जनसंख्या विस्फोट क्या आर्थिक मंदी का कारण है?

संक्षेप:

  • संवाद की कला में निपुण प्रधानमंत्री मोदी ने जनसंख्या विस्फोट की विकराल समस्या से लोगों को आगाह किया
  •  छोटा परिवार रखना भी देशभक्ति है,पर छोटा परिवार जिनका है उन पर ज्यादा बच्चे पैदा करने वालों का बोझ नहीं डाला जा सकता।
  • रिज़र्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास बोले स्थिति अच्छी नहीं मगर हताश निराश होने से नहीं बनेगी बात।

लेखक- मदन मोहन शुक्ला

संवाद की कला में निपुण प्रधानमंत्री मोदी ने जनसंख्या विस्फोट की विकराल समस्या से लोगों को आगाह किया। उन्होंने कहा कि छोटा परिवार रखना भी देशभक्ति है,पर छोटा परिवार जिनका है उन पर ज्यादा बच्चे पैदा करने वालों का बोझ नहीं डाला जा सकता, हालांकि इस संबंध में किसी कानून की बात नहीं की है।बहुत अच्छी बात कही।लेकिन इतनी देरी क्यों?वह भी उस समय जब देश की आर्थिक सेहत अच्छी नहीं ,बेरोज़गारी पिछले 45 सालों में सबसे अधिक है।सेवा क्षेत्र में सुस्ती,कम निवेश और खपत में गिरावट।रिज़र्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास बोले स्थिति अच्छी नहीं मगर हताश निराश होने से नहीं बनेगी बात।दास ने कहा कि ,मैं यह नहीं कहता कि कठिन वक्त हो,बेबजह की उम्मीदें पाल लेनी चाहिए।किसी भी अर्थव्यवस्था में सकल बाजार का मूड बहुत महत्व पूर्ण होता है।
बड़ा ही आश्चर्य होता है कि प्रधानमंत्री ने लाल किले की प्राचीर से न बेरोज़गारी की बात की न ही आर्थिक मंदी की।सरकार तो मानने को तैयार नहीं की देश आर्थिक मंदी की तरफ बढ़ चला है।इससे इतर वह जनसंख्या विस्फोट की बात कर रहे है।कही मूल समस्या से ध्यान भटकाने की मोदी की रणनीति तो नहीं?अगर जनसंख्या विस्फोट की बात करे तो यह बीते दिनों की बात हो गयी है।कुछ आंकड़े इस बात की पुष्टि करतें है। 1951 में देश की जनसंख्या 36करोड़,टी एफ आर(टोटल फर्टिलिटी रेट)6%,चीन 6.2%,अफ्रीका 6.3%।2019 में जनसँख्या 132 करोड़ लाज़मी है संसाधन सीमित , मुश्किल तो है।लेकिन 1951 से आज हालात बेहतर हैं।

जनसंख्या की समस्या विश्वव्यापी है।जब विश्व की टी एफ आर(टोटल फर्टिलिटी रेट)2.1-2.4 है तो भारत की टी एफ आर 1.9-2.0,चीन की 1.7फीसदी है।इन आंकड़ो से तो नहीं लगता कि स्थिति विस्फोटक है।जनसँख्या का पीक प्वाइंट चीन के लिए 2030 जब चीन की जनसंख्या 140 करोड़ होगी।वहीं भारत का पीक पॉइंट 2060 जब जनसँख्या 160 करोड़ बेशक चीन को पार कर जायगी।इस लिहाज से देखा जाये तो 2001 से 2017 का खासतौर से 2001 से 2011 का काल जिसमे टी एफ आर बच्चा जन्मे की दर 2.2% रही।विशेषज्ञों का मत है की रिप्लेसमेंट दर यानि प्रतिस्थापन दर 2.1%।जबकि देश में दर 2.2% है।संतोषजनक स्थीति है।बेस ईयर अगर 2005 माने उस समय जनसँख्या की विकास दर हिंदुओं में 2.59%जो 2019 में 2.1% 22फीसदी की कमी।3.4% मुस्लिम विकास दर 2019 में 2.62% 30फीसदी की कमी।ईसाई में विकास दर 2.34 % से घटकर 2.2%।बुद्धिस्ट एवं दलित विकास दर 1.94%, कमी 22.70%की।अमूमन मुस्लिम समुदाय पर इल्ज़ाम लगता है कि एक सोची समझी रणनीति के तहत अपनी आबादी बड़ा रहें है जबकि आंकड़े इससे अलग है जो मुस्लिम बाहुल्य प्रदेश है वहाँ प्रजनन दर कम है इसमें महाराष्ट्र टी एफ आर 1.7%,कर्नाटक1.7%,जम्मू &कश्मीर 370 खत्म होने से पहले 1.6%,वेस्ट बंगाल 1.6%,केरल 1.7%,तमिल नाडू 1.6%।वही जो प्रदेश मुस्लिम बाहुल्य नहीं है वहाँ प्रजनन दर,बिहार (टी एफ आर )3.5%,उ0प्र03.0%,म0प्र0 2.7%,असम 2.2%।तो यह भ्रान्ति की मुस्लिम ज्यादा बच्चे आज पैदा कर रहे है तर्क से परे है।1971 से1981 बच्चा जन्मने की दर घटी 5.2%से 4.5%। 1991 से 2017 3.6% से घट कर 2.2% रह गयी।2001-2011 में शिक्षित यानि ग्रेजुएट महिला की टोटल फर्टिलिटी रेट केवल 1.4%,कम पढ़ी लिखी में 2.1%,अनपढ़ में 2.60%।महिलाओं का सशक्तिकरण व शिक्षित करने में सरकार अगर संजीदा हो जाय तो यह समस्या खुद ब खुद सुलझ जायगी।
अब सवाल उठता है कि जो आर्थिक मंदी की चपेट में भारत है उसका आबादी से कोई लेना देना है बेशक है लेकिन जो इसके सबसे नजदीकी कारण है वह है नोटेबन्धी व जी एस टी ।दूसरा जो बजट आया वह भी ज़्यादा कॉरपोरेट सेक्टर में भरोसा नहीं पैदा कर पाया।अर्थव्यवस्था की रफ़्तार में सुस्ती का असर अब कंपनियों के प्रदर्शन पर भी दिखने लगा है।चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में कंपनियों के राजस्व और मुनाफे में तेज़ गिरावट देखने को मिली है।सबसे ज़्यादा असर कंपनियों के मुनाफे पर हुआ है।बीते साल में मुनाफे की वृद्धि दर 24.6% रही थी जो इस साल घट कर मात्र 6.6%रह गयी।घरेलु रेटिंग एजेंसी केअर रेटिंग्स ने चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-जून तिमाही में आये नतीज़े के विश्लेषण के आधार यह आकलन किया है।घरेलु कंपनियों के राजस्व की वृद्धि दर बीते साल की इस अवधि के 13.5% से घटकर 4.6% रह गयी।गौरतलब है कि पिछले वित्त वर्ष की आखिरी तिमाही(जनवरी-मार्च)में जी डी पी की वृद्धि दर 5.8% थी जानकार के अनुसार यह अप्रैल-जून तिमाही में और नीचे आ सकती है।टाटा मोटर्स का टाटानगर झारखण्ड में उत्पादन ठप है इसके साथ 30 स्टील प्लांट भी बंद हो गए है।हिंडाल्को भी बंद हो गया है जिससे 20000 लोग बेरोज़गार हो गए है।इन सबसे करीब 2लाख लोगों के सामने दो जुन रोटी जुटाने का संकट गहरा गया है।लेकिन यह खबर झारखण्ड के समाचारपत्र में तो छपती है लेकिन दिल्ली का मीडिया इस पर खामोश रहता है।क्योंकि दिल्ली का मीडिया जो सरकार चाहेगी वही छपेगा।क्योंकि सरकार जानती है विज्ञापन के लॉलीपाप से मीडिया विद्रोह नहीं करेगा ।यहाँ सवाल उठता है कि क्या मंदी का असर मीडिया पर नहीं पड़ेगा ।जब मार्केट में डिमांड नहीं होगी तो उत्पादन होगा नहीं ।जब उत्पादन ही नहीं होगा और मार्किट नहीं होगा तो क्यों कंपनियां प्रचार प्रसार पर खर्च करेंगी तब तो लाज़मी है मीडिया पर खर्चे पर कटौती का दबाब होगा और यह होगा छटनी के तौर पर ।तो मीडिया बंधु तैयार रहिये आपका नंबर कब आएगा।
आंकड़े बतातें हैं करीब रु0 5912 करोड़ का घाटा एविएशन कंपनियों को हो चुका है।झारखण्ड के रुद्रपुर इंडस्ट्रियल क्षेत्र में करीब 700 कंपनी बंद हो गयी है।सरकार ऐसा नहीं है कि प्रयास नहीं कर रही है।सरकार सार्वजानिक क्षेत्र की घाटे में चल रही कंपनियों का निजीकरण या डिसइनवेस्टमेंट के बारे में सोच रही है।कुल 47 में 24 कंपनियों को इस योजना के तहत लाया गया है।इस सब प्रक्रिया को पूरा करने के लिए 1लाख5 हज़ार करोड़ चाहिए,कहाँ से यह भारी-भरकम रकम आयेगी यह सवाल है?।किस तरह सरकार ने 1.75लाख कर्मचारी के भारी भरकम इंफ्रास्ट्रक्चर के बी एस एन एल को 4जी से बाहर करके उसे अपने हाल पर छोड़ दिया आज हालात यह हो गए है जो कंपनी 2004 में 450000 करोड़ के मुनाफे में थी आज वह बंदी के कगार पर है ।इसका सीधा साधा कारण है सरकार का एक विशेष कॉर्पोरेट हाउस की तरफ दिलचस्पी है वह है जियो ।इसी तरह सरकार कैसे डिसइनवेस्टमेंट की आड़ में आंकड़ो से खेल कर रही है इसका उदाहरण मुनाफे की कंपनी ओं एन जी सी को सरकार बाध्य करती है यह एच पी सी एल जैसी बीमार कंपनी का 51%शेयर को खरीदें जिसके लिए 34000 करोड़ की ज़रुरत पड़ती है जिसमें 24000 करोड़ बैंक से क़र्ज़ लेना पड़ता है आज ओ एन जी सी मुनाफे से घाटे में आ गयी है।बैंको को अपनी बुक ठीक करने को कहा जा रहा है जो पैसा लेकर भाग गए है उनका जिक्र न हो यह संख्या 36 बड़े डिफाल्टर की है।बैंको की जो हालत है जल्दी ही विदेशी बैंकों की भी यहाँ पैठ हो जायेगी।कमोबेश डाक तार विभाग जो मुनाफा देता आ रहा था आज 15000 करोड़ के घाटे में है।आज 12.76लाख मकान बिकने के लिए है कोई खरीदार नहीं इसमें कितना पैसा लगा ,पता नहीं।कई बिल्डर ख़ुदकुशी कर चुके है।आज मकान बनाना महंगा क्योंकि बिल्डिंग मटेरियल पर जी एस टी 18 से 28% हो गयी है।ऑटो इंडस्ट्री ,टेलीकम्यूनिकेशन में 2.5लाख लोग बेरोज़गार हो गए हैं।करीब 550000 करोड़ की कार इन्वेंटरी फैक्ट्री में है कोई ख़रीदार नहीं है।इसी तरह देश पर विदेशी क़र्ज़ 500+अरब डॉलर हो गया है।सरकार कह रही है अच्छे दिन है।सरकार के साथ सबसे बड़ी कमी उद्योग जगत और सरकार के बीच संवाद की कमी और उद्योगपतियों में एक डर अगर सरकार से तालमेल न बैठा तो ई0 डी0 या सी बी आई या इनकम टैक्स का डंडा।मन मोहन सरकार में अलग से एक समिति थी जो उद्योग जगत से संवाद और उनकी समस्या के समाधान को तत्पर रहती थी।लेकिन मोदी सरकार में तो अब वित्त मंत्री से पत्रकार भी नहीं मिल सकते उनकी इंट्री वित्त मंत्रालय में पूरी तरह प्रतिबंधित है।
ऑटो सेक्टर हो या टेलीकम्यूनिकेशन,टेक्सटाइल या रियल एस्टेट की जो हालत पतली है। कारण सरकार की कर प्रणाली।भारत ही ऐसा देश है जहाँ 35%से ज़्यादा टैक्स देना पड़ता उसके बाद भी नोटिस जाँच की तलवार लटकती रहती है।आज डिस्प्यूटेड टैक्स लायबिलिटी 50,000 करोड़ से बढ़कर 7.72लाख करोड़ पहुँच गयी है।मोदी सरकार पूरी तरह बिज़नेस विरोधी है ।बीजेपी में एक गुट सवाल उठा रहा है।2008 के मंदी के दौर में मनमोहन सरकार ने स्टिमुलस पैकेज उद्योग जगत को दिया था।वर्तमान सरकार से भी यही अपेक्षा है।
2014 में जब मोदी सरकार में आए तबसे लेकर आज तक क्या कारण रहा की रिज़र्व बैंक गवर्नर रघुराम राजन,उर्जित पटेल ने इस्तीफा दिया फिर आर्थिक सलाहकार अरविन्द सुब्रमण्यम और अरविन्द पानगड़िया भी छोड़ कर चले गए।इसका मतलब आर्थिक नीति में कहीं दाल में काला है।
आज स्थीति यह हो गयी की वित्त मंत्रालय में कोई भी अधिकारी अर्थशास्त्र में पी एच डी नहीं है।
करीब 2000 कंपनी पिछले 6 से 8 महीनों में देश छोड़ कर जा चुकी है।मई,जून जुलाई में प्रत्यक्ष निवेश में 4 अरब डॉलर की कमी आई है।टॉप के कॉर्पोरेट सेक्टर में 65485 करोड़ का घाटा तथा मुनाफे में 15,000 करोड़ का नुकसान हुआ है।क़र्ज़ लेने की रियल एस्टेट में दर जुलाई में 11% से नीचे यही हाल गैर कृषि क्षेत्र का भी है।
आज बेरोज़गारी का दबाब जनसंख्या पर और जनसंख्या का दबाब बेरोज़गारी पर।पौने तीन करोड़ रोज़गार आज चाहिए जिसमें सबसे अधिक उत्तरप्रदेश में 60लाख।
अभी एक चौकाने वाली खबर कर्नाटक से वहां के अयोग्य घोषित विधायक एम टी बी नागराज जिन्होंने अभी हाल में 11करोड़ की रोल्स रॉयस फैंटम खरीदी है।इससे आप समझ गए होंगे राजनीती सबसे बड़ी इंडस्ट्री।आज राजनीति रईस हो गयी। आम आदमी गरीब हो गया।इसलिए कहा जाता है कि राजनीतिज्ञ के अंध भक्त न बनें।यह केवल अपना स्वार्थ देखते हैं।
सरकार को जो अब करना चाहिए वह है लैंड रिफॉर्म्स,लेबर रिफॉर्म्स एवं इकनोमिक रिफार्म ।कर प्रणाली का सरलीकरण और इंस्पेक्टर राज्य से निज़ात।कर देनदारी में ट्रांसपेरेंसी और बेवजह टैक्स एजेंसीज द्वारा परेशान करने की प्रक्रिया पर रोक लगनी चाहिए।उद्योग जगत में विश्वास पैदा करना की सरकार साथ है।रुग्ण हो गए उद्योग को उभारने की कोशिश हो।लिक्विडिटी क्रंच से उबरने के उपाय होने चाहिए।

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