करोड़ वोटरों में से 30 करोड़ वोटर्स के सामने आजीविका का संकट है औऱ इनके लिए क्या कांग्रेस का NYAY स्कीम अहम होने जा रहा है या फिर राष्ट्रीय सुऱक्षा या देशभक्ति?

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इन 30 करोड़ वोटरों में से 22 करोड़ वोटर कृषि क्षेत्र से हैं, 4.5 करोड़ बुनकर औऱ कपड़ा इंडस्ट्री से जुड़े कामगार और मजदूर हैं, 5.2 करोड़ वोटर्स रियल एस्टेट और कंस्ट्रक्शन सेक्टर में मजदूर थे जो लगभग बेरोजगार हो चुका है.  टेलीकॉम सेक्टर में 4 करोड़ और जेम्स एंड ज्वेलरी सेक्टर में 4.5 करोड़ मजदूरों की जो रोजी-रोटी छिन गई है या छिनने वाली है. क्या वो बीजेपी के राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे से खुश हैं और फिर मोदी को सत्ता सौंपने जा रहे है?

पांच सालों में 2.5 करोड़ नौकरियां कम हुई है मोदी सरकार में

क्रिसिल के अनुसार, वित्त वर्ष 12 और वित्त वर्ष 19 के बीच 3.8 करोड़ से कम गैर-कृषि रोजगार सृजित किए गए, जबकि वित्त वर्ष 05 और वित्त वर्ष 12 के बीच यह आंकड़ा 5.2 करोड़ था.

देश भर के किसानों में गुस्सा, कृषि क्षेत्र में विकास दर महज 2.9 फीसदी

मोदी सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक ग्रामीण संकट और बदहाल कृषि है. कृषि जिसमें देश के कुल श्रमबल में से 22 करोड़ या लगभग 47 प्रतिशत काम करता है, उसमें वित्त वर्ष 2017-18 में पिछले वर्ष के मुकाबले बड़ी गिरावट देखी गई है. बदहाली का स्तर यह है कि कृषि विकास दर 2014-2019 में NDA के शासन में कृषि में विकास दर औसतन 2.9% रही, जो UPA की तुलना में बहुत कम है. ग्रामीण मजदूरी दर में काफी कम वृद्ध हुई है. दिसंबर 2018 तक अनुमानित 3.8% सालाना वृद्धि के साथ कृषि उपज की कीमतों में गिरावट ने व्यापक ग्रामीण संकट को जन्म दिया जिसके कारण किसानों का देशव्यापी विरोध प्रदर्शन हुआ.

बदहाली दूर करने के सरकारी प्रयास

*पांच वर्षों के लिए 50,000 करोड़ रु. खर्च वाली प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना
*असरः 2015-16 से 2019-20 तक परिव्यय केवल 9,050 करोड़ रु. रहा है. अधिकांश परियोजनाएं अधूरी हैं या उनमें बहुत ज्यादा देरी हो रही है. मसलन महाराष्ट्र में
*50 प्रतिशत अतिरिक्त भुगतान के साथ न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी
*असरः एमएसपी गणना के तरीके पर बहुत से किसानों ने सवाल उठाए हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि इस गणना में बहुत हेर-फेर है

देश की ग्रामीण और शहरी अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा भारी संकट में, तो क्या देश में रोजगार और आजीविका खो रहे लोगों का गुस्सा सत्तारूढ़ भाजपा को इन चुनावों में भारी पड़ेगा या पार्टी के राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्रवाद के चुनावी नारे का जादू चल जाएगा?

हर सेक्टर में रोजगार पर संकट

बेरोजगारी इन चुनावों का बड़ा मुद्दा बन गई है. सरकार का मानना है कि देश के पास रोजगार की वास्तविक संख्या को जानने लायक आंकड़े नहीं हैं. निजी एजेंसियों के सर्वे भी निराशाजनक तस्वीर पेश करते हैं. क्रिसिल के अनुसार, वित्त वर्ष 12 और वित्त वर्ष 19 के बीच 3.8 करोड़ से कम गैर-कृषि रोजगार सृजित किए गए, जबकि वित्त वर्ष 05 और वित्त वर्ष 12 के बीच यह आंकड़ा 5.2 करोड़ था. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार, असंगठितक्षेत्र, जहां देश में कुल रोजगार का 81 प्रतिशत कार्यरत है, अभी भी नोटबंदी के असर से नहीं उबर पाया है. टेलीकॉम, निर्माण, रत्न और आभूषण, निर्माण जैसे रोजगार और संपत्ति पैदा करने वाले अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्र बुरी तरह लडख़ड़ाए हैं.

रियल एस्टेट में ग्रोथ शून्य से माइनस 28 फीसदी नीचे आ गई

रियल एस्टेट में तो 2017 के अंत तक सात प्रमुख शहरों में करीब 4,40,000 घर बिके ही नहीं. एक दशक में पहली बार, इस क्षेत्र में कामगारों की संख्या की वृद्धि दर नकारात्मक रही और यह शून्य से 27 प्रतिशत नीचे आ गई.

कपड़ा इंडस्ट्री भी बदहाल- 67 यूनिट बंद, 18 हजार मजदूर बेरोजगार

2011-12 में कपड़ा क्षेत्र में बिक्री आंकड़ों में वृद्धि 10 प्रतिशत से ऊपर थी और 2017-18 में गिरकर एक अंक में काफी नीचे पहुंच गई. पिछले तीन वर्षों में, 67 कपड़ा इकाइयां बंद हो गईं, जिसका प्रभाव 17,600 से अधिक श्रमिकों पर पड़ा.

टेलीकॉम सेक्टर 5 लाख करोड़ के कर्ज में डूबा

टेलीकॉम उद्योग कभी उगता सूरज माना जाता था जो आज लगभग 5 लाख करोड़ रुपए के कर्ज में डूब चुका है और जिसकी बिक्री के आंकड़ों में लगातार गिरावट आ रही है. इस क्षेत्र में बिक्री जो 2014-15 में 8 प्रतिशत थी, वह 2017-18 में 4.9 प्रतिशत के साथ नकारात्मक दायरे में आ गई है.

GDP में लगातार घट रहा है इंडस्ट्री का उत्पादन

`मेक इन इंडिया` धरातल पर असर नहीं छोड़ सका और जीडीपी में उत्पादन क्षेत्र का हिस्सा 2014-15 में 17.2% से घटकर 2017-18 में 16.7 प्रतिशत रह गया, जो 2010-2011 के बाद सबसे कम है. 2011-12 में 27% की वृद्धि के साथ, रत्न और आभूषण क्षेत्र में बिक्री 2017-18 में घटकर - 1.8 प्रतिशत पर पहुंच गई. चमड़ा उद्योग में 40 लाख से अधिक लोग काम करते हैं. यहां काम करने वाले 55 प्रतिशत लोग 35 साल से कम उम्र के हैं लेकिन आज चमड़ा उद्योग अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है.

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